By पं. नीलेश शर्मा
गणेश जी के श्राप से चंद्र दर्शन क्यों वर्जित है, और इससे जुड़ी श्रीकृष्ण की पौराणिक कथा क्या सिखाती है
सूर्यास्त के बाद कैलाश पर्वत की चांदनी रात में एक अद्भुत दृश्य उपस्थित हुआ था। भगवान गणेश अपने प्रिय वाहन मूषक पर सवार होकर कुबेर के यहां से भोजन करके लौट रहे थे। उनका पेट लड्डुओं से भरा हुआ था और वे प्रसन्नता से झूमते हुए चल रहे थे। चांदनी रात में कैलाश पर्वत की सुंदरता देखते ही देखते थी, और चंद्रदेव अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण आकाश को प्रकाशित कर रहे थे।
मूषक अपनी विचित्र चाल में मस्ती से चल रहा था, जब अचानक उसके सामने एक विषधर सर्प आ गया। सर्प को देखते ही मूषक भयभीत होकर अचानक उछल पड़ा। इस अचानक हुए परिवर्तन से भगवान गणेश का संतुलन बिगड़ गया और वे अपने विशाल शरीर के साथ धरती पर गिर पड़े। उनके हाथ से लड्डू बिखर गए और उनका मुकुट एक ओर जा गिरा।
गणेश जी ने तुरंत चारों ओर देखा कि कहीं किसी ने उन्हें इस अवस्था में तो नहीं देख लिया। उन्हें लगा कि कोई नहीं है, लेकिन तभी आकाश से किसी के ठहाके लगाने की आवाज़ आई। गणेश जी ने ऊपर देखा तो पाया कि चंद्रदेव उनकी इस दशा पर हंस रहे हैं।
चंद्रदेव की हंसी में उपहास था, मानो वे कह रहे हों - "देखो तो, देवताओं के गणपति कैसे धरती पर लुढ़क गए!" यह देखकर गणेश जी को अत्यंत क्रोध आया। उन्होंने सोचा कि चंद्रदेव को अपनी सुंदरता और चमक का इतना अभिमान है कि वे दूसरों की विपत्ति पर हंस रहे हैं।
गणेश जी ने क्रोधित होकर चंद्रदेव को श्राप दिया - "हे अभिमानी चंद्र! तुम्हें अपनी सुंदरता और चमक का इतना घमंड है? आज से तुम्हारा दर्शन अशुभ होगा। जो कोई तुम्हें देखेगा, उस पर झूठा कलंक लगेगा और वह चोरी के मिथ्या आरोप का भागी होगा।"
गणेश जी के श्राप से चंद्रदेव की चमक तुरंत क्षीण होने लगी। आकाश में अंधकार छा गया और चंद्रदेव अपनी सोलह कलाओं को खोने लगे। चंद्रदेव अत्यंत दुखी हुए और पश्चाताप से भर गए। उन्होंने सोचा कि उनकी एक क्षणिक हंसी ने उन्हें कितना बड़ा अभिशाप दिला दिया।
चंद्रदेव की इस दशा को देखकर सभी देवता चिंतित हो गए। चंद्रदेव के बिना रात्रि का अंधकार घना हो जाएगा, समुद्र में ज्वार-भाटा नहीं आएगा, और पृथ्वी पर अनेक प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाएंगे। देवताओं ने चंद्रदेव से कहा कि वे गणेश जी से क्षमा याचना करें।
चंद्रदेव ने अपने अपराध को स्वीकार करते हुए गणेश जी के समक्ष आकर विनम्रतापूर्वक क्षमा याचना की। उन्होंने कहा - "हे विघ्नहर्ता! मुझसे अज्ञानतावश भूल हो गई। मेरा उद्देश्य आपका अपमान करना नहीं था। मेरी चांदनी ही मेरी पहचान है, यदि यह छिन गई तो मेरा अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।"
चंद्रदेव की दीन-हीन अवस्था देखकर सभी देवता भी गणेश जी के पास आए और उनसे चंद्रदेव को क्षमा करने का आग्रह किया। ब्रह्मा, विष्णु और महेश सहित सभी देवताओं ने गणेश जी से प्रार्थना की कि वे अपना श्राप वापस ले लें।
गणेश जी ने कहा - "मैं अपना श्राप पूरी तरह वापस तो नहीं ले सकता, क्योंकि मेरे मुख से निकला वचन व्यर्थ नहीं जा सकता। लेकिन मैं इसमें कुछ परिवर्तन अवश्य कर सकता हूं।"
गणेश जी ने श्राप में संशोधन करते हुए कहा - "यह श्राप केवल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि (गणेश चतुर्थी) के दिन ही प्रभावी रहेगा। इस दिन जो कोई चंद्रदेव के दर्शन करेगा, उस पर मिथ्या कलंक लगेगा और वह झूठे आरोपों का भागी होगा। और यदि कोई अनजाने में इस दिन चंद्र दर्शन कर ले, तो वह किसी के घर की छत पर कंकड़ या पत्थर का टुकड़ा फेंककर इस दोष से मुक्त हो सकता है।"
इस श्राप का प्रभाव स्वयं भगवान श्रीकृष्ण पर भी पड़ा था। श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार, एक बार श्रीकृष्ण ने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन अनजाने में चंद्र दर्शन कर लिया था। उसी समय द्वारका में सत्राजित नामक यादव के पास स्यमंतक नामक एक अद्भुत मणि थी, जो प्रतिदिन सोना उत्पन्न करती थी।
अचानक वह मणि कहीं खो गई और सत्राजित ने श्रीकृष्ण पर उसे चुराने का आरोप लगा दिया। श्रीकृष्ण निर्दोष थे, लेकिन गणेश जी के श्राप के कारण उन पर यह झूठा कलंक लग गया। अपने सम्मान की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने मणि की खोज की और पता चला कि एक सिंह ने प्रसेन (सत्राजित के भाई) को मारकर मणि छीन ली थी, और फिर जांबवान ने सिंह को मारकर मणि ले ली थी।
श्रीकृष्ण ने जांबवान से युद्ध किया और उन्हें पराजित कर मणि प्राप्त की। जब उन्होंने मणि सत्राजित को लौटाई, तो लज्जित सत्राजित ने अपनी कन्या सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया और मणि भी उन्हें भेंट कर दी।
इस प्रकार, चंद्र दर्शन की यह पौराणिक कथा हमें सिखाती है कि किसी की विपत्ति पर हंसना या उपहास करना कितना अनुचित है। चंद्रदेव को अपने अभिमान और दूसरों का उपहास करने के कारण श्राप मिला। यह कथा हमें विनम्रता, सहानुभूति और दूसरों के प्रति सम्मान का भाव रखने की शिक्षा देती है। आज भी गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन वर्जित माना जाता है। यदि कोई अनजाने में इस दिन चंद्र दर्शन कर ले, तो उसे श्रीमद् भागवत पुराण की स्यमंतक मणि की कथा पढ़नी चाहिए या किसी के घर की छत पर कंकड़ फेंकना चाहिए। इस प्रकार वह मिथ्या दोष से मुक्त हो सकता है।
अनुभव: 25
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