By पं. संजीव शर्मा
स्त्री शक्ति और आत्मबल के प्रतीक सात प्रमुख शक्तिपीठ जिनका दर्शन जीवन को नया दृष्टिकोण देता है
भारतीय संस्कृति में शक्तिपीठ केवल आस्था का केंद्र नहीं बल्कि स्त्री-शक्ति के गौरव का प्रतीक हैं। पुराणों के अनुसार जब देवी सती का अंग विभाजित हुआ तो उनके विभिन्न अवयव पृथ्वी पर गिरे और जहां-जहां वे गिरे, वहां शक्तिपीठ बने। प्रत्येक शक्तिपीठ का अपना अद्वितीय महत्व है। इन स्थलों पर केवल देवी की ही नहीं बल्कि नारीत्व, सृजन और आत्मबल की आराधना भी होती है।
यहां उन सात शक्तिपीठों का वर्णन है जिन्हें हर महिला को जीवन में कम से कम एक बार अवश्य अनुभव करना चाहिए।
यह मंदिर देवी की योनि शक्ति का प्रतीक है। माना जाता है कि यहां देवी का योनियंश गिरा था। यहाँ अम्बुवाची मेला में मंदिर के द्वार तीन दिनों तक बंद रहते हैं। इसे मासिक धर्म को पवित्र मानकर देवी की विशेष आराधना की जाती है। इस परंपरा का संदेश है कि नारी का शरीर पवित्र है और उसकी सृजन शक्ति का सम्मान होना चाहिए।
त्रिकुट पर्वत की गोद में स्थित वैष्णो देवी शक्ति का त्रिगुण स्वरूप है-काली, लक्ष्मी और सरस्वती। यहां तक पहुंचने के लिए 13 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी होती है। यह यात्रा साधक को विनम्र बनाती है और हर कदम आराधना का रूप ले लेता है। माता वैष्णो देवी यह सिखाती हैं कि स्त्री केवल एक स्वरूप नहीं है बल्कि वह शक्ति, ज्ञान और सौभाग्य का संगम है।
यह स्थल देवी तारा का प्रतिनिधित्व करता है। यहां देवी शव-साधना स्थल के समीप विराजमान हैं। तारा पीठ यह शिक्षा देता है कि मृत्यु, शोक और अंधकार से भागना नहीं बल्कि उन्हें स्वीकार करना चाहिए। नारी के भीतर पीड़ा सहकर भी जीवित रहने और शक्ति पाने की अद्भुत क्षमता होती है।
यहां देवी की जिह्वा का पतन हुआ था। आज यहां बिना किसी ईंधन के अग्नि ज्वाला निरंतर प्रज्वलित होती है। इसे देवी की ज्वाला शक्ति कहा जाता है। यह संदेश है कि नारी की वाणी केवल कोमलता का नहीं बल्कि प्रकाश और सत्य का स्वर है। स्त्री की आवाज़ में परिवर्तन लाने की अग्नि छुपी होती है।
राजधानी की हलचल के बीच यह मंदिर देवी के चरण का प्रतीक है। यह मंदिर सिखाता है कि स्त्री की शक्ति केवल पर्वतों और जंगलों में नहीं बल्कि हर रोज़ के कर्म में निहित है। घर-परिवार, कार्य और समाज में नारी का योगदान स्वयं में एक दिव्य साधना है।
यहां देवी चामुंडा का रूप उस शक्ति का प्रतीक है जिसने असुरों का संहार किया। वह क्रोध और पराक्रम का रूप हैं। यह बताती हैं कि स्त्री का रोष भी एक ऊर्जा है जो सीमाओं को तोड़कर जीवन को आत्मसम्मान देती है। नारी का संकल्प और क्रोध बदलाव का कारण बन सकता है।
यह विशाल और अद्भुत मंदिर देवी मीनाक्षी को समर्पित है। उनका स्वरूप केवल सौंदर्य का नहीं बल्कि वीरत्व और प्रशासन का भी प्रतीक है। यह मंदिर दर्शाता है कि स्त्री की सुंदरता उसकी शक्ति के साथ संतुलित रहती है। नारी न केवल सृजन करती है बल्कि अपने सामर्थ्य से समाज का नेतृत्व भी कर सकती है।
इन सात शक्तिपीठों की यात्रा नारी के लिए केवल धार्मिक अनुभव नहीं होती, यह आत्मबल, साहस और आत्मबोध का मार्ग भी बनती है। यह तीर्थ हमें बताते हैं कि स्त्री की शक्ति अदृश्य नहीं बल्कि जीवन के हर हिस्से में प्रकट होती है, चाहे वह सृजन हो या संघर्ष।
प्रश्न 1: शक्तिपीठ क्या हैं?
उत्तर: शक्तिपीठ वे स्थान हैं जहां देवी सती के अंग गिरे थे और ये देवीशक्ति के केंद्र हैं।
प्रश्न 2: कामाख्या मंदिर में क्या विशेष है?
उत्तर: इसे देवी की योनिशक्ति का प्रतीक माना जाता है और अम्बुवाची मेले में मासिक धर्म का पावन उत्सव होता है।
प्रश्न 3: वैष्णो देवी में कौन-कौन से स्वरूप पूजे जाते हैं?
उत्तर: काली, लक्ष्मी और सरस्वती के संयुक्त रूप की आराधना की जाती है।
प्रश्न 4: ज्वालामुखी मंदिर की विशेषता क्या है?
उत्तर: यहां बिना ईंधन के अनंत अग्नि ज्वाला स्वयमेव प्रज्वलित रहती है।
प्रश्न 5: मीनाक्षी मंदिर का संदेश क्या है?
उत्तर: स्त्री की सुंदरता और शासन सामर्थ्य एक साथ चल सकते हैं। यह मंदिर नारी नेतृत्व का प्रतिनिधित्व करता है।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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