By अपर्णा पाटनी
यम और यमी का संवाद धर्म, मर्यादा और मानवीय भावनाओं के बीच संघर्ष का वैदिक प्रतीक है
यम-यमुना की कथा का एक अत्यंत रोचक और गूढ़ पक्ष ऋग्वेद (मंडल 10, सूक्त 10) में मिलता है, जहाँ यम की बहन यमी (यमुना) अपने भाई यम के प्रति गहरा, आकर्षण और आत्मीय प्रेम व्यक्त करती है। यह संवाद केवल भाई-बहन के पारंपरिक रिश्ते तक सीमित नहीं, बल्कि मानवीय भावनाओं, इच्छाओं और धर्म के बीच के संघर्ष को भी दर्शाता है।
एक बार जब यम और यमी अकेले थे, यमी ने यम से आग्रह किया कि वे दोनों मिलकर सृष्टि की वृद्धि के लिए पति-पत्नी बनें। यमी ने कहा कि वे दोनों एक ही गर्भ से जन्मे हैं, एक-दूसरे के सबसे निकट हैं और सृष्टि के आरंभ में धर्म के नियम अभी स्थापित नहीं हुए हैं। यमी का तर्क था कि यदि वे दोनों एक साथ मिलकर सृष्टि का विस्तार करें, तो यह ब्रह्मांड के लिए कल्याणकारी होगा।
यमी के भावनात्मक और आत्मीय आग्रह के उत्तर में यम ने अत्यंत संयम और धर्म का पालन करते हुए कहा कि भाई-बहन का संबंध पवित्र है और धर्म की मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। यम ने स्पष्ट किया कि वे सृष्टि के नियमों और नैतिकता का पालन करेंगे, भले ही यमी का प्रेम और आकर्षण कितना भी गहरा क्यों न हो।
यह संवाद केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि मानव जीवन में धर्म और काम (इच्छा) के संघर्ष का प्रतीक है। यमी का आकर्षण, आत्मीयता और आग्रह और यम का संयम और धर्म-पालन-दोनों मिलकर यह सिखाते हैं कि जीवन में भावनाएँ कितनी भी प्रबल हों, धर्म और मर्यादा सर्वोपरि हैं।
ऋग्वेद में यम और यमी के बीच संवाद (दशम मंडल, सूक्त 10) से हमें कई गहरे और बहुआयामी जीवन संदेश मिलते हैं। यह संवाद केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि मानव समाज, धर्म, नैतिकता और इच्छाओं के संतुलन की शिक्षा भी है।
यमी अपने भाई यम से सृष्टि की वृद्धि के लिए दाम्पत्य संबंध की इच्छा प्रकट करती हैं। यम बहुत स्पष्टता से कहते हैं कि भाई-बहन का संबंध पवित्र है और धर्म की मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। यम का यह उत्तर दर्शाता है कि जीवन में भावनाएँ चाहे जितनी भी प्रबल क्यों न हों, धर्म और मर्यादा सर्वोपरि हैं। सीख: इच्छाओं और भावनाओं पर नियंत्रण और सामाजिक मर्यादा का पालन मानव समाज के लिए अनिवार्य है।
यमी के तर्क और आग्रह के बावजूद यम अपने कर्तव्य और समाज के नियमों से विचलित नहीं होते। वे स्पष्ट करते हैं कि परंपरा और नैतिकता का पालन करना ही श्रेयस्कर है। सीख: जब भी व्यक्ति के सामने निजी इच्छा और सामाजिक कर्तव्य में टकराव हो, तो उसे धर्म और समाज की भलाई को प्राथमिकता देनी चाहिए।
ऋग्वेद का यह संवाद भाई-बहन के रिश्ते की पवित्रता और सामाजिक मर्यादा की रक्षा का संदेश देता है। यह बताता है कि समाज में कुछ संबंधों की सीमाएँ और मर्यादाएँ होती हैं, जिनका पालन आवश्यक है। सीख: सामाजिक संबंधों की शुद्धता और मर्यादा समाज की स्थिरता और नैतिकता के लिए आवश्यक है।
कुछ विद्वान यम-यमी संवाद को दिन-रात, जीवन-मृत्यु या प्रकृति के दो पूरक तत्वों के रूप में भी देखते हैं। यह संवाद सृष्टि के संतुलन, द्वैत और जीवन के नियमों की ओर भी संकेत करता है। सीख: जीवन में संतुलन, द्वैत और नियमों की स्वीकार्यता ही सृष्टि और समाज की निरंतरता का आधार है।
यम का आत्मसंयम, तर्क और विवेकशीलता यह सिखाती है कि कठिन परिस्थितियों में भी व्यक्ति को संयम और विवेक से निर्णय लेना चाहिए। सीख: आत्मसंयम और विवेकशीलता ही सच्चे धर्म का मार्ग है।
यम-यमुना की कथा में जहाँ एक ओर भावनाओं की गहराई और आकर्षण है, वहीं दूसरी ओर धर्म और मर्यादा की अडिगता भी है। यही संतुलन इस कथा को वैदिक साहित्य में अद्वितीय बनाता है। ऋग्वेद का यम-यमी संवाद हमें सिखाता है कि जीवन में धर्म, मर्यादा, कर्तव्य और आत्मसंयम सबसे महत्वपूर्ण हैं। भावनाओं और इच्छाओं की प्रबलता के बावजूद, सामाजिक और धार्मिक नियमों का पालन ही मानवता की रक्षा करता है। यही संवाद भारतीय संस्कृति में नैतिकता, संबंधों की पवित्रता और विवेक का आदर्श प्रस्तुत करता है।
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