By पं. अभिषेक शर्मा
जानिए नक्षत्रों की उत्पत्ति, पौराणिक कथाएँ, नामकरण की प्रक्रिया और वैदिक ज्योतिष में इनका गहरा प्रभाव 3. Breadcrumb:
वैदिक ज्योतिष केवल ग्रहों और राशियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समय और अंतरिक्ष की गहन गणनाओं का विज्ञान है। पंचांग - जिसे वैदिक कालगणना का आधार माना जाता है - पांच प्रमुख तत्वों से मिलकर बनता है: तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण। इनमें से नक्षत्र, यानी चंद्रमा की उस स्थिति को कहा जाता है जहाँ वह किसी विशेष नक्षत्र में स्थित होता है। कुल मिलाकर 27 नक्षत्र होते हैं, जो चंद्रमा के मार्ग को 27 भागों में विभाजित करते हैं।
हर नक्षत्र की प्रकृति भिन्न होती है और वैदिक ऋषियों ने इनके गुणों के आधार पर नक्षत्रों को सात मुख्य वर्गों में बाँटा है - ताकि शुभ-अशुभ समय की पहचान कर, कार्यों की योजना बनाई जा सके। आइए इन सातों वर्गों को विस्तार से समझते हैं:
स्थिर नक्षत्रों की प्रकृति स्थायित्व प्रदान करने वाली होती है। जो कार्य लंबे समय तक फल देना चाहते हैं या स्थिर रूप से बने रहना चाहिए - जैसे घर बनाना, विवाह करना या दीर्घकालिक संकल्प लेना - उनके लिए ये नक्षत्र श्रेष्ठ माने जाते हैं।
चर नक्षत्रों की प्रवृत्ति गतिशील होती है। जो कार्य स्थान परिवर्तन, व्यापारिक गतिशीलता या यात्रा से संबंधित हों, वे इन नक्षत्रों में करने से सफलता दिलाते हैं।
(चर नक्षत्रों की गणना में कुछ overlap अन्य श्रेणियों से भी हो सकता है, जैसे उत्तरा फाल्गुनी आदि, जो स्थिर भी माने जाते हैं)
उग्र नक्षत्र संघर्ष, विवाद, सैन्य कार्यों या विरोधी ताकतों से निपटने के लिए उपयुक्त होते हैं। सामान्य या शुभ कार्यों के लिए इनका उपयोग वर्जित माना गया है।
मिश्र नक्षत्रों में स्थिर और चर दोनों गुण होते हैं। ऐसे कार्य जिनमें अत्यधिक शुभ या अत्यधिक उग्र प्रकृति की आवश्यकता न हो, उन कार्यों के लिए ये उपयुक्त होते हैं।
क्षिप्र नक्षत्रों की प्रकृति त्वरित होती है। जो कार्य जल्दी और हल्के ढंग से पूर्ण किए जाने हों - जैसे खरीदारी, मेलजोल, मनोरंजन आदि - उनके लिए यह समय अनुकूल रहता है।
(अभिजित नक्षत्र तकनीकी रूप से 28वां नक्षत्र है और विशेष शुभ माना गया है)
मृदु नक्षत्रों की प्रकृति कोमल और सौम्य होती है। प्रेम, विवाह, रचनात्मकता और सौंदर्य से जुड़े कार्यों के लिए ये समय विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
तीक्ष्ण नक्षत्रों को आमतौर पर अशुभ माना जाता है, परन्तु विशेष कार्य जैसे शल्य चिकित्सा, तांत्रिक प्रयोग, शत्रु संहार, या निर्णयात्मक कार्यों में ये सहायक होते हैं।
हर दिन, हर घड़ी एक विशेष नक्षत्र से संचालित होती है। वैदिक ज्योतिष इस समयचक्र को पहचान कर हमें यह सिखाता है कि "समय का सदुपयोग ही सफलता की कुंजी है।" जो कार्य जिस प्रकृति के हैं, उन्हें उसी प्रकृति के नक्षत्र में करने से सफलता की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
इसलिए, नक्षत्रों की प्रकृति को जानना और पंचांग के अनुसार कार्य योजना बनाना एक श्रेष्ठ परंपरा है - जिसे आधुनिक जीवन में अपनाने से निर्णय अधिक प्रभावी, योजनाएँ अधिक सफल और जीवन अधिक संतुलित बन सकता है।
अनुभव: 19
इनसे पूछें: विवाह, संबंध, करियर
इनके क्लाइंट: छ.ग., म.प्र., दि., ओडि, उ.प्र.
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