By पं. अभिषेक शर्मा
पौराणिक संकेत, गुणधर्म, परिवार, स्वास्थ्य और जीवन में प्रभाव का विश्लेषण

पूर्वभाद्रपद वैदिक ज्योतिष का 25वां नक्षत्र है। यह कुम्भ राशि के 20 अंश से लेकर मीन राशि के 3 अंश 20 कला तक विस्तृत है। इसके अधिपति गुरु हैं। प्रतीक रूप में इसे दो मुख वाला मनुष्य तथा श्मशान की चौकी के अगले पाये माने गए हैं। यह संयोजन जीवन और मृत्यु, प्रकट और अप्रकट, तथा विज्ञान और अध्यात्म के बीच की सीमा का द्योतक है। इस नक्षत्र में तीव्रगति, अंतर्मुखी तपस्या तथा रूपांतरण की ज्वाला समाहित है, जिससे जातक एक ओर सिद्धांत और कर्मशीलता में स्थिर रहते हैं, तो दूसरी ओर आत्मसमर्पण और ईश्वरीय प्रेरणा में गहनता से उतरते हैं।
दो मुख वाला मनुष्य द्वैत का प्रतिनिधित्व करता है, सार्वजनिक और निजी जीवन, सृजन और संहार, सरलता और रणनीति का संगम। श्मशान चौकी के पाये, समाप्ति और संकट के संस्कारों का प्रतीक, इस बात के द्योतक हैं कि हर अंत एक नवीन जीवन या दृष्टि की शुरुआत है।
इस नक्षत्र के देवता अज एकपाद हैं, शिव से संबद्ध अद्वितीय रूप। यह तपस्या, संकट में स्थैर्य और त्रिकाल-भविष्य, वर्तमान और भूत-की दूरदृष्टि प्रदान करते हैं।
यद्यपि गुरु के अधीन और कुम्भ-मीन राशि में होने से इसका स्वर संयत है, तथापि इसमें अग्नि तत्त्व विशेष रूप से परिलक्षित होता है। यह अग्नि आत्मभ्रम और सामाजिक दिखावे को जलाकर शुद्धता की ओर प्रेरित करती है।
पूर्वभाद्रपद कुम्भ की आदर्शवादी दृष्टि और सामाजिक चेतना को मीन की गहरी करुणा और अध्यात्म से जोड़ता है। इसके चार चरण निम्न प्रभाव उत्पन्न करते हैं:
| चरण | राशि अंश | नवांश स्वामी | प्रभाव |
|---|---|---|---|
| प्रथम (20°00′–23°20′ कुम्भ) | मंगल | तीव्र, आरंभकारी स्वभाव, प्रखर इच्छाशक्ति और शीघ्र क्रोध | |
| द्वितीय (23°20′–26°40′ कुम्भ) | शुक्र | सौंदर्यप्रिय, आकर्षक व्यवहार, धन और कलात्मकता में निपुण | |
| तृतीय (26°40′ कुम्भ–0°00′ मीन) | बुध | वाक्पटु, विश्लेषक, शिक्षक और सम्पादक में सिद्धहस्त | |
| चतुर्थ (0°00′–3°20′ मीन) | चन्द्र | गहरी भावुकता, मनोवैज्ञानिक संवेदनशीलता और करुणा में गहनता |
सामर्थ्य:
सुधार क्षेत्र:
जातक अक्सर मध्यम से ऊँचे कद के होते हैं। उनके चेहरे पर भरे गाल और स्पष्ट अधर प्रमुख दिखते हैं। आँखें गहरी और निरीक्षणशील होती हैं। उनकी चाल सधी हुई और गंभीरता का परिचायक होती है। जब ये बोलते हैं तो वातावरण मौन हो जाता है।
समयरेखा: 24 से 33 वर्ष में पहचान, तथा 40 से 54 वर्ष में स्वर्णिम विस्तार और स्थायी प्रतिष्ठा।
प्रकृति: वात प्रधान।
संभावित रोग: श्वसन समस्याएँ, हृदयधड़कन की अनियमितता, जोड़ों का दर्द, पाचन विकार और चिंता।
महिला जातकों में: उच्च रक्तचाप और यकृत संबंधित रोग।
उपाय:
इनकी वाणी तलवार समान होती है। जब यह ईमानदारी में जुड़ी होती है तो समाज का उत्थान करती है, किन्तु विश्वासभंग होने पर कठोर बन जाती है। सर्वश्रेष्ठ भूमिका सुधारक की है, व्यवस्था को शुद्ध करना और सिद्धांतों की रक्षा।
दैनिक क्रम:
साप्ताहिक क्रम:
त्रैमासिक क्रम:
श्मशान चौकी के अगले पाये जीवन के मध्यावस्था का संकेत हैं। आधा दृश्य और आधा अदृश्य। पूर्वभाद्रपद जातक इसी सीमा में विचरण करते हैं। यह भ्रम काटते, अंतःकरण की अग्नि जगाते और अपनी वाणी से अन्य प्राणियों को जागृत करते हैं। जब गुरु की बुद्धिमत्ता और अनुष्ठानों से अनुशासित होते हैं तब सफलता का अर्थ ही बदलकर समाज के उत्थान का मार्ग बन जाता है।
प्रश्न 1: पूर्वभाद्रपद नक्षत्र का मुख्य प्रतीक क्या है?
उत्तर: इसका मुख्य प्रतीक दो मुख वाला मनुष्य और श्मशान की चौकी के अगले पाये हैं, जो द्वैत, अंत और परिवर्तन का सूचक हैं।
प्रश्न 2: पूर्वभाद्रपद नक्षत्र के चारों चरणों के गुण क्या हैं?
उत्तर: पहला तेजस्वी और साहसी है, दूसरा सुंदर और प्रभावशाली, तीसरा संप्रेषण में कुशल और चौथा भावनात्मक गहराई एवं संवेदनशीलता वाला होता है।
प्रश्न 3: इस नक्षत्र का स्वामी कौन है और वह क्या गुण प्रदान करता है?
उत्तर: गुरु इस नक्षत्र के स्वामी हैं। वे ज्ञान, स्थैर्य और त्रिकालदृष्टि की शक्ति देते हैं।
प्रश्न 4: पूर्वभाद्रपद नक्षत्र के जातकों को स्वास्थ्य के लिए क्या सावधानियां रखनी चाहिए?
उत्तर: वात दोष प्रधान होने से श्वसन, हृदय और मानसिक तनाव पर विशेष ध्यान देना चाहिए, साथ ही नियमित प्राणायाम और आयुर्वेदिक उपाय करना लाभकारी होता है।
प्रश्न 5: इस नक्षत्र के जातकों के लिए कौन से रंग और दिन शुभ माने जाते हैं?
उत्तर: पीला पुखराज रत्न शुभ रहता है; शनिवार और बुधवार दिन उपयुक्त हैं।

अनुभव: 19
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