By पं. नीलेश शर्मा
जानिए सप्तम भाव का वैदिक महत्व, विवाह, दांपत्य सुख, साझेदारी, जीवनसाथी और सामाजिक छवि पर इसके प्रभाव व उपाय
वैदिक ज्योतिष में जन्मकुंडली का सप्तम भाव (7th House) अत्यंत महत्वपूर्ण भावों में से एक है। यह भाव न केवल वैवाहिक जीवन और जीवनसाथी से संबंधित होता है, बल्कि साझेदारी, सम्बंधों की गहराई और परस्पर सहयोग का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह चार केंद्र (केन्द्र) भावों में से एक है और व्यक्ति के जीवन के मध्य से उत्तरार्ध (50 से 75 वर्ष) तक के अनुभवों को भी प्रभावित करता है। लग्न कुंडली में यह भाव "दूसरे व्यक्ति" से संबंधित सभी पहलुओं को दर्शाता है, जिसमें संबंधों की गहराई, सामंजस्य और चुनौतियाँ शामिल हैं। सातवाँ भाव न केवल विवाह को प्रभावित करता है, बल्कि यह व्यक्ति के सामाजिक समीकरण और सार्वजनिक छवि का भी दर्पण है।
तत्व | विवरण |
---|---|
भाव संख्या | सप्तम (7th) |
स्वाभाविक राशि | तुला (Libra) |
कारक ग्रह | शुक्र (Venus) |
तत्त्व (Element) | वायु (Air) |
भाव का प्रकार | केंद्र भाव, जीवन के सहयोगात्मक क्षेत्र |
शरीर से संबंध | जननेंद्रिय, कमर, प्रजनन शक्ति |
कालपुरुष कुंडली में राशि | तुला (Libra) |
सातवाँ भाव निम्नलिखित क्षेत्रों को प्रभावित करता है:
विदेश में बसने या काम करने के अवसर और कानूनी मामलों में सफलता।
समाज में प्रतिष्ठा, व्यक्तिगत ब्रांडिंग और लोगों से जुड़ाव।
ग्रह | शुभ / अशुभ | प्रभाव |
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शुक्र | शुभ | विवाह में आकर्षण, प्रेम और सौंदर्य देता है |
गुरु | शुभ | वैवाहिक जीवन में धर्म, नैतिकता और गरिमा |
शनि | अशुभ | विलंब, दूरी, लेकिन गहराई भी |
राहु | अशुभ | प्रेमविवाह, लेकिन भ्रम और चुनौतीपूर्ण दांपत्य |
मंगल | अशुभ | ऊर्जा, लेकिन मंगल दोष संभव |
बुध | शुभ | संवादशील जीवनसाथी, बौद्धिकता |
कुंडली का सप्तम भाव व्यक्ति के जीवन में गहरे संबंधों, साझेदारी और दांपत्य जीवन की दिशा तय करता है। यह भाव न केवल विवाह की संभावना, समय और स्वरूप को दर्शाता है, बल्कि जीवनसाथी के साथ भावनात्मक, मानसिक और सामाजिक जुड़ाव का भी संकेतक है। यदि यह भाव और इसका स्वामी मजबूत हो, तो जातक का जीवन स्थिर, सहयोगात्मक और सफल दांपत्य के साथ आगे बढ़ता है।
अनुभव: 25
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