By पं. नीलेश शर्मा
26 जून से 4 जुलाई तक दस महाविद्याओं की आराधना से सिद्धि और आत्मिक जागरण का विशेष अवसर
हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक मनाई जाने वाली आषाढ़ गुप्त नवरात्रि तंत्र-साधना, आत्म अनुशासन और आंतरिक रूपांतरण का विशिष्ट काल है। 2025 में यह पर्व 26 जून (गुरुवार) से 4 जुलाई (शुक्रवार) तक मनाया जाएगा। इन नौ दिनों में साधक माँ दुर्गा के दस गुप्त रूप-दश महाविद्या-का पूजन करते हैं। प्रत्येक देवी ब्रह्मांडीय शक्ति का विशिष्ट पहलू दिखाती है और साधक को भय, अज्ञान तथा बाधाओं से मुक्ति दिलाकर चेतना की उच्च अवस्थाओं तक ले जाती है।
क्रम | महाविद्या | मूल शक्ति (तत्त्व) | प्रमुख लाभ | बीज-मन्त्र (स्मरणार्थ) |
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1 | महाकाली | काल-नियामक, रूपांतरण | अहंकार विनाश, भयमुक्ति | क्रीं |
2 | तारा | दिशा-दर्शी, संरक्षण | संकट मोचन, वाक्-शक्ति | ह्रीं |
3 | त्रिपुरा सुन्दरी (षोडशी) | सौन्दर्य, त्रिपुटी-सामंजस्य | प्रेम, समृद्धि, आकर्षण | श्रीं |
4 | भुवनेश्वरी | आकाश-तत्त्व, विस्तार | आत्म-विश्वास, व्यापकता | ह्रीं |
5 | छिन्नमस्ता | आत्मबलिदान, जागृति | अहं-त्याग, तीक्ष्ण बौद्धिकता | हुं |
6 | त्रिपुर भैरवी | तप, अनुशासन | साहस, लक्ष्य-केन्द्रितता | ह्रीं |
7 | धूमावती | शून्यता, वैराग्य | वैराग्य, मायाभेद ज्ञान | धूं |
8 | बगलामुखी | स्तम्भन शक्ति | शत्रु-निवारण, वाणी-नियन्त्रण | ह्लीं |
9 | मातंगी | वाणी, कला | वाक्-सिद्धि, रचनात्मकता | ह्रीं |
10 | कमला | लक्ष्मी-तत्त्व, पूर्णता | धन, सौभाग्य, संतोष | ह्रीं श्रीं |
तिथि | सप्ताह-दिन | देवी-आराधना का मुख्य रूप | साधना-सुझाव |
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26 जून, प्रतिपदा | गुरुवार | महाकाली | काल-दोष शमन, रक्त चन्दन से दीप-पूजन |
27 जून, द्वितीया | शुक्रवार | तारा | पीला पुष्प, शहद नैवेद्य |
28 जून, तृतीया | शनिवार | त्रिपुरा सुन्दरी | लाल पुष्प, शृंगार सामग्री |
29 जून, चतुर्थी | रविवार | भुवनेश्वरी | साबूदाना-जल अर्पण, अष्टदलकमल ध्यान |
30 जून, पंचमी | सोमवार | भैरवी | लाल कपड़ा, मौन साधना |
1 जुलाई, षष्ठी | मंगलवार | छिन्नमस्ता | नीम पत्ते हवन, निर्भय भाव |
2 जुलाई, सप्तमी | बुधवार | धूमावती | तिल धूप, एकांतिक जप |
3 जुलाई, अष्टमी | गुरुवार | बगलामुखी | पीत वस्त्र, हल्दी-गुग्गुल हवन |
4 जुलाई, नवमी | शुक्रवार | मातंगी-कमला संयुक्त पूजन | मिष्ठान्न, दीपदान, कन्या-पूजन |
नोट - नवमी तिथि पर कन्या-भोजन तथा कमला अर्चन करने से साधना पूर्ण फल देती है।
दश महाविद्या मानो एक-एक दीप-स्तम्भ हों, जो साधक के भीतर छिपी शक्तियों को जगाते हैं। महाकाली की तीव्रता जब भय हटाती है, तब तारा का करुणामय आलोक राह दिखाता है। त्रिपुरा सुन्दरी का सौन्दर्य अंतःकरण को सजाता है, तो भुवनेश्वरी की विशाल बाहें जीवन को विस्तृत कर देती हैं। छिन्नमस्ता का बलिदान अहं को गलाता है, भैरवी का तेज दृढ़ता देता है। धूमावती सिखाती हैं कि शून्यता भी ज्ञान का द्वार है, बगलामुखी चंचल मन को स्तंभित कर देती हैं। मातंगी वाणी को मधुर बनाती हैं, और अंत में कमला हृदय में संतोष का कमल खिला देती हैं।
इन नौ रातों की मौन साधना में मन जब अंधेरे में उतरता है, तो भीतर के अनगिनत प्रश्नों को यही दस शक्तियाँ उत्तर देती हैं-यही है गुप्त नवरात्रि का गूढ़ सौन्दर्य।
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 2025 साधकों को अदृश्य आंतरिक शक्तियों तक पहुँचने का स्वर्ण अवसर देती है। दस महाविद्याओं की आराधना भय, बाधा और अज्ञान को नष्ट कर साहस, शांति, समृद्धि और दिव्य चेतना की वर्षा करती है। श्रद्धा, नियम और निस्पृह भाव से की गई यह साधना हर जिज्ञासु के जीवन में नई भोर का द्वार खोलती है।
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