By पं. संजीव शर्मा
धर्मगुप्त और ब्राह्मणी की पौराणिक कथा से जानिए श्रद्धा और प्रदोष व्रत के चमत्कारी प्रभाव
प्रदोष व्रत हिन्दू धर्म में भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित एक अत्यंत पुण्यदायी व्रत है, जो प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल (संध्या का विशेष समय) में रखा जाता है। वैदिक मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से साधक के जीवन से पाप, रोग, बाधाएं और दरिद्रता दूर होती है। प्रदोष व्रत की कथा न केवल श्रद्धा और भक्ति का संदेश देती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि कठिन परिस्थितियों में भी ईश्वर-विश्वास और सत्कर्म जीवन को कैसे बदल सकते हैं।
बहुत समय पहले एक नगर में एक निर्धन ब्राह्मणी अपने छोटे पुत्र के साथ रहती थी। पति के निधन के बाद वह भिक्षा मांगकर अपने और पुत्र का पालन-पोषण करती थी। जीवन कठिन था, लेकिन ब्राह्मणी का मन भगवान शिव की भक्ति में अडिग था। एक दिन, भिक्षा से लौटते समय उसे नदी किनारे एक घायल बालक मिला। दया से प्रेरित होकर ब्राह्मणी उसे अपने घर ले आई और पुत्रवत उसका पालन करने लगी।
वह बालक कोई साधारण नहीं था-वह विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था, जिसके पिता को शत्रुओं ने युद्ध में मार डाला था और राज्य छीन लिया था। माता के वियोग और राज्य से निष्कासन ने उसे बेसहारा बना दिया था। ब्राह्मणी ने दोनों बालकों के साथ जीवन की कठिनाइयों का सामना किया और भक्ति के मार्ग पर अग्रसर रही।
एक दिन, ब्राह्मणी अपने दोनों पुत्रों के साथ देवमंदिर गई, जहां उनकी भेंट ऋषि शांडिल्य से हुई। ऋषि ने ब्राह्मणी को धर्मगुप्त के अतीत के बारे में बताया और प्रदोष व्रत की महिमा समझाई। ऋषि के निर्देशानुसार ब्राह्मणी और दोनों बालकों ने श्रद्धा से प्रदोष व्रत करना शुरू किया।
कुछ समय बाद, दोनों बालक वन में घूमते हुए गंधर्व कन्याओं से मिले। राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नामक गंधर्व कन्या के प्रति आकर्षित हो गया। कुछ समय बाद अंशुमती के माता-पिता ने भगवान शिव के स्वप्नादेश के अनुसार धर्मगुप्त और अंशुमती का विवाह कर दिया।
विवाह के बाद धर्मगुप्त ने गंधर्वों की सहायता से विदर्भ पर पुनः अधिकार प्राप्त किया और अपने पिता के राज्य को फिर से स्थापित किया। उसने ब्राह्मणी और उसके पुत्र को राजमहल में सम्मानपूर्वक बुलाया। जब अंशुमती ने धर्मगुप्त से उसके जीवन में आए सुख-समृद्धि का रहस्य पूछा, तो धर्मगुप्त ने प्रदोष व्रत की महिमा बताई। इसके बाद अंशुमती ने भी नियमित रूप से प्रदोष व्रत रखना शुरू किया।
प्रदोष व्रत के प्रभाव से ब्राह्मणी, धर्मगुप्त और अंशुमती के जीवन में सुख, सम्मान और समृद्धि का संचार हुआ। यह कथा दर्शाती है कि श्रद्धा, भक्ति और नियमपूर्वक व्रत करने से जीवन में असंभव भी संभव हो जाता है और भगवान शिव की कृपा साधक को हर संकट से उबारती है।
प्रदोष व्रत का समय (प्रदोष काल) सूर्य और चंद्रमा की ऊर्जा के संतुलन का काल है, जब साधना और जप का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। यह काल ग्रह दोष, मानसिक तनाव, और पारिवारिक कलह को शांत करने का श्रेष्ठ समय है। प्रदोष व्रत करने से शनि, राहु-केतु जैसे ग्रहों के अशुभ प्रभाव भी शांत होते हैं।
प्रदोष व्रत की कथा केवल एक धार्मिक आख्यान नहीं, बल्कि जीवन में आस्था, सेवा, नियम, और भक्ति का गहरा संदेश है। यह व्रत साधक को न केवल आध्यात्मिक उन्नति, बल्कि सांसारिक सुख, सफलता और शिव कृपा का अधिकारी भी बनाता है। श्रद्धा और नियम से प्रदोष व्रत करने पर जीवन के हर संकट दूर होते हैं और साधक को परम शांति, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
अनुभव: 15
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