साल भर की पूजा-अर्चना और व्रतों के बीच देवउठनी ग्यारस का पर्व एक विशेष स्थान रखता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक जीवन में भी नई ऊर्जा, शुभता और मंगल कार्यों की शुरुआत का प्रतीक है। आइए जानें, देवउठनी ग्यारस कब मनाई जाती है, इसका महत्व क्या है और इसकी पूजन विधि क्या है।
कब मनाई जाती है देवउठनी एकादशी?
- तिथि: कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष की एकादशी (देवउठनी एकादशी)
- 2025 में तिथि: शनिवार, 1 नवम्बर 2025
- पारण का समय: 2 नवम्बर को 01:31 PM से 03:46 PM
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 1 नवम्बर 2025, सुबह 9:11 बजे
- एकादशी तिथि समाप्त: 2 नवम्बर 2025, सुबह 7:31 बजे
देवउठनी एकादशी का महत्व
- भगवान विष्णु के जागरण का पर्व: मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवउठनी ग्यारस) को जागते हैं। इस दिन से ही शुभ कार्य जैसे विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन आदि फिर से शुरू हो जाते हैं।
- तुलसी विवाह और शालिग्राम पूजन: इस पर्व पर तुलसी विवाह का विशेष महत्व है। तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराकर भक्त जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य की कामना करते हैं।
- धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ: स्कंद पुराण और भागवत गीता के अनुसार, इस दिन व्रत और पूजा करने से जीवन में सुख-शांति, पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है। तुलसी पत्र अर्पण करने से हजारों गौदान के बराबर फल मिलता है।
- समाज में नई शुरुआत: देवउठनी ग्यारस के बाद ही समाज में सभी मांगलिक कार्य आरंभ होते हैं। यह पर्व जीवन में नए उत्साह, सकारात्मकता और शुभता का संचार करता है।
देवउठनी एकादशी की व्रत कथा
पुराणों के अनुसार, एक राजा और उसकी प्रजा एकादशी का व्रत रखते थे। एक दिन एक व्यक्ति ने राजा से नौकरी मांगी, शर्त थी कि एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा। व्यक्ति ने शर्त मान ली, लेकिन एकादशी पर भूख से व्याकुल होकर अन्न की मांग की। राजा ने दया कर अन्न दे दिया। उस व्यक्ति ने भोजन बनाकर भगवान को बुलाया और भगवान साक्षात प्रकट होकर उसके साथ भोजन करने लगे। राजा ने यह दृश्य देखा और समझा कि सच्ची श्रद्धा, भक्ति और मन की शुद्धता से ही भगवान की कृपा प्राप्त होती है, न कि केवल बाहरी आडंबर से।
पूजन विधि और विशेष परंपराएं
- प्रातः स्नान कर साफ वस्त्र पहनें, भगवान विष्णु का स्मरण करें।
- तुलसी के गमले को गोबर या गेरू से लीपकर पूजन चौकी सजाएं।
- घर या मंदिर में गन्ने का मंडप बनाएं, उसमें लक्ष्मीनारायण के शालिग्राम स्वरूप की स्थापना करें।
- कलश स्थापना, आंवला, सिंघाड़ा, मौसमी फल, गन्ने से भोग लगाएं।
- तुलसी के चारों ओर तोरण सजाएं, रंगोली बनाएं।
- तुलसी का आह्वान दशाक्षरी मंत्र से करें, घी का दीपक जलाएं, धूप दिखाएं।
- तुलसी को वस्त्र, अलंकार से सजाएं, चारों ओर दीप जलाएं।
- संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपति तुलसी नामाष्टक का पाठ करें।
- दिनभर व्रत रखें, रात में फलाहार, दूध या जूस लें।
- तुलसी विवाह की रस्म निभाएं, मंगल गीत गाएं, प्रसाद वितरित करें।
देवउठनी एकादशी के मंत्र
तुलसी मंत्र
- देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः।
- नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
- ॐ श्री तुलस्यै विद्महे। विष्णु प्रियायै धीमहि। तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।।
- श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वृन्दावन्यै स्वाहा।
भगवान विष्णु को जगाने का मंत्र
- उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
- त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥
- उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
- शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।
पारण विधि
- द्वादशी तिथि में, हरि वासरा समाप्त होने के बाद व्रत का पारण करें।
- प्रातःकाल या मध्याह्न के बाद व्रत तोड़ें।
- पारण के समय भगवान विष्णु का स्मरण कर फल, जल या अन्न ग्रहण करें।
जीवन में शुभता का संदेश
देवउठनी ग्यारस केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह जीवन में नवीनता, श्रद्धा और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने का अवसर है। जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं, तब संसार में भी नई आशा, उत्साह और मंगल कार्यों का आरंभ होता है। इस दिन की पूजा, कथा और व्रत जीवन में संतुलन, सुख-शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है। हर वर्ष यह पर्व हमें याद दिलाता है कि सच्ची श्रद्धा और मन की शुद्धता से ही ईश्वर की कृपा और जीवन में शुभता आती है।