By पं. नीलेश शर्मा
श्रीकृष्ण में वृषभ लग्न के ज्योतिषीय गुण, जीवन घटनाएं और प्रेरक संदेश
मथुरा के रहस्यमयी मध्यरात्रि में, जब काल का प्रवाह करवट बदल रहा था और कंस का आतंक अपने चरम पर था, उसी पल भगवान श्रीकृष्ण वृषभ लग्न के उदय के साथ धरती पर प्रकट हुए। वैदिक ज्योतिषियों और आध्यात्मिक जिज्ञासुओं के लिए यह कोई साधारण संयोग नहीं बल्कि श्रीकृष्ण की चमत्कारी, आकर्षक और सकारात्मक जीवनी के केंद्र में छुपा एक महान रहस्य है।
ज्योतिष के अनुसार लग्न व्यक्ति के बाह्य व्यवहार, जीवन में पहल और संबंधों की अभिव्यक्ति का मूल है। श्रीकृष्ण जैसे गूढ़ आत्मा के लिए वृषभ लग्न न केवल उनका बाह्य व्यवहार तय करता था, बल्कि उनकी हर लीला, नीति और जीवन के केंद्र में विशिष्ट रंग भरता था।
वृषभ, शुक्र से शासित पृथ्वी तत्व की राशि है। यह स्थायित्व, विश्वासनीयता, गहरी निष्ठा, सौंदर्य प्रेम, कोमल भाव व सहज आकर्षण का द्योतक है। वृषभ लग्न वाले व्यक्ति प्राकृतिक रूप से शांत, स्थिरचित्त, संघर्ष में भी संतुलित और प्रकृति व भौतिक जीवन की लय से जुड़ाव रखते हैं।
परंतु, वृषभ केवल प्रेम या सौंदर्य नहीं बल्कि आंतरिक धैर्य, अदम्य संकल्प एवं संरक्षक स्वभाव भी देता है। जैसे वृषभ (बैल) मौन शक्ति और सहनशीलता का प्रतीक है, वैसे ही वृषभ लग्न कर्ता को सही समय तक प्रतीक्षा करना, कठिनाइयों में डटे रहना और अंदरूनी संतुलन बनाए रखने की शक्ति देता है।
श्रीकृष्ण का अध्भुत आकर्षण, रूप, संगीत का प्रेम (विशेषकर बंसी) और अद्भुत भक्ति जगाने की शक्ति, ये सभी वृषभ लग्न की देन हैं। शुक्र के प्रभाव में कृष्ण ब्रज के केंद्र में सौंदर्य, माधुर्य और लयबद्ध प्रेम के साकार स्वरूप बने। गोपियां, गोप, शत्रु, राजा, सब कृष्ण की इसी आकर्षण शक्ति से बंधे थे।
बालपन के संकट, कंस की धमकी, महाभारत के युद्ध, या द्वारका की नैतिक चुनौतियाँ, कृष्ण ने हर परिस्थिति में भावनात्मक संतुलन नहीं खोया। वृषभ लग्न की यह निर्णायक विशेषता थी, यशोदा को ढांढस, अर्जुन को रणभूमि में शांति, या स्वयं के कष्ट में भी अशांत न होना।
वृषभ पृथ्वी से जुदा हुआ है, जीवन के भौतिक सुख-दुख का जानकार। कृष्ण ने संसार के रस को भरपूर जिया, माखन, रास, संगीत, प्रेम, फिर भी हर आनंद को अध्यात्म का पर्व बना दिया। जीवन के हर क्षण को लीला बना, हर उत्सव को भक्ति का माध्यम, यह वृषभ आदर्श था, सुख का भी वैराग्य में रूपांतरण।
वृषभ लग्न वाले स्वभाव से ही निष्ठावान, रक्षक और दूसरों को शक्ति देने वाले होते हैं। कृष्ण ने मित्रों के लिए जीवन का जोखिम उठाया, अर्जुन के सारथी-मित्र बने और यदुवंश की पूरी प्रजा को स्थायी सुरक्षा दी। उनका पोषणकारी भाव केवल मातृत्व नहीं बल्कि शक्ति देने वाला, समर्थक था।
वृषभ की सबसे उन्नत कला है धैर्य, सही समय की प्रतीक्षा और नपे-तुले समय पर कार्य। श्रीकृष्ण के सभी निर्णय, मटकी फोड़ने की लीला, समस्याओं को धैर्य से सुनना, गीता का उपदेश, उनके निर्णय में कभी भी जल्दबाजी नहीं थी। चाहे संघर्ष हो अथवा युद्ध, कृष्ण ने धैर्य, संयम और मनःशक्ति का श्रेष्ठतम प्रयोग किया।
शुक्र के अधिपत्य में वृषभ लग्न संगीत, कला, प्रेम, शुभता का प्रतीक है। कृष्ण के रोमांच, उनकी लीलाओं, रासलीला और सदियों तक कला-संगीत-मूर्ति में पूजे जाने का मूल इसी शुक्र प्रधान स्वरूप में है।
वृषभ लग्न, रोहिणी में उच्च चंद्र, शुक्र की कृपा और श्रीकृष्ण की कुंडली में प्रबल योगों का अद्भुत संघटन, एक ऐसा चरित्र गढ़ता है, जो असमान्य आकर्षक, पर हर संकट में अडिग, हर परिस्थिति में दृढ़ बना रहता है। वृषभ लग्न ने श्रीकृष्ण को यही शिक्षा दी: सुख-दुख में स्थिर रहो, उद्देश्य से विचलित न हो, संसार का सौंदर्य सराहो, पर उसमें लिप्त न हो।
श्रीकृष्ण का जीवन केवल पौराणिक कथा नहीं, वह हर उस स्थान पर जीवित है, जहां धैर्य कोमलता बनकर चमकता है, जहां सौंदर्य साधना है और जहां विवेक दिल के साथ चलता है। श्रीकृष्ण का वृषभ लग्न वह प्रकाश है, जो आज भी आत्मबल, आकर्षण, सौंदर्य और प्रेम को जगाता है।
प्र. श्रीकृष्ण के जीवन में वृषभ लग्न की मुख्य भूमिका क्या थी?
उत्तर: स्थिरता, आकर्षण, सौंदर्यप्रेम, धैर्य, निष्ठा, रक्षक स्वभाव और संतुलित जीवन सबसे बड़े गुण रहे।
प्र. वृषभ लग्न के गुण श्रीकृष्ण की किन लीलाओं में विशेष दिखते हैं?
उत्तर: माखनचोरी, रासलीला, धर्म-शिक्षा, संकट में धैर्य और अपनों की सुरक्षा में।
प्र. शुक्र के प्रभाव से जीवन-शैली पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: सौंदर्य, संगीत, प्रेम व कला का उद्भव, तथा सरल संसार को भी दिव्यता से जोड़ना।
प्र. वृषभ लग्न आधुनिक जीवन के लिए क्या प्रेरणा देता है?
उत्तर: संयम, संतुलन, कर्म में शांति, सौंदर्य और स्थायी प्रेम, ये सब सीखने योग्य हैं।
प्र. वृषभ लग्न व रोहिणी नक्षत्र का संयोजन क्यों विशेष है?
उत्तर: यह संयोजन पूर्णता, सौंदर्य, पोषण और स्थायित्व का सर्वोच्च मानक है, जिसे श्रीकृष्ण ने सम्पूर्णता से जिया।
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