By पं. अमिताभ शर्मा
शास्त्रों की विवेचना एवं ज्योतिष के गूढ़ विश्लेषण के साथ श्रीराम के जीवन के योग, आदर्श और शिक्षाएं
श्रीराम का जन्म केवल एक धार्मिक घटना नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति, वेदांत और ज्योतिष विज्ञान का श्रेष्ठतम उदाहरण है। उनकी जन्मकुंडली का विश्लेषण करना केवल एक ज्योतिषीय अभ्यास नहीं बल्कि राम जीवन के चरित्र, आदर्श, आत्मनियंत्रण और कर्तव्य-इन सभी सत्यों की गहराई से समझ है। रामायण और रामचरितमानस दोनों में आए श्लोक उनके जन्म के समय की नैतिकता, मौसम, नक्षत्र और ग्रहों की अनूठी दशा को अमर कर देते हैं। यह वही आदि पुरातन ज्ञान है जिसके माध्यम से आज के ज्योतिषाचार्य भी न केवल भगवान श्रीराम बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए ज्योतिषीय प्रेरणा ढूंढ सकते हैं।
श्रीराम का जन्म न केवल तिथि और समय के हिसाब से बल्कि हर दृष्टि से शुभत्व का प्रतीक रहा है।
रामचरितमानस के अनुसार:
नौमी तिथि मधुमास पुनीता, सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता।
मध्य दिवस अति सीत न घामा, पावन काल लोक बिश्रामा।।
इसका अर्थ यह है कि चैत्र माह, शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि, दोपहर अभिजित मुहूर्त-जब न अत्यधिक सर्दी थी न गर्मी-पूरे जगत के लिए विश्राम देने वाला पावन काल। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यह समय नक्षत्रों की दृष्टि से भी सर्वोत्तम था।
वाल्मीकि रामायण में विस्तृत विवरण मिलता है:
ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतूनाम् षट् समत्ययुः।
ततः च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ।।
नक्क्षत्रे अदिति दैवत्ये स्व उच्छ संस्थेषु पंचसु।
ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पता इंदुना सह।।
प्रोद्यमाने जगन्नाथम् सर्व लोक नमस्कृतम्।
कौसल्या अजनयत् रामम् सर्व लक्षण संयुतम्।।
यह श्लोक स्पष्ट बताता है कि यज्ञ के बाद छः ऋतुएं बीती, फिर चैत्र शुक्ल नवमी के शुभ दिन, पुनर्वसु नक्षत्र में, जब सूर्य, मंगल, बृहस्पति, शुक्र और शनि उच्च राशि में, कर्क लग्न में चंद्रमा और बृहस्पति के साथ, कौशल्या ने महालक्षणयुक्त राम का जन्म दिया।
तत्व | विवरण |
---|---|
तिथि | चैत्र, शुक्ल नवमी |
मुहूर्त | अभिजित, दोपहर |
नक्षत्र | पुनर्वसु (देवता - अदिति) |
लग्न | कर्क |
ग्रह | सूर्य, मंगल, बृहस्पति, शुक्र, शनि उच्च में; चंद्र-गुरु युति |
शास्त्रों और विचित्र योगों के आधार पर श्रीराम आदर्श, नैतिकता, धर्म, संयम और कर्तव्यबोध का चरम दृष्टांत हैं। वे केवल महारथियों में श्रेष्ठ धनुर्धर नहीं बल्कि प्रजा, बच्चों, ऋषियों, महिलाओं और असहायों के रक्षक, मर्यादा पालनकर्ता और कारुण्य एवं समर्पण की मूर्ति माने गए हैं। उनकी एकपत्नीव्रत की कसौटी, बाल्यकाल से नैतिकता की शिक्षा, पितृ भक्ति और न्यायप्रिय शासन आज भी आक्रांतियों के लिए मार्गदर्शक हैं।
श्रीराम की कुंडली में:
कर्क लग्न में चंद्र और गुरु का संयोग अद्वितीय गजकेसरी योग देता है। यह व्यक्तित्व, प्रभाव, सदाचार, बुद्धि और स्थायी यश का प्रतीक योग है। गुरु उच्च में-धर्म में दृढ़ता-और छठे भाव का स्वामी होने के कारण विरोधी और संकट बार-बार सामने आते हैं मगर हर बार विजय और लोकमान्यता मिलती है।
मंगल (पंचम व दशम भावस्वामी) का गुरु व चंद्र के साथ संबंध, धर्म और कर्म का शक्तिशाली योग बनाता है। कर्म, धर्म और स्व की तिकड़ी जीवन में सर्वोच्च कर्तव्य परायणता लाती है। सहायक योग - गुरु-मंगल, चंद्र-मंगल, चंद्र-गुरु-मंगल - संगठन, साहस और नीति का सर्वोपरि मिलन।
पांच उच्च ग्रहों का संयोग श्रीराम को सम्राट बनाता है, तीन महापुरुष योग उनकी असाधारणता की पुष्टि करते हैं। सूर्य (दशम भाव में) दीक्षाबला में-परम सत्ता, निर्विवाद जीत। मेष में अरूढ़ लग्न, सूर्य, मंगल; जन्म से ही साम्राज्य और उत्कृष्ट सामाजिक प्रतिष्ठा।
ग्रह | उच्च राशि | भाव / कुंडली का स्थान | योग और अर्थ |
---|---|---|---|
सूर्य | मेष | दशम/लाभ | राजयोग, दीक्षाबला |
मंगल | मकर | सप्तम | राजयोग, संघर्ष |
गुरु | कर्क | लग्न | गजकेसरी योग, धर्म |
शुक्र | मीन | नवम | सम्राट योग, सौभाग्य |
शनि | तुला | चतुर्थ | महापुरुष योग, धैर्य |
चंद्रमा | कर्क | लग्न | सौम्यता, मानसिक दृढ़ता |
शास्त्रों के मुताबिक, अरूढ़ लग्न में मंगल और सूर्य की उच्च स्थिति, उच्च परिवार में जन्म और सबसे ऊँची सामाजिक छवि दर्शाती है। उपपद लग्न व शुक्र की उच्चता मां सीता की सुसंस्कारिता, सुंदरता, विशिष्ट कुल और पवित्रता का प्रमाण है। अरूढ़, उपपद और सातवें अरूढ़ में उच्च शनि विवाह, संबंधों और जीवन छवि में बड़ी चुनौती के बावजूद, अपूर्व सफलता लाता है।
राजसी कुल में जन्माजात महापुरुष के रूप में राम की पूरी कुंडली में उच्च ग्रहों, मुख्यतः मंगल, सूर्य और चंद्र का असर साफ दिखता है।
शनि की विशेष भूमिका, धनुष टूटना कठिन पर परीक्षा में सफल, सीता का वरण। सूर्य और शुक्र की उच्चता विवाह की शुद्धता और दुनिया के सामने खुले रूप से सम्पन्नता।
शनि की उच्च स्थिति, धनुष-बाण योग, विष्णु के सप्तम अवतार बनने का गुण। परशुराम को शांत करना, भूत और भविष्य के बीच की कड़ी।
मंगल, सम्राट पद का कारक, सप्तम भाव में है-किंगशिप के बाधक बनते हैं। कर्क लग्न में राहु व शनि की दृष्टि, 14 वर्ष का वनवास, भरत द्वारा चिन्ह स्वरूप श्रीराम की खड़ाऊं सिंघासन पर।
चंद्र-गुरु की युति आंतरिक शक्ति का स्रोत और शनि-राहु त्रिकोण संघर्ष, पर विजय का मार्ग प्रशस्त करते हैं। शनि-चतुर्थ सुख भाव में, सुख और गृहस्थी बिछोह।
छठे भाव का स्वामी लग्न में-शत्रुओं के संघर्ष, पत्नी का वियोग। गुरु, सूर्य की शक्ति से धर्म, न्याय और विजय में सफलता।
मंगल-शनि की दृष्टि, ब्राह्मण शाप और संयोग-सीता से वियोग, सामाजिक मर्यादा की सर्वोच्चता। सूर्य की प्रतिष्ठा और छवि को बढ़ाने वाला त्याग।
घटना | योग और कुंडली की स्थिति | अर्थ |
---|---|---|
उच्च कुल में जन्म | मंगल, सूर्य, चंद्र उच्च में | राजसी, आदर्श जन्म |
सीता विवाह | उपपद लग्न, शुक्र उच्च | सुंदर, उपयुक्त पत्नी |
वनवास | मंगल-सप्तम, शनि-राहु दृष्टि | कठिनाई, त्याग |
परशुराम परीक्षा | शनि धनुष-बाण योग | अवतार की घोषणा |
विजय और राज्याभिषेक | सूर्य, गुरु दशम / लग्न | धर्म व कर्म की जीत |
1. श्रीराम का श्रेष्ठ जन्म और आदर्शता किस क्रम से सिद्ध होती है?
उच्च ग्रहों में सूर्य, मंगल, चंद्र, लग्न में गुरु-राजसी कुल और नैतिकता का योग है।
2. कौन से योग श्रीराम के आदर्श राजा और धर्म-पालक बनने का कारण बने?
गजकेसरी, धर्म-कर्म अधिपति योग और पंच उच्च ग्रह-सभी निर्णय धर्म पर थे।
3. ये ग्रहयोग, फिर भी श्रीराम को कठिनाइयों और वियोग से क्यों नहीं बचा सके?
राजभंग योग, मंगल-शनि दृष्टि, शुभ-योग भी जब पापग्रहों से ग्रस्त हों, तो जीवन में विपरीत घटनाएं आती हैं।
4. विवाह, पत्नी की विशिष्टता और वियोग का रहस्य क्या है?
उपपद लग्न, शुक्र उच्च - शुभ पत्नी, पर विपरीत ग्रहों के कारण शुभ संबंध में भी वियोग और सामाजिक मर्यादा सर्वोच्च बनी।
5. क्या श्रीराम की कुंडली में हर संघर्ष और सफलता का संकेत था?
हां, हर घटना-चुनौती, जीत, त्याग, विश्राम-कुंडली में शास्त्रीय रूप से दर्ज हैं।
श्रीराम की कुंडली हमें सिखाती है कि केवल धन, सत्ता या योगों की बात नहीं बल्कि अंतःकरण में धर्म, विनम्रता और कर्तव्यबोध ही सबसे बड़ी विजय है। हर व्यक्ति अपनी जन्मकुंडली के संकेत, योग और गुरुत्व को समझकर जीवन का मार्गदर्शन पा सकता है। केवल भाग्य नहीं, अपने कर्म और धर्म के बल पर मनुष्य भी मर्यादा पुरुषोत्तम बन सकता है।
अनुभव: 32
इनसे पूछें: जीवन, करियर, स्वास्थ्य
इनके क्लाइंट: छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
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