By पं. सुव्रत शर्मा
जानिए तिथि अनुसार जन्म का स्वभाव, पंचांग में तिथि वर्गीकरण, देवता स्वामी और जीवन पर तिथियों का गहरा प्रभाव

वैदिक ज्योतिष केवल ग्रहों के योग का गणित नहीं है, यह एक सूक्ष्म विज्ञान है जो मानव जीवन के हर पक्ष को ब्रह्मांडीय समय चक्र से जोड़ता है। पंचांग यानी पाँच अंगों वाला काल गणना तंत्र इसका मूल आधार है, जिसके पाँच प्रमुख अंग माने जाते हैं: वार, तिथि, नक्षत्र, योग और करण।
इन पाँचों में से तिथि यानी चंद्र दिवस अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। तिथि न केवल मुहूर्त निर्धारण के लिए उपयोगी है, बल्कि किसी व्यक्ति के जन्म तिथि का उसके स्वभाव, मनोदशा, निर्णय क्षमता और जीवन की दिशा पर गहरा प्रभाव पड़ता है। वैदिक दृष्टि से तिथि जन्म की सूक्ष्म ऊर्जा है जो मन और कर्म दोनों को प्रभावित करती है।
तिथि का निर्माण चंद्रमा और सूर्य के बीच की कोणीय दूरी से होता है। जब सूर्य और चंद्रमा के बीच 12 अंश का अंतर होता है तो एक तिथि पूर्ण मानी जाती है। इस प्रकार 360 अंश में कुल 30 तिथियाँ बनती हैं।
इन 30 तिथियों को दो पक्षों में विभाजित किया जाता है
शुक्ल पक्ष
अमावस्या से पूर्णिमा तक जब चंद्रमा प्रतिदिन बढ़ता है और प्रकाश की मात्रा में वृद्धि होती है
कृष्ण पक्ष
पूर्णिमा से अमावस्या तक जब चंद्रमा प्रतिदिन घटता है और प्रकाश की मात्रा में कमी होती है
तिथि का सीधा संबंध समय, व्यक्तित्व, मानसिक प्रवृत्ति, रोग, स्वास्थ्य, घटनाओं की प्रकृति और जीवन के उतार चढ़ाव से माना जाता है। किसी भी जन्म कुंडली में तिथि को मन के गुप्त संकेतों और भावनात्मक ढांचे का महत्वपूर्ण सूचक माना जाता है।
| पक्ष | फल |
|---|---|
| शुक्ल पक्ष | जो जातक शुक्ल पक्ष में जन्म लेते हैं वे तेजस्वी, आकर्षक, धार्मिक, उदार, समाज में प्रतिष्ठित और आत्मबल से युक्त होते हैं। वे विकासशील, सकारात्मक तथा बौद्धिक रूप से सशक्त होते हैं। |
| कृष्ण पक्ष | कृष्ण पक्ष में जन्मे जातक अधिकतर गहन विचारक, भावुक, संवेदनशील तथा गूढ़ स्वभाव वाले होते हैं। यदि कुंडली में बलवान शुभ योग हों तो ये तपस्वी, शोधकर्ता, साधक या त्यागी हो सकते हैं। इनके जीवन में संघर्ष अधिक रहता है लेकिन अंततः ये आत्मविकास की ओर अग्रसर होते हैं। |
वैदिक परंपरा में तिथियों को पाँच वर्गों में बांटा गया है। यह वर्गीकरण व्यक्तित्व, कर्म और जीवन के अनुभवों की प्रकृति को समझने में अत्यंत सहायक माना जाता है।
| प्रकार | तिथियाँ | गुणधर्म |
|---|---|---|
| नंदा | 1, 6, 11 | सुख, आनंद, उत्सव और शुभ कार्यों के लिए श्रेष्ठ। इन तिथियों में जन्मे जातक सौम्य, प्रेमशील और सौभाग्यशाली होते हैं। |
| भद्रा | 2, 7, 12 | उत्साह, वीरता, प्रशासनिक क्षमता। इन तिथियों में जन्म लेने वाले जातक बुद्धिमान, तर्कशक्ति से युक्त और कभी कभी कठोर होते हैं। |
| जया | 3, 8, 13 | युद्ध, संघर्ष और विजय का संकेत। जातक साहसी, प्रतिस्पर्धी और लक्ष्य साधक स्वभाव के होते हैं। |
| रिक्ता | 4, 9, 14 | रिक्तता, अपव्यय और अशुभता की संभावना। इन तिथियों में जन्मे जातक मानसिक द्वंद्व, अस्थिरता या धन की हानि से जूझ सकते हैं यदि अन्य योग सहायक न हों। |
| पूर्णा | 5, 10, 15 | पूर्णता, सिद्धि और संतुलन। ये तिथियाँ अत्यंत शुभ मानी जाती हैं। जातक समृद्ध, गुणवान और जीवन में संतुलित होते हैं। |
नीचे प्रत्येक तिथि के अनुसार जन्म लेने वाले जातकों के सामान्य स्वभाव और जीवन के संकेत दिए गए हैं। यह फल जन्म कुंडली के अन्य योगों के साथ मिलाकर देखने पर और अधिक सटीक हो जाता है।
| तिथि | स्वभाव और प्रभाव |
|---|---|
| प्रतिपदा (1) | नंदा। जातक में आत्मकेन्द्रिता, अशांत मानसिकता और जिद्द हो सकती है, परंतु शुभ योग होने पर ये प्रभावी नेतृत्वकर्ता बनते हैं। |
| द्वितीया (2) | भद्रा। व्यवहार में कठोरता, संवाद में वर्चस्व की भावना दिख सकती है, लेकिन प्रशासनिक कौशल और निर्णय क्षमता प्रबल होती है। |
| तृतीया (3) | जया। साहसी, सक्रिय और कभी कभी आक्रामक। नेतृत्व गुण प्रबल होते हैं और चुनौतियों से घबराते नहीं हैं। |
| चतुर्थी (4) | रिक्ता। कभी कभी दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियाँ, मानसिक उलझनें और अव्यवस्था की प्रवृत्ति। अन्य शुभ योग संतुलन ला सकते हैं। |
| पंचमी (5) | पूर्णा। भोगप्रिय, कला प्रेमी और सौंदर्य को समझने वाले। सृजनात्मकता और सौंदर्य बोध इनके जीवन की बड़ी ताकत बनता है। |
| षष्ठी (6) | नंदा। यात्रा की अधिकता, उदर विकारों की संभावना, परंतु मधुर वाणी और संबंधों में विनम्रता दिखाई देती है। |
| सप्तमी (7) | भद्रा। विद्या में निपुण, गंभीर विचारक और धार्मिकता की ओर झुकाव। पढ़ाई और ज्ञान अर्जन में स्थिर रुचि रखते हैं। |
| अष्टमी (8) | जया। तंत्र मंत्र और गूढ़ विषयों में रुचि। चतुर, रणनीतिक और मानसिक रूप से तीव्र। विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्यवान रहते हैं। |
| नवमी (9) | रिक्ता। त्यागी, धार्मिक और दानी। कभी कभी विचारों में अतिवाद या कठोरता दिख सकती है, जिसे संतुलित करना आवश्यक होता है। |
| दशमी (10) | पूर्णा। निष्पक्ष, न्यायप्रिय और यज्ञ व कर्मकांड में रुचि। समाज और परिवार में संतुलनकारी भूमिका निभाने की क्षमता होती है। |
| एकादशी (11) | नंदा। उपवास, व्रत और मोक्ष की ओर प्रवृत्ति। धार्मिक चरित्र और संयमी जीवनशैली इनका प्रमुख गुण होता है। |
| द्वादशी (12) | भद्रा। अधिक यात्रा, व्यवसायिक बुद्धि और व्यवहारिक सोच। शारीरिक कमजोरी या थकान की प्रवृत्ति संभव रहती है। |
| त्रयोदशी (13) | जया। संकल्पवान, दानशील और धार्मिक कृत्यों में दक्ष। अपने लक्ष्य के प्रति लंबे समय तक प्रतिबद्ध रह सकते हैं। |
| चतुर्दशी (14) | रिक्ता। अद्भुत साहस और वीरता, लेकिन मानसिक संघर्ष और आंतरिक द्वंद्व अधिक हो सकता है। इन्हें मानसिक संतुलन पर विशेष ध्यान देना चाहिए। |
| पूर्णिमा / अमावस्या (15) | पूर्णा। पूर्णिमा पर जन्मे जातक भावुक, धनवान, कलाप्रिय और बुद्धिमान होते हैं। अमावस्या पर जन्मे जातक गूढ़, मौनप्रिय और कभी कभी आत्मकेंद्रित होते हैं, परंतु उनमें आत्मोन्नति की क्षमता अत्यंत प्रबल रहती है। |
तिथि के प्रभाव को समझने के लिए तिथियों के अधिष्ठाता देवता या ग्रह स्वामी को जानना भी आवश्यक है। प्रत्येक तिथि का एक अधिष्ठाता देवता या ग्रह माना गया है जो उस तिथि की ऊर्जा, स्वभाव और उस दिन किए जाने वाले कार्यों की प्रकृति को प्रभावित करता है। विशेष रूप से तिथि शुद्धि, व्रत, यज्ञ, विवाह और अन्य महत्वपूर्ण संस्कारों में इन अधिष्ठाताओं को ध्यान में रखा जाता है।
| तिथि | स्वामी ग्रह / देवता |
|---|---|
| प्रतिपदा | अग्नि देव |
| द्वितीया | ब्रह्मा |
| तृतीया | गौरी (पार्वती) |
| चतुर्थी | गणेश जी |
| पंचमी | नाग देवता |
| षष्ठी | कार्तिकेय |
| सप्तमी | सूर्य देव |
| अष्टमी | दुर्गा माता |
| नवमी | दण्डिनी (चामुंडा) |
| दशमी | धर्मराज (यम) |
| एकादशी | विष्णु भगवान |
| द्वादशी | हनुमान जी / नारायण |
| त्रयोदशी | कामदेव |
| चतुर्दशी | शिव जी |
| पूर्णिमा / अमावस्या | चंद्रमा / पितृगण |
वैदिक ज्योतिष यह सिखाता है कि जन्म की तिथि केवल कैलेंडर की इकाई नहीं होती, वह व्यक्ति के जीवन का ब्रह्मांडीय डीएनए होती है। जिस भी तिथि में जन्म होता है, उस तिथि का स्वभाव हमारे स्वभाव, कर्म, भाग्य और आध्यात्मिक यात्रा पर प्रभाव डालता है।
यदि किसी की कुंडली में तिथि की प्रकृति के विपरीत प्रबल शुभ योग उपस्थित हों, तो वे जन्म दोषों को काफी हद तक संतुलित कर सकते हैं। इसलिए तिथि का अध्ययन हमेशा कुंडली के समग्र विश्लेषण के साथ ही करना चाहिए, ताकि सटीक निष्कर्ष तक पहुंचा जा सके।
1.क्या केवल तिथि देखकर ही किसी व्यक्ति का स्वभाव तय किया जा सकता है
केवल तिथि के आधार पर संपूर्ण स्वभाव नहीं बताया जा सकता। जन्म कुंडली में लग्न, ग्रहों की स्थिति, नक्षत्र और योग भी उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं। तिथि एक महत्वपूर्ण संकेतक है, परंतु इसे अन्य कारकों के साथ जोड़कर ही देखना चाहिए।
2.शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में जन्म का फर्क कितना महत्वपूर्ण होता है
शुक्ल पक्ष में जन्म आमतौर पर उन्नति, विस्तार और बाहरी विकास से जुड़ा माना जाता है, जबकि कृष्ण पक्ष में जन्म गहनता, संवेदनशीलता और आंतरिक रूपांतरण से जुड़ा होता है। दोनों ही पक्ष आवश्यक हैं और संतुलन के साथ जीवन को दिशा देते हैं।
3.रिक्ता तिथियों में जन्म लेना क्या हमेशा अशुभ माना जाता है
रिक्ता तिथियाँ चुनौतियों और रिक्तता का संकेत अवश्य देती हैं, लेकिन यदि कुंडली में शुभ ग्रहों के बलवान योग हों, तो ये व्यक्ति संघर्षों से ऊपर उठकर बड़ी उपलब्धि हासिल कर सकते हैं। केवल तिथि के आधार पर किसी को अशुभ नहीं माना जाता।
4.क्या तिथि के अधिष्ठाता देवता की पूजा करने से जन्म दोष कम हो सकते हैं
परंपरागत मान्यता के अनुसार, अपनी जन्म तिथि के अधिष्ठाता देवता की नियमित पूजा, जप या स्मरण से मनोबल बढ़ता है और तिथि से जुड़े नकारात्मक प्रभाव कम हो सकते हैं। यह उपाय सद्भावना और श्रद्धा के साथ किया जाए तो लाभकारी माना जाता है।
5.कुंडली विश्लेषण में तिथि को किस प्रकार महत्व दिया जाता है
कुंडली विश्लेषण में तिथि को चंद्रमा की स्थिति, नक्षत्र, योग और भावों के साथ संयोजन में देखा जाता है। यह मन की प्रवृत्ति, भावनात्मक प्रतिक्रियाओं, कर्मों की दिशा और आध्यात्मिक रुचि को समझने में एक महत्वपूर्ण आधार प्रदान करती है।
जन्म नक्षत्र मेरे बारे में क्या बताता है?
मेरा जन्म नक्षत्र
अनुभव: 27
इनसे पूछें: विवाह, करियर, संपत्ति
इनके क्लाइंट: छ.ग., म.प्र., दि., ओडि
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