By पं. संजीव शर्मा
जानिए पंचांग की विशेष तिथियों-क्षीण, वृद्धि और संधि-का अर्थ, ज्योतिषीय महत्व और जीवन में इनकी भूमिका

पंचांग, जिसे संस्कृत में पंचाङ्गम् कहा जाता है, वैदिक ज्योतिष का मूल आधार है। यह पंच, यानी पाँच, और अंग, यानी अवयव, से मिलकर बना है, जो हैं तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण। किसी भी शुभ या निषिद्ध कार्य की तिथि निर्धारित करने के लिए पंचांग अनिवार्य माना गया है।
इसमें सबसे पहला अंग तिथि है, जो चंद्रमा और सूर्य के बीच की कोणीय दूरी पर आधारित होती है। प्रत्येक तिथि सूर्य और चंद्र के बीच 12 अंश की दूरी को दर्शाती है और एक चंद्र मास में कुल 30 तिथियाँ होती हैं, 15 शुक्ल पक्ष और 15 कृष्ण पक्ष। परंतु कभी कभी यह तिथियाँ सामान्य रूप में नहीं घटती बढ़तीं, बल्कि उनमें विशेष परिवर्तन होते हैं जिन्हें वैदिक ज्योतिष में क्षीण तिथि, वृद्धि तिथि और तिथि संधि कहा गया है।
जब कोई तिथि सूर्योदय के बाद प्रारंभ होकर, अगले सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो जाए और उस तिथि ने किसी भी सूर्योदय को न देखा हो, तो उसे क्षीण तिथि या लुप्त तिथि कहा जाता है।
मान लीजिए किसी दिन सूर्योदय तृतीया तिथि में होता है और लगभग दो घंटे बाद चतुर्थी तिथि शुरू हो जाती है। यदि यह चतुर्थी अगली सुबह के सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो जाए, तो यह तिथि पंचांग में प्रकट नहीं होती, उसे क्षीण तिथि माना जाता है।
जब कोई तिथि दो सूर्योदयों तक बनी रहे, यानी एक ही तिथि पर लगातार दो दिन सूर्योदय हो जाएँ, तो उसे वृद्धि तिथि कहा जाता है।
यदि दशमी तिथि पर सूर्योदय होता है और अगला दिन भी उसी दशमी तिथि पर सूर्योदय देखता है, तो उस दशमी तिथि को दो बार गिना जाएगा। यह एक प्रकार की तिथि वृद्धि है।
जब कोई तिथि अपनी सामान्य स्थिति में न रहकर किसी दूसरी तिथि के साथ मिल जाए या ओवरलैप हो जाए, तो उसे तिथि संधि कहा जाता है। वैदिक भाषा में इसे संयुक्त तिथि भी कहा जाता है।
| तिथि संधि का नाम | अर्थ | स्थिति |
|---|---|---|
| सिनी अमावस्या | अमावस्या + चतुर्दशी | चतुर्दशी तिथि में ही अमावस्या का योग |
| अनुमती पूर्णिमा | पूर्णिमा + चतुर्दशी | चतुर्दशी तिथि में ही पूर्णिमा का प्रवेश |
| कुहू अमावस्या | अमावस्या + प्रतिपदा | अमावस्या और अगली प्रतिपदा एक साथ |
| राका पूर्णिमा | पूर्णिमा + प्रतिपदा | पूर्णिमा और अगली प्रतिपदा एक साथ |
वैदिक पंचांग में हर तिथि को एक क्रमांक दिया गया है
तिथियों के ये अंक जन्म कुंडली निर्माण, गोचर फल विश्लेषण और व्रत या पर्व निर्धारण में सहायक होते हैं।
वैदिक पंचांग केवल एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि समय की ऊर्जा का मापक यंत्र है। तिथियों की गूढ़ता, विशेष रूप से क्षीण, वृद्धि और संधि की स्थितियाँ, यह दर्शाती हैं कि वैदिक ज्योतिष केवल खगोलीय विज्ञान नहीं, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक और दार्शनिक शास्त्र भी है।
तिथि का चयन यदि शुद्ध रूप से पंचांग और विद्वान ज्योतिषाचार्य के परामर्श से किया जाए, तो व्यक्ति के जीवन में शुभता और संतुलन बना रहता है और महत्वपूर्ण कार्य अधिक सफल होते हैं।
1.क्षीण तिथि क्यों महत्वपूर्ण मानी जाती है?
क्योंकि क्षीण तिथि सूर्योदय में प्रकट नहीं होती, अतः अनेक धर्मग्रंथों में इसे व्रत, विवाह या बड़े संस्कारों के लिए अशुभ माना गया है और इस दिन तिथि आधारित बड़े कार्य टालने की सलाह दी जाती है।
2.वृद्धि तिथि में किए गए कार्य का फल कैसा माना जाता है?
वृद्धि तिथि में किए गए कार्य का प्रभाव सामान्य से अधिक दीर्घकालिक और सशक्त माना जाता है। इसलिए विवाह, दीक्षा, प्रतिष्ठा और दीर्घकालिक संकल्प जैसे कार्यों के लिए इसे शुभ माना जाता है।
3.तिथि संधि होने पर किस तिथि को प्रधान माना जाता है?
सामान्यतः जो तिथि सूर्योदय के समय प्रबल हो, वही प्रधान मानी जाती है, पर विशेष व्रत, ग्रहण या श्राद्ध के लिए शास्त्रीय नियम और आचार्य की राय देखते हुए निर्णय किया जाता है।
4.क्या क्षीण तिथि में पूरी तरह से सभी कार्य वर्जित होते हैं?
नहीं, केवल तिथि आधारित मांगलिक, संस्कार या दीर्घकालिक प्रभाव वाले कार्यों के लिए यह वर्जित मानी जाती है। सामान्य दैनिक कार्य, व्यापार या नौकरी से जुड़े काम किए जा सकते हैं।
5.क्या वृद्धि तिथि में व्रत रखना उचित है?
कुछ परंपराओं में वृद्धि तिथि व्रत के लिए भी शुभ मानी जाती है, क्योंकि फल स्थायी माना जाता है, जबकि कुछ मतों में विशेष सावधानी सुझाई जाती है। इस स्थिति में अपने पंथ या गुरु की परंपरा देखना बेहतर है।
6.तिथि संधि का ज्योतिषीय विश्लेषण कैसे किया जाता है?
इसमें दोनों तिथियों की प्रकृति, अधिष्ठाता देवता, चंद्र स्थिति और संबंधित भावों का संयुक्त विश्लेषण किया जाता है, ताकि यह समझा जा सके कि संधि से कुल मिलाकर शुभ प्रभाव अधिक है या अशुभ।
7.क्या जन्म के समय क्षीण या वृद्धि तिथि होने पर जीवन की दिशा प्रभावित होती है?
हाँ, जन्म के समय तिथि की प्रकृति व्यक्ति के जीवन में उतार चढ़ाव, अवसरों की स्थिरता या छुपी संभावनाओं के रूप में प्रभाव डाल सकती है और इसे विस्तृत कुंडली विश्लेषण के साथ देखा जाता है।
8.सामान्य गृहस्थ को इन विशिष्ट तिथियों का कितना ज्ञान रखना चाहिए?
कम से कम इतना ज्ञान होना उपयोगी है कि क्षीण तिथि में मांगलिक कार्य टाले जाएँ, वृद्धि तिथि का सम्मान किया जाए और तिथि संधि वाले दिनों में किसी बड़े धार्मिक या कर्मकांडीय निर्णय से पहले पंचांग या आचार्य से परामर्श किया जाए।
जन्म नक्षत्र मेरे बारे में क्या बताता है?
मेरा जन्म नक्षत्र
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
इस लेख को परिवार और मित्रों के साथ साझा करें