By पं. नीलेश शर्मा
जानिए तिथि क्या है, इसकी गणना, पंचांग में महत्व, अधिष्ठाता ग्रह और वैदिक जीवन में इसकी भूमिका

पंचांग, जिसे वैदिक ज्योतिष में कालदर्शक माना गया है, केवल एक कैलेंडर भर नहीं है, बल्कि यह ब्रह्मांडीय गतियों का सटीक गणितीय और ज्योतिषीय दस्तावेज़ है। पंचांग के पाँच प्रमुख अंग तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण में तिथि का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। तिथि केवल दिन का नाम नहीं, बल्कि चंद्रमा और सूर्य के बीच के कोणीय संबंध को दर्शाती है, जो जीवन की विविध घटनाओं और शुभाशुभ स्थितियों का निर्धारण करती है।
पंचांग का शाब्दिक अर्थ है पाँच अंगों से युक्त काल सूचक। इन पाँच अंगों में सबसे पहले स्थान पर आती है तिथि। तिथि को समझे बिना कोई भी ज्योतिषीय गणना, मुहूर्त निर्धारण या कर्मकांड शुद्ध नहीं माने जाते। इसलिए चाहे व्यक्ति वैदिक ज्योतिष का विद्यार्थी हो या गृहस्थ, तिथि का ज्ञान अनिवार्य है।
तिथि चंद्रमा और सूर्य के बीच बनने वाले कोणीय अंतर को दर्शाती है। जब चंद्रमा और सूर्य के बीच का कोण 12 अंश होता है, तो एक तिथि पूर्ण मानी जाती है। इस प्रकार 360 अंश के चक्र को 30 खंडों में बाँटा गया है, जिससे एक मास में कुल 30 तिथियाँ होती हैं। इन्हें दो पक्षों में विभाजित किया जाता है
पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है और चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर। इन गतियों के कारण चंद्रमा और सूर्य के बीच जो कोण बनते हैं, वही तिथियों का निर्माण करते हैं।
शुक्ल पक्ष अमावस्या, 0 डिग्री, से पूर्णिमा, 180 डिग्री, तक
| तिथि का नाम | सूर्य चंद्र कोणीय दूरी, डिग्री |
|---|---|
| प्रतिपदा | 0° से 12° |
| द्वितीया | 12° से 24° |
| तृतीया | 24° से 36° |
| चतुर्थी | 36° से 48° |
| पंचमी | 48° से 60° |
| षष्ठी | 60° से 72° |
| सप्तमी | 72° से 84° |
| अष्टमी | 84° से 96° |
| नवमी | 96° से 108° |
| दशमी | 108° से 120° |
| एकादशी | 120° से 132° |
| द्वादशी | 132° से 144° |
| त्रयोदशी | 144° से 156° |
| चतुर्दशी | 156° से 168° |
| पूर्णिमा | 168° से 180° |
कृष्ण पक्ष पूर्णिमा, 180 डिग्री, से अगली अमावस्या, 360 डिग्री या 0 डिग्री, तक
| तिथि का नाम | सूर्य चंद्र कोणीय दूरी, डिग्री |
|---|---|
| प्रतिपदा | 180° से 192° |
| द्वितीया | 192° से 204° |
| तृतीया | 204° से 216° |
| चतुर्थी | 216° से 228° |
| पंचमी | 228° से 240° |
| षष्ठी | 240° से 252° |
| सप्तमी | 252° से 264° |
| अष्टमी | 264° से 276° |
| नवमी | 276° से 288° |
| दशमी | 288° से 300° |
| एकादशी | 300° से 312° |
| द्वादशी | 312° से 324° |
| त्रयोदशी | 324° से 336° |
| चतुर्दशी | 336° से 348° |
| अमावस्या | 348° से 360° |
प्रत्येक तिथि का एक अधिष्ठाता देवता या ग्रह स्वामी होता है। ये स्वामी तिथि के प्रभाव और उस दिन के कार्यों की प्रकृति तय करने में उपयोगी होते हैं। विशेष रूप से तिथि शुद्धि, व्रत, यज्ञ, विवाह और अन्य कर्मकांडों में इनका महत्व होता है।
| तिथि | स्वामी ग्रह या देवता |
|---|---|
| प्रतिपदा | अग्नि देव |
| द्वितीया | ब्रह्मा |
| तृतीया | गौरी, पार्वती |
| चतुर्थी | गणेश जी |
| पंचमी | नाग देवता |
| षष्ठी | कार्तिकेय |
| सप्तमी | सूर्य देव |
| अष्टमी | दुर्गा माता |
| नवमी | दण्डिनी, चामुंडा |
| दशमी | धर्मराज, यम |
| एकादशी | विष्णु भगवान |
| द्वादशी | हनुमान जी या नारायण |
| त्रयोदशी | कामदेव |
| चतुर्दशी | शिव जी |
| पूर्णिमा या अमावस्या | चंद्रमा या पितृगण |
टिप्पणी
एक तिथि का मान चंद्रमा की गति पर आधारित होता है और यह लगभग 19 से 24 घंटे तक हो सकती है। तिथि का आरंभ और समापन सूर्य उदय से नहीं, बल्कि खगोलीय स्थिति से होता है।
वैदिक परंपरा में सूर्योदय के समय जो तिथि प्रचलित हो, वही दिन की तिथि मानी जाती है। यदि कोई तिथि सूर्योदय के बाद प्रारंभ होकर अगले सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो जाए, तो वैदिक परंपरा में वह तिथि त्याज्य मानी जाती है और उसका फल नहीं ग्रहण किया जाता।
तिथि केवल एक खगोलीय अवधारणा नहीं, बल्कि वैदिक समय चक्र की संवेदनशील इकाई है। इसकी गणना, महत्ता और उपयोग का ज्ञान प्रत्येक ज्योतिषी, पुजारी और जिज्ञासु के लिए आवश्यक है। पंचांग के इस प्रमुख अंग को समझना वैदिक ज्योतिष के मूल को जानने की दिशा में एक निर्णायक कदम है।
1.क्या तिथि और अंग्रेजी डेट एक ही चीज़ हैं?
नहीं, तिथि चंद्र सूर्य के कोणीय अंतर पर आधारित होती है, जबकि अंग्रेजी डेट सूर्य आधारित ग्रेगोरियन कैलेंडर की स्थिर तारीख होती है। एक ही अंग्रेजी तारीख पर तिथि हर वर्ष बदल सकती है।
2.तिथि बदलने का सही समय कैसे जाना जाता है?
तिथि बदलने का समय खगोलीय गणना से निर्धारित होता है, जब सूर्य चंद्र के बीच का कोण 12 अंश के अगले खंड में प्रवेश करता है। पंचांग या ज्योतिष सॉफ्टवेयर में यह समय सूक्ष्म रूप से दिया रहता है।
3.क्या सभी व्रत और त्योहार तिथि के आधार पर ही तय होते हैं?
अधिकांश हिंदू व्रत, पर्व और त्योहार तिथि और नक्षत्र दोनों के संयोजन से तय किए जाते हैं, जैसे राम नवमी, जन्माष्टमी, नवरात्रि आदि। कुछ उत्सव केवल तिथि से भी निर्धारित होते हैं।
4.यदि दो तिथियाँ एक ही दिन सूर्योदय से पहले और बाद हों तो कौन सी मानी जाती है?
वैदिक नियम के अनुसार सूर्योदय के समय जो तिथि चल रही हो, वही दिन की तिथि मानी जाती है। यदि सूर्योदय से पहले तिथि बदल जाए, तो नई तिथि ही उस दिन के लिए ग्राह्य होगी।
5.त्याज्य तिथि क्या होती है?
वह तिथि जो सूर्योदय के बाद शुरू होकर अगले सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाती है, त्याज्य कहलाती है। ऐसे दिन उस तिथि से जुड़े प्रमुख संस्कार या शुभ कार्य करने की सलाह नहीं दी जाती।
6.क्या तिथियाँ व्यक्ति के स्वभाव पर भी प्रभाव डालती हैं?
हाँ, जिस तिथि में जन्म होता है, उसका अधिष्ठाता देवता और चंद्र की स्थिति मिलकर मनोवृत्ति, भावनात्मक ढाँचा और कुछ हद तक भाग्य प्रवृत्ति को प्रभावित कर सकते हैं।
7.तिथि और नक्षत्र, दोनों में कौन अधिक महत्वपूर्ण है?
दोनों ही महत्वपूर्ण हैं, बस उपयोग का क्षेत्र अलग है। तिथि व्रत, पर्व और भावनात्मक प्रवृत्तियों के लिए अधिक उपयोगी है, जबकि नक्षत्र मुहूर्त, जन्मांक, स्वभाव और सूक्ष्म ज्योतिषीय विश्लेषण के लिए अधिक महत्त्व रखता है।
8.क्या सामान्य व्यक्ति के लिए भी तिथि ज्ञान आवश्यक है?
कम से कम इतना ज्ञान कि कौन सी तिथि किस प्रकार के कार्यों के लिए शुभ या कम उपयुक्त मानी जाती है, हर व्यक्ति के लिए उपयोगी है। इससे जीवन की योजना और आध्यात्मिक अनुशासन दोनों मजबूत होते हैं।
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मेरा जन्म नक्षत्रअनुभव: 25
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