By पं. अमिताभ शर्मा
जानिए पंचांग के 27 नित्य योग, उनकी गणना, स्वभाव, शुभ-अशुभ प्रभाव और वैदिक जीवन में योग का महत्व

वैदिक ज्योतिष केवल ग्रह और नक्षत्रों की गणना नहीं है। यह एक दिव्य और गहन विज्ञान है जो व्यक्ति के जीवन के सूक्ष्म रहस्यों को खोलता है। इस विज्ञान में पंचांग का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। पंचांग पाँच अंगों से मिलकर बनता है
पंचांग का शाब्दिक अर्थ है पाँच अंगों का संगम। इसके पाँच अंग इस प्रकार हैं
योग इन पाँचों में इसलिए विशिष्ट माना जाता है क्योंकि यह मानसिक लय, भावनात्मक प्रतिक्रिया और शरीर में प्रवाहित हो रही सूक्ष्म ऊर्जा का संकेत देता है।
ज्योतिषीय दृष्टि से योग की गणना सूर्य और चंद्रमा की दीर्घताओं के योग से की जाती है
ये सभी 27 योग चंद्र मास में क्रमशः दोहराए जाते हैं और प्रत्येक योग का मानव जीवन, मनोदशा और घटना चक्र पर अपना विशिष्ट प्रभाव होता है।
| क्रम | योग का नाम | डिग्री सीमा | स्वभाव | प्रभाव / फल |
|---|---|---|---|---|
| 1 | विष्कुम्भ | 0° से 13°20′ | अशुभ | मानसिक द्वंद्व, निर्णय में बाधा |
| 2 | प्रीति | 13°20′ से 26°40′ | शुभ | प्रेम, सौहार्द, अच्छे संबंध |
| 3 | आयुष्मान | 26°40′ से 40°00′ | शुभ | दीर्घायु, स्थायित्व, अच्छा स्वास्थ्य |
| 4 | सौभाग्य | 40°00′ से 53°20′ | शुभ | विवाह के लिए अनुकूल, पारिवारिक सुख |
| 5 | शोभन | 53°20′ से 66°40′ | शुभ | आकर्षण, कला में रुचि, सौंदर्य बोध |
| 6 | अतिगण्ड | 66°40′ से 80°00′ | अशुभ | विवाद, झगड़ा, मानसिक अशांति |
| 7 | सुकर्मा | 80°00′ से 93°20′ | शुभ | अच्छे कर्म, सेवा, उत्तम यश |
| 8 | धृति | 93°20′ से 106°40′ | शुभ | निर्णय क्षमता, स्थिरता, आत्मविश्वास |
| 9 | शूल | 106°40′ से 120°00′ | अशुभ | रोग, चोट, शत्रुता, पीड़ा |
| 10 | गण्ड | 120°00′ से 133°20′ | अशुभ | भ्रम, असफलता, अपयश |
| 11 | वृद्धि | 133°20′ से 146°40′ | शुभ | वृद्धि, लाभ, प्रगति |
| 12 | ध्रुव | 146°40′ से 160°00′ | शुभ | अटलता, परंपरा से जुड़ाव |
| 13 | व्याघात | 160°00′ से 173°20′ | अशुभ | अचानक संकट, अवरोध |
| 14 | हर्षण | 173°20′ से 186°40′ | शुभ | प्रसन्नता, हर्ष, मानसिक संतोष |
| 15 | वज्र | 186°40′ से 200°00′ | अशुभ | कठोरता, दमन, रिश्तों में टकराव |
| 16 | सिद्धि | 200°00′ से 213°20′ | शुभ | सफलता, कार्य सिद्धि, लक्ष्य की प्राप्ति |
| 17 | व्यतीपात | 213°20′ से 226°40′ | अशुभ | अकारण संकट, अचानक बाधाएँ |
| 18 | वरीयान | 226°40′ से 240°00′ | शुभ | श्रेष्ठता, मान सम्मान, उच्च पद |
| 19 | परिघ | 240°00′ से 253°20′ | अशुभ | असफल योजना, विफलता, अटकाव |
| 20 | शिव | 253°20′ से 266°40′ | शुभ | कल्याण, आध्यात्मिकता, शांति |
| 21 | सिद्ध | 266°40′ से 280°00′ | शुभ | सिद्धि, मनोवांछित कार्य की सफलता |
| 22 | साध्य | 280°00′ से 293°20′ | शुभ | मेहनत का फल, साधना के लिए अनुकूल |
| 23 | शुभ | 293°20′ से 306°40′ | शुभ | शुभ कार्यों के लिए अनुकूल समय |
| 24 | शुक्ल | 306°40′ से 320°00′ | शुभ | पवित्रता, सात्विकता, शुद्ध भाव |
| 25 | ब्रह्म | 320°00′ से 333°20′ | शुभ | ब्रह्मज्ञान, विद्या, तपस्या |
| 26 | इन्द्र | 333°20′ से 346°40′ | शुभ | भोग, इन्द्रिय सुख, विलास |
| 27 | वैधृति | 346°40′ से 360°00′ | अशुभ | बाधा, मानसिक थकान, रुकावट |
योग का प्रयोग मुख्यतः मुहूर्त निर्धारण और पंचांग विश्लेषण में किया जाता है
मुहूर्त शास्त्र के अनुसार, जब किसी बड़े और दीर्घकालिक कार्य का निर्णय किया जाता है, तब वार, तिथि और नक्षत्र के साथ योग का चिंतन भी आवश्यक होता है। इससे कार्य की ऊर्जा और समय की सूक्ष्म लय एक दूसरे के साथ बेहतर सामंजस्य में आ पाती है।
योग केवल गणना का परिणाम नहीं, बल्कि जीवन की लय और मानसिक तरंगों का सूचक है।
योग की प्रकृति यह संकेत देती है कि किसी दिन किए गए कर्म किस दिशा में फल देंगे। इसीलिए विशेष संस्कार, यज्ञ, दीर्घकालिक अनुबंध और वैवाहिक कार्यों में योग का विशेष महत्व स्वीकार किया गया है।
नित्य योग पंचांग का ऐसा अंग है जो जीवन की सूक्ष्म लय और ऊर्जा को परिभाषित करता है। प्रत्येक योग का प्रभाव व्यक्ति के मानसिक, सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक जीवन पर अपने ढंग से काम करता है। जब किसी महत्वपूर्ण कार्य का निर्णय लिया जाता है, तब केवल तिथि और वार पर ध्यान देना पर्याप्त नहीं होता, बल्कि योग को भी ध्यान में रखना आवश्यक होता है। यही वैदिक परंपरा की सूक्ष्मता और गहराई को प्रकट करता है।
1.क्या केवल योग देखकर किसी दिन की शुभता तय की जा सकती है
केवल योग के आधार पर संपूर्ण शुभता तय नहीं की जाती। वार, तिथि, नक्षत्र और करण सभी के साथ योग का संयुक्त विचार करना आवश्यक होता है। योग महत्वपूर्ण संकेत देता है, लेकिन उसे अकेला आधार नहीं बनाया जाता।
2.अशुभ योगों में क्या सभी कार्य वर्जित होते हैं
अशुभ योगों में अत्यंत महत्वपूर्ण, कोमल और जीवन बदलने वाले कार्य जैसे विवाह या गृहप्रवेश टालने की सलाह दी जाती है। सामान्य दैनिक कार्य प्रायः किए जा सकते हैं, पर सावधानी और संयम आवश्यक माना जाता है।
3.क्या जन्म समय का योग भी व्यक्ति के स्वभाव को प्रभावित करता है
हाँ, जन्म योग मन की मूल प्रवृत्ति, भावनात्मक प्रतिक्रिया और जीवन की घटनाओं की धारा पर प्रभाव डाल सकता है। इसे जन्म कुंडली में नक्षत्र, लग्न और ग्रह स्थिति के साथ मिलाकर देखा जाता है।
4.योग और नक्षत्र में से अधिक महत्त्व किसका होता है
दोनों की भूमिका अलग होती है। नक्षत्र गहरे संस्कार और मानसिक बीजों को दर्शाते हैं, जबकि योग उस समय की सक्रिय ऊर्जा और मानसिक लय को व्यक्त करता है। सटीक विश्लेषण के लिए दोनों का समन्वित अध्ययन आवश्यक होता है।
5.क्या शुभ योग में किए गए कार्य हमेशा सफल होते हैं
शुभ योग सकारात्मक आधार अवश्य देता है, लेकिन सफलता का निर्धारण कर्म, प्रयास, ग्रह स्थिति और समग्र मुहूर्त पर भी निर्भर करता है। शुभ योग सहयोगी वातावरण बनाता है, पर अकेला कारक नहीं होता।
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