By पं. सुव्रत शर्मा
आठवें भाव में गुरु के प्रभाव से आयु, संपत्ति, व्यवहार और आध्यात्मिक प्रगति
शरीर की आभा, दीर्घायु, और रहस्यपूर्ण सुखों का संसार अष्टम भाव की छाया में खिलता है। जब गुरु इस भाव में विराजमान होते हैं, तो जीवन अनिश्चितताओं से भरा नहीं, बल्कि योग, शोध, परंपराओं और छुपे अवसरों से समृद्ध होता है। इसी घर में पैतृक संपत्ति, अचानक लाभ, आध्यात्मिक रुचि, गूढ़ विद्याएँ और चिरंजीवी होने का योग भी मिलता है।
गुरु की यह स्थिति व्यक्ति में स्थिरमति, आध्यात्मिक सोच और शोध का गुण बढ़ाती है। नीति निर्माण, जटिल मसलों की तह तक पहुंचना, गूढ़ बातों को आसानी से समझ लेना सहज हो जाता है। परंपराओं, रीति-रिवाजों और धार्मिक नियमों की समझ बढ़ती है। अपने स्वजनों के लिए गहरा लगाव रहता है और उनके छोटे से छोटे कार्यों में भी आनंद मिलता है।
पहलू | प्रभाव |
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दीर्घायु | लंबे जीवन की संभावना |
पैतृक सुख | विरासत, संपत्ति, संपत्तिधन की प्राप्ति |
संगी-साथी | श्रेष्ठ मित्र, सहयोगी संगति |
योग एवं तीर्थ | तीर्थ यात्रा, योग साधना में रुचि |
पारिवारिक लगाव | लोगों में लोकप्रियता और सेवाभाव |
आध्यात्मिकता | मोक्ष पाने की योग्यता, गूढ़ विद्याओं की समझ |
गुरु का अष्टम भाव में होना व्यक्ति को शोध, तकनीकी, सलाह, जासूसी, लिखने-पढ़ने, प्रकाशन, प्रशासनिक कार्यों, भूमि-सम्बंधी व्यवसाय, या गूढ़ विद्या के क्षेत्रों में कुशल बना देता है। योग साधना, उपदेश, ज्योतिष, धर्म गुरु, निर्देशन, मानसिक चिकित्सा, अन्वेषण, संपत्ति और कला से जुड़े कार्यों में भी आगे किया जा सकता है।
अष्टम भाव में गुरु का स्थान वैवाहिक जीवन में उतार-चढ़ाव ला सकता है। साथी के धन से लाभ संभव है, लेकिन रिश्तों में स्थायित्व की कमी बनी रह सकती है। कभी-कभी गुप्त संबंध बन सकते हैं, और यौन सुख व दांपत्य जीवन में असंतोष दिखता है।
आठवें भाव में गुरु का असर रोग के मामलों में दिखता है। खास तौर पर पेट, लीवर, शुगर, नस, हड्डी, जोड़ों के दर्द, सूजन, कैंसर, टीबी, गुदा रोग, पीलिया, मलेरिया इत्यादि का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष असर देखने को मिल सकता है। मानसिक चिंता और अत्यधिक विचारशीलता भी स्वास्थ्य को प्रभावित करती है।
स्वास्थ्य क्षेत्र | संभावित असर |
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पेट, लीवर, शुगर | रोग के संकेत |
नस, हड्डी, जोड़ों | दर्द, सूजन |
कैंसर, टीबी | गंभीर रोगों की संभावना |
मानसिक चिंता | सोच व चिंता से सेहत पर असर |
मलेरिया, पीलिया | वायरल असर |
अष्टम भाव में गुरु के रहते व्यक्ति दीर्घायु, चिन्तनशीलता, नैतिकता तथा भव्यता के साथ जीवन जीता है। अपने पिता के घर में बहुत समय नहीं रहता और सांसारिक सुखों की प्राप्ति भी होती है। विपरीत परिस्थितियों में भी ईश्वर की कृपा से सहयोग मिलता है और धार्मिकता के कारण भाग्य में वृद्धि मिलती है।
बारह भावों से बनी कुंडली में अष्टम भाव को ‘आयु भाव’ की संज्ञा मिलती है। यह मृत्यु, ऋण, दीर्घायु, और अचानक घटनाओं का द्योतक है। जब गुरु यहाँ विराजमान हो तो जातक का आध्यात्मिक पक्ष मजबूत हो सकता है, और गूढ़ ज्योतिष, तंत्र, मंत्र की समझ भी गहराती है।
योग/स्थिति | शुभ प्रभाव | अशुभ प्रभाव |
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दीर्घायु | चिरंजीवी बनने की संभावना | स्वभाव में कठोरता, जिद |
पैतृक संपत्ति | वसीयत, विरासत, धन की प्राप्ति | लाभ के बावजूद तंगी, लालच |
आध्यात्मिकता | मोक्ष, धर्म और योग की रुचि | भावनात्मक उथल-पुथल, चिंता |
कार्यक्षेत्र | शोध, तकनीकी, लेखन, प्रशासन | अस्थिरता, संघर्ष |
प्रेम/विवाह | साथी का सहयोग, प्रेम | असंतोष, विलंब, गुप्त संबंध |
जीवन की दिशा, स्थायित्व, योग, शोध, और गूढ़ विद्याओं की ओर बढ़ने का मार्ग आठवें भाव में गुरु की उपस्थित से बनता है। सांसारिक सुखों और आध्यात्मिक उन्नति, दोनों को संतुलित करते हुए, गुरु जातक को दीर्घायु और स्थिरमति प्रदान करता है।
अनुभव: 27
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