By पं. अभिषेक शर्मा
उज्जैन और वेदांत से जुड़ी मंगल ग्रह की उत्पत्ति व पौराणिक कथा
उज्जैन की धरती पर इतिहास, श्रृद्धा और दिव्यता का संगम है, और इसी पुण्य भूमि से मंगल ग्रह का एक विशेष पौराणिक वृतांत जुड़ा है जो भारतीय संस्कृति में आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना हजारों वर्ष पूर्व था। स्कंद पुराण के अवंतिका खंड में रचित यह कथा ग्रहों के सेनापति मंगल की उत्पत्ति, उनकी महिमा और आध्यात्मिक महत्व को न केवल उजागर करती है, बल्कि भक्तों के जीवन में विश्वास और आश्वासन की भावना भी भरती है।
एक समय उज्जयिनी (वर्तमान उज्जैन) में अंधक नामक दैत्य अपना राज्य चला रहा था। उसके पुत्र कनक दानव की वीरता और शक्ति के किस्से दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे। एक दिन इस कनक दानव ने स्वयं इन्द्र, देवताओं के राजा, को युद्ध के लिए ललकारा। शक्ति और अहंकार के इस टकराव में इन्द्र ने क्रोधपूर्वक उसका सामना किया और घोर युद्ध के बाद कनक दानव का वध कर दिया।
इन घटनाओं से भयभीत होकर इन्द्र, अंधकासुर की शक्ति के डर से, कैलाश पर्वत की ओर भगवान शंकर की शरण में पहुंचे। वहां उन्होंने अपने भय, चिंता और हालात भगवान चंद्रशेखर के सामने रखे और उनसे रक्षा की प्रार्थना की। शरणागत की पीड़ा सुनकर करुणामयी शिव ने इन्द्र को अभयदान दिया और उन्हें अंधकासुर से निर्भय रहने का वरदान दिया।
इसके बाद शिव स्वयं महादैत्य अंधकासुर के विरुद्ध युद्ध को तत्पर हो गए। यह युद्ध इतना भीषण और उग्र था कि त्रिलोक में उसकी गूंज सुनाई देती थी। इसी महायुद्ध के दौरान भगवान शिव के मस्तक से परिश्रम और युद्ध के ताप से एक पसीने की बूंद पृथ्वी पर गिर गई। उस दिव्य बूंद से अग्निसमान, रक्ताभ रंग के, महाशक्ति सम्पन्न बालक का जन्म हुआ जिसे बाद में मंगल, अंगारक, रक्ताक्ष तथा महादेव पुत्र जैसे विभिन्न नामों से जाना गया।
ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवताओं समेत ब्राह्मणों ने मंगल की स्तुति की और उन्हें ब्रह्मांड के ग्रहों के समूह में प्रतिष्ठित किया। उसी स्थल पर स्वयं ब्रह्माजी ने मंगलेश्वर नामक शिवलिंग की स्थापना की, जो वर्तमान में मंगलनाथ मंदिर, उज्जैन के नाम से विख्यात है। यही स्थान मंगल की उत्पत्ति और उनकी मुख्य शक्तिस्थली के रूप में माना जाता है।
मंगल का तेज, बाल्यकाल से ही इतना प्रखर था कि देवता और मनुष्य सभी उसकी लालिमा और शक्ति से चकित हो गए। समस्त लोकों में हलचल मच गई। तब भगवान शिव ने मंगल को स्नेहपूर्वक अपनी गोद में लिया और उनसे कहा, “हे बालक, तुम मेरी राजस प्रकृति से उत्पन्न हुए हो। लोकों के कल्याण के लिए तुम अब ग्रहों के सेनापति होगे, अवंतिका (उज्जैन) में निवास करोगे और समस्त जीवों का मंगल करोगे।”
यही कारण है कि उज्जैन के मंगलनाथ मंदिर को मंगल दोष शांति तथा मांगलिक गुणों के बढ़ाने के लिए विशेष स्थान प्राप्त है। शास्त्रों में वर्णित है जो भी मनुष्य यहां जाकर विधिपूर्वक मंगल देव का पूजन करता है, वह अपने जीवन की बाधाओं, मांगलिक दोष या ग्रहदोष से मुक्ति और संतुलन प्राप्त करता है।
ज्योतिष शास्त्र में मंगल केवल एक लाल ग्रह नहीं, बल्कि ऊर्जा, साहस, नेतृत्व, आत्मबल और पराक्रम का आधार है। मंगल शुभ स्थिति में हो तो जातक को अद्भुत ऊर्जा और आत्मविश्वास देता है, बाधाओं के बीच रास्ता निकालने की शक्ति देता है। वहीं अशुभ स्थितियों में -
ज्योतिष मानता है कि मंगल की स्थिति और दशा, अन्य ग्रहों के योग और स्वामी के अनुसार, मनुष्य के जीवन में शक्तियों का प्रवाह और दिशाबोध करती है। ऐसे में अधिकारी ज्योतिषी से सलाह और पूजा उपाय ही सही मार्ग दिखाते हैं।
मंगलनाथ मंदिर में ‘भात पूजन’, मंगल दोष शांति के लिए विशिष्ट और सरल उपाय है। मांगलिक जातकों और विवाह संबंधी समस्या से जूझ रहे लोगों को यहां भात पूजन करने की विशेष सलाह दी जाती है। मंगल की पूजा, विशेष माला या यंत्र और निम्नलिखित मंत्रों का जप सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य और संकट से मुक्ति में सहायक होता है।
मुख्य बीज मंत्र
ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः
मंगलस्तोत्र प्रमुख श्लोक
मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रद:
स्थिरासनो महाकाय: सर्वकर्मावरोधक:
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकर:
धरात्मज: कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दन:
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारक:
व्रुष्टे कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रद:
एतानि कुजनामानि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्
धरणी गर्भसम्भूतं विद्युत्कान्ति-समप्रभम्
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्
(इस स्तोत्र के १२ श्लोकों के नियमित पाठ से ऋण, रोग, शत्रु, दरिद्रता और भय नष्ट होते हैं, सुख एवं धन प्राप्ति होती है।)
मंगल से जुड़ी पूजा, व्रत, मंत्र और मंगलनाथ मंदिर की परंपरा न केवल शास्त्रों में बल्कि भक्तों के अनुभव में भी प्रभावी मानी गई है। हर कार्य की शुरुआत, विवाह, नया घर, वाहन, या जोखिम से जुड़ी योजना में मंगल ग्रह की अनुकृति जीवन की सफलता, ऊर्जा, संतुलन और विजय का कारण बनती है।
मंगल की उत्पत्ति से जुड़ा उज्जैन का ऐतिहासिक स्थल, आज भी प्रत्येक श्रद्धालु के लिए प्रेरणा और आस्था का केंद्र बना हुआ है। मंगल के व्रत, पूजा और शांति उपाय व्यवहारिक और वैज्ञानिक दृष्टि से जीवन में सकारात्मकता भरने में सहायक हैं। यह कथा केवल लोकश्रद्धा नहीं, आत्मबल, कर्तव्य और समर्पण का अप्रतिम प्रतीक है जिसका सच्चा लाभ सार्थक साधना और विवेकपूर्ण जीवन में ही संभव है।
अनुभव: 19
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