By अपर्णा पाटनी
ऑफिस की राजनीति से लेकर नेतृत्व तक-महाभारत, कृष्ण, चाणक्य और द्रौपदी से सीखें जीवन और करियर की रणनीति
ऑफिस जाना सिर्फ़ कुछ घंटे डेस्क पर बिताना नहीं-यह आज का कुरुक्षेत्र है। यहां तीर-धनुष नहीं, ईमेल और मीटिंग्स चलते हैं; राज्य नहीं, बल्कि KPI, प्रमोशन और रिवॉर्ड्स की जंग है। ऑफिस की राजनीति वही अनकहा युद्ध है जिसमें हर कर्मचारी चाहे-अनचाहे शामिल है। पर क्या आप जानते हैं-महाभारत और चाणक्य के हजारों वर्ष पुराने सूत्र आज भी इस युद्ध को जीतने में सबसे बड़े गुरु हो सकते हैं? आइए, भारतीय ग्रंथों की इन सीखों से जानें कि ऑफिस की जटिल दुनिया में संयमित नेतृत्व, नीति और नैतिकता के साथ कैसे आगे बढ़ा जा सकता है।
महाभारत केवल राज्य या सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि इंसानी रिश्तों, महत्वाकांक्षाओं और धर्म-संकटों की जटिलताओं की गाथा है, जो ठीक ऑफिस की टीम पॉलिटिक्स जैसी लगती है।
कृष्ण ने कभी हथियार नहीं उठाया, लेकिन महायुद्ध के सबसे निर्णायक रणनीतिकार वही थे। उनकी नेतृत्वशैली से सीखिए: प्रभाव सिर्फ मुखर या उच्च पद से नहीं, बल्कि गहरी समझ, शांत मार्गदर्शन और भावनात्मक समझदारी से आता है।
Workplace Tip: संघर्ष के समय टीम में ‘कृष्ण’ बनें-संवाद से समाधान खोजें, शक्ति नहीं। बोलने से ज़्यादा सुनें, प्रतिक्रिया में सोचें और तटस्थ बुद्धिमत्ता से राह दिखाएं।
युधिष्ठिर की सत्यनिष्ठा और दुर्योधन का अधिकारवादी रवैया ऑफिस जीवन की असलियत है। पद या शक्ति के लिए शॉर्टकट या नैतिक समझौतों का मोह अकसर बढ़ता है, पर महाभारत दिखाता है कि दीर्घकालिक सफलता उन्हीं की होती है, जो सिद्धांतों पर टिके रहते हैं।
Workplace Tip: परिस्थिति कैसी भी हो, अपनी साख को पहला स्थान दें। आखिर में वही नेता याद रहते हैं जो सिद्धांतों के साथ चलते हैं।
द्रौपदी का दरबार में अपमान सबसे बड़ी सच्चाई को अंकुरित करता है। उसका साहस-बिना ऊँचे स्वर के, बस सच्चाई के दम पर-पुरुष सत्ता को चुनौती देता है।
Workplace Tip: अन्याय सहना नहीं, आवाज़ उठाना सीखें-आदर्श और आत्मसम्मान के साथ। संगठन की नीतियों, HR और अपनी नेटवर्किंग का सही इस्तेमाल करें।
अर्जुन युद्धभूमि में ठहर गया-कांपता, उलझन में, नैतिक जाल में फंसा। कुछ वैसा ही जब बड़ी मीटिंग, असाइनमेंट या परेशानी आती है।
Workplace Tip: जब मन हिलने लगे, अपने मूल मूल्यों पर लौटिए। फैसले लें, परिणाम की चिंता छोड़िए। कर्म को उद्देश्य दीजिए, फल को स्वीकार करना सीखें।
चाणक्य का अर्थशास्त्र भावनाओं में नहीं, नीति और युक्ति में विश्वास रखता है-यह ऑफिस पॉलिटिक्स का मोस्ट प्रैक्टिकल मैन्युअल है।
“साम, दाम, दंड, भेद”-प्रभाव के चार आयाम
चाणक्य सलाह देते हैं: “बुद्धिमान व्यक्ति कभी खुले में अपने सारे पत्ते नहीं खोलता।” ऑफिस में कम बोलिए, ज़्यादा देखिये-जानकारी ताकत है, पर उसे सही जगह और समय पर ही इस्तेमाल करें।
कर्ण का चरित्र दिखाता है-अंधी वफादारी नुकसान देती है। खुद की कीमत गिराने वाले टीम या बॉस के लिए न झुकें।
Workplace Tip: वफादारी virtues है, पर आत्मसम्मान सर्वोपरि। जरूरत पड़े तो खुद को बचाना सीखें।
ऑफिस में हर जगह किसी-न-किसी शकुनि का होना तय है। वह हँसी-मजाक में ज़हर घोलता, मेलजोल से भ्रम फैलाता है।
Workplace Tip: नेटवर्किंग अपनी बनाएँ, पीठ पीछे की बातों और अफवाहों में न फँसें। जहाँ शक हो, वहाँ सचेत रहें।
जीत से पहले, पांडवों ने चुपचाप, कठोर वनवास जिया-जो तैयारी और आत्म-निरीक्षण का समय था।
Workplace Tip: जब मौका न मिले, स्किल सुधारें, पर्यावरण को समझें, अगला कदम तैयारी से भरें। चुप ना रहें-सीखते रहें।
महाभारत और चाणक्य नीति दोनों में ‘धर्म’ यानी धर्म-अधर्म का भेद बार-बार आता है। राजनीतिक माहौल में भी, अपने निजी धर्म-कर्तव्य और न्याय-को कभी न भूलें।
Workplace Tip: अपने से रोज़ पूछें-क्या मैं सही कर रहा हूँ? यही सवाल आपको सही राह दिखाएगा।
युद्धभूमि भले अब हॉलवे या बोर्डरूम में बदल गयी हो, कमजोरी, महत्वाकांक्षा, नैतिकता और सहयोग की चुनौती अटल है। हमारे महाकाव्य सिर्फ कहानियाँ नहीं, बल्कि रणनीति और प्रेरणा के मंत्र हैं। जीतने के लिए तलवार नहीं, बल्कि आत्म-चेतना, भावनात्मक समझ, चतुराई और निर्भीक नैतिक साहस चाहिए।
तो अगली बार जब आप ऑफिस के रण में उतरें-याद रखिए: आप सिर्फ कर्मचारी नहीं, अर्जुन हैं अपने ध्येय के साथ, कृष्ण हैं अपनी नीति से, चाणक्य हैं अपनी रणनीति से, और द्रौपदी हैं अपने साहस से। शांत मन से नेतृत्व करें। बोले तो अर्थ से। उठे तो गरिमा से। इन महाकाव्यों की शिक्षा आपके भीतर सजीव है-बस उन पर ध्यान देना है।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, मुहूर्त
इनके क्लाइंट: म.प्र., दि.
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