By पं. अभिषेक शर्मा
आनंद, शक्ति और शब्द के बीच गहराई के संदेश
श्रीगणेशाय नम
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
यह मंत्र केवल रस्म नहीं। यह आह्वान है उस सुख की ओर जो रास्ता खोलता है। गणेशजी के आपत्सुख भरे पेट, चूहा साहचर्यऔर सूंड की नर्मी हमें सिखाती है कि जीवन में ठहराव और ध्यान प्राप्त हो सकता है।
इन छह कथाओं के साथ सातवां सुनाई देता है-मानव अंतर्दृष्टि को छू जाने वाला अनुभव, जिसे साधारण मंदिर की दीवारें शायद ही साझा कर पाती हैं।
एक दिन जब नारद मुनि ने शिव को मनायी खुशी दी तब उनकी वह हँसी स्वयं एक जीवंत रूप में जन्मी - गणेश। वे केवल पार्वती के पुत्र नहीं थे। वे शिव के आनंद से बनकर आए। यह कथा हमें याद दिलाती है कि कभी-कभी बुद्धि संघर्ष से नहीं, पर आनंद से सृजित होती है।
उनकी बुद्धिमत्ता दिव्य है। जब जीवन में निराशा टूटने लगे तब यही आनंद हमें उठने की शक्ति देता है।
जब देवपुरुष दिशाओं में खड़े होते हैं तब गणेश उस अनसुलझे नवें स्थान पर हमारी सुरक्षा करते हैं। वे मूलाधार चक्र की ऊर्जा से बंधे हैं जो जीवन को स्थिरता प्रदान करती है।
इसलिए जब नए कदम की योजना बनाएं, तो उनसे रक्षक के रूप में संकल्प लेना चाहिए। यह केवल बाधा दूर करने की शक्ति नहीं है। यह स्थिरता का स्पर्श है।
सिंधु नामक राक्षस महासागर की ऊर्जा से अपनी रक्षा बना चुका था। जब अन्य देव हार मानने की स्थिति में थे तब गणेशजी महोदर स्वरूप में आए और बिना धड़काए, पहले महासागर की शक्ति को कम किया फिर स्वरूप को समाप्त कर दिया।
यह चरित्र बताता है कि बुद्धि से बाधा हटाना अधिक प्रभावी है, न कि बल से संघर्ष करना।
जब विष्णु मुरासुर से लड़ने निकले तब उन्होंने पहले गणेश से आशीर्वाद माँगा। यह कथन बेहद सरल पर प्रभावी है। यह हमें बताता है कि चाहे कोई कितना भी सशक्त क्यों न हो, स्पष्टता और आभार के साथ कदम थमाना भी आवश्यक होता है।
महाभारत लिखते समय गणेशजी केवल लिखा ही नहीं। वे व्यास जी के विचारों को पहले ही गृहण कर लेते थे, शायद उस समय तक जब शब्द बनते हैं। उनका यह रूप बताता है कि शब्द बुद्धि की प्रतिध्वनि है।
इसलिए उन्हें बुद्धि का स्वामी माना जाता है।
तीस तत्वविकार तांत्रिक स्वरूपों में गणेश शक्तिमय रूपों में आते हैं-बुद्धि, सिद्धि, शक्ति के स्वरूपों में। वे संतुलन का प्रतीक हैं। यह सृजन का आधार है और जीवन में स्थिरता और गति का मेल है।
देवी पुराण बताता है कि देवी के पास जाने से पहले गणेश का आशीर्वाद लेना अनिवार्य है। ऐसा न हो तो व्यक्ति सीधे दिव्यता के द्वार तक नहीं पहुँच सकता। वे अज्ञान और सत्य के मध्य रक्षक हैं।
कथा | गहन अर्थ |
---|---|
आनंद से जन्म | खुशी में बुद्धि और अस्तित्व की शुरूआत |
मूलाधार सुरक्षा | निष्कलंक स्थिरता और आत्मिक आधार |
भ्रांति नाश | विवेक से परछाई को हटाना |
युद्ध से पहले शांति | ताकत से ज्यादा बुद्धि की अहमियत |
विचार का शब्द तक दूर तक पहुँचना | सृजन के मध्य बुद्धि का पुल |
1. इनमें से कौन सी कथा सबसे आध्यात्मिक रूप से अनूठी है?
मुख्य रूप से आनंद की रूपांतरण वाली कथा। यह दिखाती है कि बुद्धि संघर्ष नहीं बल्कि आनंद से जन्म ले सकती है।
2. क्या शक्ति गणपतियों का स्वरूप जीवन में उपयोगी है?
बिलकुल। यह हमें संतुलित ऊर्जा, सफलता और सृजनात्मकता का संतुलन बताता है।
3. क्या ये कथाएँ आम पूजा से अलग हैं?
हां। ये संवेदनशील और प्रतीकात्मक हैं। इन्हें मनन से समझना चाहिए।
4. क्या गणेशजी के इन रूपों का दैनिक जीवन में प्रभाव है?
निश्चित रूप से। ये हमें शक्ति, चिंतन, संतुलन और स्पष्टता की प्रेरणा देते हैं।
5. क्या हमें हर नए कार्य से पहले गणेशजी को बुलाना चाहिए?
यह एक सुंदर परंपरा है। वे हमारे मार्ग को स्पष्ट और रक्षा करते हैं।
अनुभव: 19
इनसे पूछें: विवाह, संबंध, करियर
इनके क्लाइंट: छ.ग., म.प्र., दि., ओडि, उ.प्र.
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