By पं. अभिषेक शर्मा
गणेशजी और तुलसी देवी के शाप से जुड़ा प्रसंग और उसका आध्यात्मिक महत्व
गणेश चतुर्थी का पर्व केवल उत्सव और भक्ति का दिन नहीं है। यह उन कथाओं को भी स्मरण करने का अवसर है जो परंपराओं के मूल में निहित हैं। एक ऐसी ही प्राचीन कथा तुलसी देवी और गणेशजी के बीच हुए प्रसंग से जुड़ी है। यही कथा बताती है कि तुलसी की पत्तियां गणेशजी की पूजा में क्यों वर्जित मानी जाती हैं।
शिवपुराण के अनुसार एक बार बाल गणेश गंगा किनारे गहन ध्यान में लीन थे। ध्यान और तपस्या ही उनका आधार था। उसी समय तुलसी देवी वहां से होकर गुजर रही थीं। तुलसी देवी पवित्रता और भक्ति की देवी मानी जाती हैं। जब उनकी दृष्टि प्रभा से आलोकित गणेश पर पड़ी तो वे उनसे विवाह करने की इच्छा से प्रभावित हो गईं।
तुलसी देवी ने गणेशजी से विवाह का प्रस्ताव रखा। उस समय गणेशजी का स्वरूप ब्रह्मचारी और स्वतंत्र तपस्वी का था। उन्होंने विनम्रता से परंतु दृढ़ता के साथ उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उनके लिए ध्यान, तप और धर्म ही मुख्य मार्ग था, दाम्पत्य जीवन नहीं।
गणेशजी का उत्तर सुनकर तुलसी देवी आहत हो गईं। उन्हें लगा कि उनका अपमान हुआ है।
क्रोध से भरकर तुलसी देवी ने गणेश को शाप दे दिया कि वे विवाह करेंगे और वह भी दो बार। इस शाप को सुनकर गणेशजी ने भी तुलसी को उत्तर दिया। उन्होंने तुलसी को शाप दिया कि उनका विवाह दैत्य शंखचूड़ से होगा। उसके बाद वे केवल एक पौधे के रूप में पूजी जाएंगी।
उस दिन से यह नियम माना गया कि तुलसी पत्ते गणेशजी को अर्पित नहीं किए जाएंगे।
यह कथा केवल शाप और प्रत्युत्तर तक सीमित नहीं है। इसमें गहरे आध्यात्मिक संकेत हैं।
तालिका: प्रतीकात्मक अर्थ
पात्र | प्रतीक |
---|---|
तुलसी देवी | भौतिक इच्छाएं और मोह |
गणेश | वैराग्य और आत्मज्ञान |
शाप | भक्ति का मार्ग सांसारिक बंधनों को त्याग कर ही संभव है |
गणेशजी का विवाह अंततः हुआ और उन्हें दो पत्नियां सिद्धि और बुद्धि मिलीं। इनसे उनके दो पुत्र शुभ और लाभ हुए। इस प्रकार तुलसी का शाप पूरा हुआ, पर गणेशजी की आध्यात्मिक गरिमा भी अक्षुण्ण रही।
यही कारण है कि विष्णु या कृष्ण जैसे देवों की पूजा में तुलसी पवित्र मानी जाती है, पर गणेशजी के पूजन में यह वर्जित रहती है।
आज भी यह प्रसंग महत्वपूर्ण है। यह बताता है कि साधक को जीवन में सांसारिक इच्छाओं और वैराग्य के बीच संतुलन साधना पड़ता है।
प्रश्न 1: भगवान गणेश को तुलसी क्यों नहीं चढ़ाई जाती?
उत्तर: क्योंकि तुलसी और गणेशजी के बीच शाप का प्रसंग जुड़ा है। इसी कारण तुलसी के पत्ते गणेश पूजा में वर्जित हैं।
प्रश्न 2: तुलसी देवी कौन हैं और उनका महत्व क्या है?
उत्तर: तुलसी देवी पवित्रता और भक्ति की देवी हैं। वे विष्णु और कृष्ण की आराध्या हैं।
प्रश्न 3: तुलसी ने गणेशजी को क्यों शाप दिया?
उत्तर: गणेशजी ने विवाह प्रस्ताव ठुकरा दिया जिससे तुलसी देवी रुष्ट हो गईं और क्रोधित होकर शाप दे दिया।
प्रश्न 4: क्या गणेशजी का विवाह हुआ?
उत्तर: हां, गणेशजी का विवाह सिद्धि और बुद्धि से हुआ और उनके पुत्र शुभ और लाभ हुए।
प्रश्न 5: यह प्रसंग आध्यात्मिक दृष्टि से क्या सिखाता है?
उत्तर: यह सिखाता है कि सांसारिक इच्छाएं और वैराग्य एक साथ नहीं चल सकते। साधना के लिए मोह का त्याग आवश्यक है।
अनुभव: 19
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