By पं. अमिताभ शर्मा
गणपति को प्रिय मोदक, लड्डू, दूर्वा, फल और उनके आध्यात्मिक अर्थ क्या हैं?
भगवान गणेश की पूजा केवल बाधाओं को दूर करने के लिए नहीं की जाती, बल्कि जीवन में ज्ञान, सद्गुण, विनम्रता और स्थिरता लाने के लिए भी की जाती है। उनकी छवि जितनी विशिष्ट है, उनकी पसंद भी उतनी ही अर्थपूर्ण और आध्यात्मिक है। 'मोदकप्रिय' - यह उपाधि सिर्फ एक स्वाद की पसंद नहीं, बल्कि एक गहन सांकेतिक भाव है, जो यह दर्शाती है कि जीवन के सबसे गहरे सत्य सरलताओं में छिपे हैं।
मोदक, जो आमतौर पर नारियल और गुड़ से भरे हुए चावल या गेहूं के आटे के लड्डू होते हैं, भगवान गणेश का सबसे प्रिय नैवेद्य माने जाते हैं। इनका बाहरी आवरण जीवन की कठिनाइयों का प्रतीक होता है और अंदर की मिठास उस आत्मिक सुख और ज्ञान का, जो कठिनाइयों के पार पाया जा सकता है।
भगवान गणेश को मोदक के अलावा कुछ और भोग भी अत्यंत प्रिय हैं, जो जीवन के विविध पक्षों का प्रतीक हैं:
ये समृद्धि, अभिवृद्धि और सौभाग्य के प्रतीक हैं। इन्हें अक्सर सुवर्ण या पीले रंग के पात्र में अर्पित किया जाता है।
तीन या पाँच पत्तियों वाली दूर्वा को गणेशजी को अर्पित करना शुद्धता, दीर्घायु और विनम्रता का प्रतीक माना जाता है।
केला पोषण और अनंत फलदायकता का संकेत देता है जबकि नारियल का टूटना अहंकार का त्याग दर्शाता है।
शुद्ध प्रेम, ऊर्जा और सकारात्मकता का प्रतिनिधित्व करते हैं।
भोग | भावार्थ |
---|---|
मोदक | आतिक ज्ञान और आंतरिक सुख |
बेसन लड्डू | धन, समृद्धि, सौभाग्य |
दूर्वा घास | पवित्रता, दीर्घायु, विनम्रता |
केला | पोषण और निरंतरता |
नारियल | अहंकार का समर्पण |
गुड़-चावल | शुद्धता और उत्साह |
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार सभी देवताओं ने भगवान गणेश और कार्तिकेय को पृथ्वी की परिक्रमा करने का आदेश दिया। कार्तिकेय तो तुरंत निकल पड़े, लेकिन गणेश जी ने अपने माता-पिता की परिक्रमा करके यह सिद्ध किया कि माता-पिता ही साक्षात ब्रह्मांड हैं। उनकी इस बुद्धिमत्ता से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने उन्हें एक विशेष मोदक दिया, जो अद्भुत ज्ञान और आनंद का प्रतीक था। तब से मोदक को उनकी प्रियतम वस्तु के रूप में पूजा जाता है।
गणेश जी के प्रिय भोग केवल स्वाद की वस्तुएं नहीं हैं। वे हमारे लिए संदेश हैं:
भगवान गणेश को भोग अर्पित करते समय यह महत्वपूर्ण होता है कि वह निष्ठा, प्रेम और पवित्रता के साथ किया जाए। चाहे वह मोदक हो, लड्डू हो या सिर्फ एक दूर्वा - यदि भाव सच्चा हो तो भगवान गणेश कृपा अवश्य करते हैं।
गणेशजी की पूजा में उनका प्रिय भोग अर्पित करना केवल कर्मकांड नहीं है, यह एक ऐसा व्यक्तिगत संवाद है जहां भक्त अपने अंतर्मन की भावनाएं अर्पित करता है। यही कारण है कि हर गणेश चतुर्थी पर घर-घर में मोदक बनते हैं, मंत्रों की ध्वनि गूंजती है और भक्तगण सच्चे मन से उनके चरणों में अपने प्रेम को समर्पित करते हैं।
भगवान गणेश की प्रिय चीजों का ज्ञान हमें यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति बाहरी प्रदर्शन में नहीं, बल्कि सरलता, प्रेम और आत्मिक समर्पण में होती है। मोदकप्रिय गणेश हमारे जीवन को इस भक्ति के स्वाद से भर दें - यही मंगलकामना है।
अनुभव: 32
इनसे पूछें: जीवन, करियर, स्वास्थ्य
इनके क्लाइंट: छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
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