By पं. अमिताभ शर्मा
सनातन शक्ति, सृष्टि और ब्रह्मांड के मूल स्तंभ
समय के आरंभ से भी पहले की बात है। न सितारों की चादर थी, न देवताओं का स्थायित्व। उस शून्य में भी एक शक्ति थी - आदि देवी की महाशक्ति। जगा हुआ एवं अचेतन, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष, सब स्रोत उसी में विलीन थे। शास्त्रों में इन्हें ही "नित्यायै जगन्मातृये" कहा गया, यानी सृष्टि की शाश्वत जननी। देवी के कालातीत चार ऐसे दिव्य अवतार हैं जिनका उल्लेख अध्यात्म के मूल ग्रंथों में मिलता है। इन रूपों ने न केवल अस्तित्व को आकार दिया बल्कि ब्रह्मांड के हर स्पंदन में अपने अंश को स्थापित किया।
सनातन वेदांत में देवी के अनेक रूपों की चर्चा है, लेकिन चार प्रमुख रूप ऐसे हैं, जिन्हें सृष्टि के आरंभ के आगे की सत्ता का आधार माना गया है। यह रूप हैं: महादेवी, आदि पराशक्ति, महाकाली और त्रिपुरा सुंदरी। इनके कोई तिथि, वर्ष या मानव गणना नहीं - ये सनातन अवधारणाएं हैं।
अवतार का नाम | प्रतीक | आध्यात्मिक तत्व | प्रमुख मन्त्र/उपमा |
---|---|---|---|
महादेवी | अनंत माता, शक्ति का मूल स्रोत | चेतना, मौलिक सृष्ति, सत्य | "पराशक्ति", "मूल अद्वैता" |
आदि पराशक्ति | प्रथम ऊर्जा, सृजन का आधार | सृजन, संरक्षण, संहार | "शिव-शक्ति की आदिम शक्ति" |
महाकाली | काल की संहारिका | परिवर्तन, समय का अनुलंघन | "काल से परे", "महा-समाप्ति" |
त्रिपुरा सुंदरी | समयातीत सौंदर्य | सौंदर्य, सामंजस्य, त्रिविध लोकों की स्वामिनी | "ललिता", "पूर्णता का प्रकाश" |
महादेवी को "परा शक्ति" यानी प्रथम सत्ता माना गया है। उनका अस्तित्व न किसी रूप तक सीमित है, न ही किसी नाम में बंधा है। अनादि काल से वे मौन, ज्योति और सत्-चित्-आनंद की अविनाशी शक्ति मानी जाती हैं। सभी देवियाँ, सभी रूप उन्हीं से अभिव्यक्त होते हैं। जीवन का सारा प्रवाह उसी अनंत माता से निकलता है। शास्त्र बताते हैं - जिसे जानना कठिन है, वही महादेवी का स्वरूप है। "नित्यायै जगन्मातृये" का सच्चा अर्थ यही है।
आदि पराशक्ति वह शक्ति हैं जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव - त्रिमूर्ति - से भी पूर्व रही हैं। वही सृजन की प्रेरणा हैं, वही सनातन ऊर्जा, जिससे संपूर्ण जगत का विकास हुआ। शास्त्रों के अनुसार, आदि शक्ति ने स्वयं को तीन भागों में विभाजित किया और फिर भी अखंड बनी रहीं। इन्हीं के आशीर्वाद से त्रिमूर्ति प्रकट हुए।
महाकाली केवल संहार की देवी नहीं हैं बल्कि वे समय की अधिष्ठात्री भी हैं। उनका काला रूप संसार को यह सिखाता है कि हर प्रारंभ का एक अंत है और हर अंत में नवीनता की संभावना। महाकाली समय (काल) को निगल जाती हैं, इसी कारण उन्हें "काल के पार" कहा गया। वे सिखाती हैं - स्थूल जगत क्षणिक है, आत्मा अमर है।
महाकाली की विशेषताएँ | अर्थ |
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समय से परे | जीवन, मृत्यु और पुर्नजन्म के पार |
परिवर्तन की प्रेरणा | प्रत्येक परिवर्तन में नवचेतना |
अस्तित्व में स्थायित्व | आत्मा की अमरता |
त्रिपुरा सुंदरी, जिन्हें ललिता देवी भी कहा जाता है, चिरयुवा हैं। इनका सौंदर्य काल से परे है, क्योंकि वे तीनों लोकों - शरीर, मन और आत्मा - की समरसता में स्थित हैं। वे प्राणी को यह सिखाती हैं कि सृष्टि केवल मात्र संघर्ष नहीं बल्कि सौंदर्य, तृप्ति और आनंद का उत्सव है। पूर्णता की अनुभूति इसी देवी में सर्वाधिक विद्यमान है।
देवी के इन चार अवतारों को जाना, मतलब केवल कथा सुनना नहीं बल्कि आत्मा की गहराई तक उतरना है।
1. देवी के इन चार रूपों का उल्लेख किस शास्त्र में है?
देवी महात्म्यम, ब्रह्माण्ड पुराण, तथा तंत्र शास्त्र में इन अवतारों का विस्तृत उल्लेख मिलता है।
2. क्या इन अवतारों की पूजा समकालीन जीवन में भी होती है?
जी हाँ, नवरात्रि, दुर्गा सप्तशती, श्री विद्या साधना, काली पूजा में पूरे भारत में इन रूपों की साधना होती है।
3. महादेवी और आदि पराशक्ति में क्या अंतर है?
महादेवी रूप चेतना/निराकार का प्रतीक है, जबकि आदि पराशक्ति सृजन के पहले की सर्वव्यापक ऊर्जा का। दोनों निश्चित सीमाओं से परे हैं।
4. महाकाली के समय से परे होने का क्या अर्थ है?
महाकाली समय, जीवन, मृत्यु को पार करती हैं। वे काल का विनाश करती हैं, इसी लिए उन्हें 'महाकालि' कहा जाता है।
5. त्रिपुरा सुंदरी क्यों त्रैलोक्य रूपा कही जाती हैं?
वे तीनों लोक (भौतिक, मानसिक, आत्मिक) की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं और समग्र सौंदर्य की साक्षात मूर्ति हैं।
ये चार रूप केवल देवी के भिन्न-भिन्न स्वरुप नहीं बल्कि वे सनातन सत्य का आधार हैं। समय के पार भी इनकी महत्ता बनी रहेगी। सच्चा साधक, जब भी आत्म-बोध की ओर बढ़ेगा, इन अवतारों की ध्वनि भीतर तक सुन सकेगा - वही दिव्य शक्ति, वही शाश्वत प्रेम, जो पूरी सृष्टि की आत्मा है।
अनुभव: 32
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इनके क्लाइंट: छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
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