By पं. अमिताभ शर्मा
हर क्षेत्र की अद्वितीय कथा से प्रकट गणेश जी के विविध स्वरूप
भारत की संस्कृति में गणेश चतुर्थी का स्थान केवल एक पर्व का नहीं बल्कि लोक स्मृति और परंपरा के गहन प्रतीक का है। यह उत्सव महाराष्ट्र से लेकर कर्नाटक, तमिलनाडु, गोवा, आंध्र प्रदेश और ओडिशा तक अत्यंत धूमधाम के साथ मनाया जाता है। भगवान गणेश केवल विघ्नहर्ता ही नहीं बल्कि ज्ञान, विनम्रता और जीवन के गहरे सत्य के शिक्षक भी हैं।
हर क्षेत्र में इस उत्सव से जुड़ी विशेष कथाएं प्रचलित हैं। विशेष बात यह है कि इन कथाओं के संदेश आज भी समाज के विभिन्न पहलुओं पर लागू होते हैं। कहीं वे सृजन और पुनर्जन्म का संकेत हैं, कहीं वे धैर्य और बुद्धि का प्रतीक हैं और कहीं वे विनम्रता और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े हुए हैं।
सबसे व्यापक रूप से जानी जाने वाली कथा बताती है कि माता पार्वती ने स्नान के समय अपने शरीर पर लगे चंदन लेप से गणेश का निर्माण किया। उन्होंने उसमें प्राण फूंके और उन्हें द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया।
जब भगवान शिव आए और गणेश ने उन्हें प्रवेश से रोका, तो शिव ने क्रोधवश गणेश का मस्तक काट दिया। पार्वती का शोक देखकर शिव ने तुरंत हाथी का शिर लगाकर गणेश को पुनर्जीवित किया और उन्हें देवताओं में प्रथम पूजनीय स्थान दिया। यह घटना हमें सिखाती है कि जीवन में हर अंत एक नई शुरुआत का द्वार खोलता है।
महाराष्ट्र की भूमि पर गणेश चतुर्थी का महत्व महाभारत से भी जुड़ा माना जाता है। कथा के अनुसार जब व्यास ऋषि ने महाभारत के श्लोक बोले तो उन्हें कोई ऐसा चाहिए था जो बिना रुके इसे लिपिबद्ध कर सके।
गणेश ने स्वीकार किया, पर एक शर्त रखी कि लिखाई बिना रुके होनी चाहिए। इसके समाधान के लिए व्यास ने बीच बीच में जटिल श्लोक बोले जिससे गणेश को सोचने का समय मिला। इस कथा का संदेश है: ज्ञान के साथ धैर्य और लगन ही महान कार्य को संभव बनाते हैं।
कर्नाटक में गणेश चतुर्थी रात चंद्र दर्शन का निषेध प्रचलित है। कथानुसार, लड्डुओं का भरपूर सेवन करने के बाद गणेश का रूप चंद्रमा को अजीब लगा और उसने उनका उपहास किया।
क्रोधित होकर गणेश ने चंद्रमा को शाप दिया कि इस दिन जो भी चंद्र दर्शन करेगा, उस पर झूठे आरोप लगेंगे। इसलिए आज भी भक्त इस रात चंद्रमा को नहीं देखते और ‘स्यमंतक मणि की कथा’ का पाठ करके दोष निवारण करते हैं। यह परंपरा याद दिलाती है कि उपहास कभी भी बुद्धि या आस्था का अपमान कर सकता है।
गोवा और कोंकण क्षेत्र में गणेश चतुर्थी विशेष रूप से पारिवारिक और ग्रामीण परंपरा से जुड़ा हुआ है। स्थानीय कथाओं में कहा गया है कि दानवों ने किसानों की फसलों को हानि पहुँचाई तब गणेश ने उन्हें परास्त करके खेत और घर की रक्षा की।
इसी कारण यहां गणेश को केवल देवता नहीं बल्कि खेती और उर्वरता के संरक्षक के रूप में पूजा जाता है। घर आंगन में मिट्टी के गणेश की स्थापना पर्यावरण और कृषि जीवन की पवित्रता का प्रतीक है।
तमिलनाडु और ओडिशा में प्रचलित कथा बताती है कि धन के देवता कुबेर ने अपनी समृद्धि का प्रदर्शन करने के लिए शिव और पार्वती को भोज पर आमंत्रित किया। उनके स्थान पर बाल गणेश पहुंचे और उन्होंने सारा भोजन कर लिया।
कुबेर ने घबराकर शिव से मार्गदर्शन मांगा। तब उन्हें यह शिक्षा मिली कि धन का गर्व व्यर्थ है क्योंकि ज्ञान, संयम और विनम्रता ही सच्चा वैभव है। यही कारण है कि इस क्षेत्र की पूजा पद्धति सादगी और आत्मसंयम पर बल देती है।
इन पांच कथाओं में गणेश जी के अलग अलग रूप और गहन संदेश प्रकट होते हैं। वे कहीं जन्म और नवजीवन का प्रतीक हैं, कहीं सर्वोत्तम लेखक, कहीं शाप और लोकविश्वास का आधार, कहीं कृषक जीवन के संरक्षक और कहीं कुबेर को विनम्रता सिखाने वाले बालक।
यही विविधता भारत की एकता को दर्शाती है। गणेश चतुर्थी केवल उत्सव नहीं बल्कि जीवन के हर पहलू का उपदेश है।
1. गणेश चतुर्थी का सबसे प्रसिद्ध कथा कौन सी है?
गणेश जी के जन्म और हाथी का सिर लगने की कथा सबसे विख्यात है।
2. महाराष्ट्र में गणेश और महाभारत का महत्व कैसे जुड़ा है?
क्योंकि व्यास जी ने उन्हीं से महाभारत लिखवाया था, जिससे उनकी विद्वता का सम्मान होता है।
3. चंद्रमा के शाप की परंपरा क्यों मानी जाती है?
क्योंकि मान्यता है कि उस दिन चंद्र देखकर दोष लगता है और उसका उपाय कथा श्रवण है।
4. गोवा और कोंकण में गणेश को कैसे पूजते हैं?
उन्हें विघ्नहर्ता और खेतों के रक्षक मानकर मिट्टी की मूर्तियों की स्थापना की जाती है।
5. कुबेर की कथा का संदेश क्या है?
धन से अधिक महत्वपूर्ण है ज्ञान और विनम्रता का धारण करना।
अनुभव: 32
इनसे पूछें: जीवन, करियर, स्वास्थ्य
इनके क्लाइंट: छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
इस लेख को परिवार और मित्रों के साथ साझा करें