By पं. संजीव शर्मा
जानिए अग्नि देव की उत्पत्ति की पौराणिक कथा, समुद्र मंथन में उनकी भूमिका और ब्रह्मांडीय महत्व
समुद्र मंथन की कथा में अग्नि की उत्पत्ति को लेकर कई पौराणिक और वैदिक विवरण मिलते हैं। आपके प्रश्न के संदर्भ में, पुराणों और ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार, अग्नि देव का जन्म प्रजापति (ब्रह्मा) के द्वारा हुआ था।
बहुत समय पहले की बात है, जब सृष्टि की रचना अभी प्रारंभ ही हुई थी। ब्रह्मा, जो सृष्टि के प्रजापति और आदि निर्माता थे, ब्रह्मांड को संतुलित करने और जीवन को आगे बढ़ाने के लिए गहन ध्यान में लीन थे। उस समय, सृष्टि में न तो प्रकाश था, न ऊर्जा और न ही यज्ञ की वह ज्वाला, जो देवताओं और मनुष्यों को जोड़ सके।
इसी ब्रह्मांडीय शून्यता में, ब्रह्मा ने अपने मस्तक-यानी ललाट-से एक अद्भुत, दिव्य ऊर्जा प्रकट की। यह ऊर्जा इतनी प्रचंड और तेजस्वी थी कि उसकी ज्वाला ने पूरे ब्रह्मांड को आलोकित कर दिया। ब्रह्मा ने इस दिव्य तेज को एक विशिष्ट रूप दिया और यही रूप था-अग्नि देव का। अग्नि देव न केवल प्रकाश और ऊर्जा के प्रतीक बने, बल्कि शुद्धि, ज्ञान और चेतना के भी अधिष्ठाता हो गए।
समुद्र मंथन की कथा में, जब देवताओं और असुरों ने अमृत की प्राप्ति के लिए मंदराचल पर्वत से क्षीरसागर का मंथन शुरू किया, तो उस प्रक्रिया में भी एक प्रचंड अग्नि की ज्वाला उत्पन्न हुई। यह अग्नि इतनी तीव्र थी कि उसमें सृष्टि को जलाने की भी क्षमता थी। ब्रह्मा ने इस अग्नि को नियंत्रित किया, उसे देवता का रूप दिया और सृष्टि की रक्षा, यज्ञों की अग्नि और जीवन की ऊर्जा के रूप में स्थापित किया।
अग्नि देव को ब्रह्मा के मस्तक से उत्पन्न माना जाता है। वे यज्ञों में आहुति को देवताओं तक पहुँचाने वाले, ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाले और जीवन में चेतना का संचार करने वाले माने जाते हैं। ब्रह्मा ने अग्नि को न केवल एक तत्व, बल्कि एक दिव्य शक्ति के रूप में सृष्टि में स्थान दिया-जो हर युग, हर यज्ञ और हर जीवन के केंद्र में विराजमान है।
यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि अग्नि केवल भौतिक ज्वाला नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की वह दिव्य ऊर्जा है, जो अज्ञान के अंधकार को जलाकर ज्ञान और चेतना का प्रकाश फैलाती है। अग्नि देव का जन्म ब्रह्मा के मस्तक से हुआ-यही कारण है कि अग्नि को सृष्टि के हर शुभ कार्य, यज्ञ और संस्कार में प्रथम स्थान दिया जाता है।
तत्व | विवरण |
---|---|
जन्मदाता | प्रजापति (ब्रह्मा) |
जन्म स्थान | ब्रह्मा के मस्तक (ललाट) से |
समुद्र मंथन में भूमिका | दिव्य ज्वाला के रूप में प्रकट हुए, ब्रह्मा ने उन्हें देवता का रूप दिया |
अन्य नाम | अभिमानी, जाटवेद, पावक, कृव्याद |
स्वरूप | पृथ्वी पर अग्नि, आकाश में बिजली, सूर्य में तेज |
समुद्र मंथन के समय जब अग्नि प्रकट हुए, ब्रह्मा ने उन्हें केवल एक तत्व के रूप में नहीं, बल्कि देवता के रूप में स्वीकार किया। अग्नि को यज्ञ, शुद्धि, जीवन-ऊर्जा और देवताओं तक हवि पहुँचाने वाले माध्यम के रूप में स्थापित किया गया। अग्नि के प्रकट होने से ही सृष्टि में दिन-रात, प्रकाश-अंधकार, जीवन-मरण का चक्र प्रारंभ हुआ।
इस प्रकार, समुद्र मंथन के दौरान अग्नि की उत्पत्ति ब्रह्मा (प्रजापति) के मस्तक से हुई थी। ब्रह्मा ने ही अग्नि को देवता का रूप दिया और उन्हें सृष्टि के संचालन, यज्ञ और शुद्धि का अधिपति बनाया। यह कथा दर्शाती है कि अग्नि केवल भौतिक तत्व नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की दिव्य ऊर्जा, ज्ञान, शुद्धि और सृजन का प्रतीक है।
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