By पं. नीलेश शर्मा
कार्तिकेय की उत्पत्ति, कृतिकाओं का मातृत्व और कृतिका नक्षत्र का अग्नि से संबंध
कृतिका नक्षत्र वैदिक ज्योतिष के 27 नक्षत्रों में तीसरा स्थान रखता है। यह अग्नि तत्व का प्रतीक है और इसकी ऊर्जा शुद्धिकरण, साहस और रूपांतरण को दर्शाती है।
पैरामीटर | विवरण |
---|---|
राशि सीमा | मेष 26°40' से वृषभ 10°00' तक |
नक्षत्र स्वामी | सूर्य |
देवता | अग्नि (अग्निदेव) |
प्रतीक | उस्तरा, छुरी या ज्वाला |
गण | राक्षस |
तत्त्व | अग्नि |
शक्ति | दाहन शक्ति (जलाने और शुद्ध करने की क्षमता) |
बहुत समय पहले की बात है, जब देवताओं और असुरों के बीच युद्ध छिड़ा हुआ था। स्वर्ग संकट में था, क्योंकि एक भयानक असुर तारकासुर ने देवताओं को पराजित कर दिया था। ब्रह्मा से वरदान पाकर वह अजेय हो गया था-उसकी मृत्यु केवल शिव के पुत्र के हाथों ही संभव थी। लेकिन शिव योग में लीन थे, संसार से विरक्त। देवताओं ने शिव और पार्वती के मिलन के लिए प्रार्थना की और जब वह शुभ घड़ी आई, तो शिव के तेज से एक अद्भुत अग्निज्वाला प्रकट हुई। यह तेज इतना प्रबल था कि कोई भी देवी-देवता उसे संभाल नहीं सका।
अग्निदेव को यह तेज सौंपा गया। अग्नि ने उस तेज को अपने भीतर धारण किया, परंतु उसकी प्रचंडता से स्वयं अग्नि भी व्याकुल हो उठे। तब गंगा माता ने उस तेज को अपने जल में समाहित किया। गंगा की लहरों में वह दिव्य तेज एक कमल पर आकर ठहर गया। यहीं से कथा में प्रवेश करती हैं कृतिकाएँ-सप्तऋषियों की पत्नियाँ, जिनका समूह 'कृतिका' कहलाता है। यह तेज दिव्य, जीवंत और अद्भुत था, लेकिन अभी तक वह केवल तेजस्वी ऊर्जा के रूप में था। कृतिकाएँ (सप्तऋषियों की पत्नियाँ) गंगा के तट पर आईं और उन्होंने उस कमल पर ठहरे तेज को देखा। उनकी मातृत्व भावना, स्नेह और सामूहिक शक्ति ने उस दिव्य तेज को बालक का रूप दे दिया। यह एक गूढ़ और प्रतीकात्मक घटना थी-मातृत्व और स्नेह के स्पर्श से ही वह तेज बालक कार्तिकेय के रूप में प्रकट हुआ।
छहों कृतिकाओं ने मिलकर उस बालक का पालन-पोषण किया। उस बालक का नाम पड़ा-कार्तिकेय, जिसे स्कंद, मुरुगन या सुब्रह्मण्य भी कहा जाता है। कृतिकाओं के स्नेह, त्याग और देखभाल ने कार्तिकेय को अद्वितीय योद्धा बना दिया।
जैसे-जैसे कार्तिकेय बड़ा हुआ, उसमें अग्नि की तरह तेज, साहस और नेतृत्व की शक्ति विकसित होती गई। कृतिकाओं ने उसे न केवल स्नेह दिया, बल्कि युद्धकला, अनुशासन और धर्म का पाठ भी पढ़ाया। कार्तिकेय ने अपने जीवन का उद्देश्य जान लिया-तारकासुर का वध और देवताओं को मुक्ति।
एक दिन, जब समय आया, कार्तिकेय ने अपने शस्त्र उठाए और देवताओं के सेनापति के रूप में युद्धभूमि में उतरे। उसकी अग्नि-ज्वाला सी शक्ति और कृतिकाओं के आशीर्वाद ने उसे अजेय बना दिया। अंततः कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया और स्वर्ग को पुनः देवताओं को लौटा दिया।
इस कथा में कृतिका नक्षत्र की आत्मा बसती है-अग्नि की शुद्धि, मातृत्व का त्याग और वीरता की विजय। कृतिकाएँ केवल तारों का समूह नहीं, बल्कि वे हर उस माँ का प्रतीक हैं, जो अपने स्नेह, शिक्षा और अनुशासन से जीवन को दिशा देती है। कार्तिकेय की विजय केवल युद्ध की जीत नहीं, बल्कि यह भी संदेश है कि जब अग्नि की ज्वाला मातृत्व के स्नेह और धर्म के संकल्प से मिलती है, तब असंभव भी संभव हो जाता है।
कृतिका नक्षत्र की यह कथा हमें सिखाती है कि जीवन में शुद्धि, साहस और त्याग के बिना सच्ची विजय संभव नहीं। अग्नि की तरह अपने भीतर की अशुद्धियों को जलाकर, मातृत्व की तरह स्नेह और अनुशासन से जीवन को गढ़कर और कार्तिकेय की तरह धर्म के लिए संघर्ष कर ही हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
पहलू | अर्थ |
---|---|
शुद्धिकरण | अशुद्धियों को जलाकर शुद्ध करना |
रूपांतरण | अनाज को भोजन में बदलने की क्षमता |
ज्ञान | अंधकार को दूर कर प्रकाश फैलाना |
बलिदान | यज्ञ में आहुति देने की भावना |
कृतिका नक्षत्र जातकों में निहित गुण:
कृतिका नक्षत्र प्लीएडेस तारामंडल से जुड़ा है, जिसे हिंदू खगोलशास्त्र में "कृत्तिका" कहा जाता है।
पौराणिक कथाओं से प्रेरित गुण:
गुण | पौराणिक स्रोत |
---|---|
साहस | कार्तिकेय की तरह चुनौतियों का सामना |
रचनात्मकता | अग्नि की तरह ऊर्जा को रूपांतरित करना |
नेतृत्व क्षमता | देवताओं के सेनापति कार्तिकेय का गुण |
शुद्धिकरण | अग्नि की दाहन शक्ति का प्रभाव |
कृतिका नक्षत्र की कथाएँ हमें सिखाती हैं:
"कृतिका नक्षत्र जीवन में अग्नि की भाँति है-जो हमें जलाकर नहीं, बल्कि शुद्ध करके उज्ज्वल बनाती है।"
यह नक्षत्र हमें याद दिलाता है कि विजय केवल शक्ति से नहीं, बल्कि त्याग, स्नेह और शुद्धि से मिलती है। कृतिका की ज्वाला हर युग में मानव को आत्मविश्वास और नैतिक बल देती रहेगी।
अनुभव: 25
इनसे पूछें: करियर, पारिवारिक मामले, विवाह
इनके क्लाइंट: छ.ग., म.प्र., दि.
इस लेख को परिवार और मित्रों के साथ साझा करें