By पं. संजीव शर्मा
जानिए स्वाहा की चतुराई, अग्निदेव के प्रेम और कार्तिकेय के जन्म की रहस्यमयी वैदिक कथा
यह कथा ऋग्वेद (मंडल 1, सूक्त 31) और शतपथ ब्राह्मण (2.2.4) में वर्णित है। इसमें अग्निदेव के प्रेम, स्वाहा की चतुराई और कार्तिकेय के जन्म का रहस्य छिपा है।
एक बार अग्निदेव यज्ञ में हवि ले जाते समय सप्तऋषियों की पत्नियों को देखते हैं। उनके सौंदर्य से मोहित होकर अग्नि उनके पास प्रेम निवेदन करते हैं:
"हे दिव्यांगनाओ! मैं तुम्हारे सौंदर्य से मुग्ध हूँ। तुम्हारे साथ विहार करने की मेरी हार्दिक इच्छा है।"
किंतु ऋषि-पत्नियाँ धर्मभीरु थीं। उन्होंने अग्नि के प्रस्ताव को ठुकरा दिया:
"हे अग्निदेव! हम अपने पतियों के प्रति समर्पित हैं। यह प्रस्ताव धर्म के विरुद्ध है।"
इस घटना को स्वाहा (दक्ष प्रजापति की पुत्री) ने देखा। वह गुप्त रूप से अग्नि से प्रेम करती थीं। उन्होंने एक योजना बनाई:
इन मिलनों से सात ज्वालाएँ उत्पन्न हुईं। स्वाहा ने उन्हें स्वर्ण कलश में एकत्र किया और सरस्वती नदी के तट पर एक सरोवर में छिपा दिया। वहाँ:
जब सप्तऋषियों को सत्य का पता चला, तो अग्नि ने:
घटना | आध्यात्मिक संदेश |
---|---|
अग्नि का मोह | इंद्रियों पर विजय की आवश्यकता |
स्वाहा की छल योजना | प्रेम के लिए धर्मसम्मत मार्ग खोजना |
ज्वालाओं का सरोवर | आत्मशुद्धि की प्रक्रिया |
कार्तिकेय का जन्म | तपस्या से जन्मी दिव्य ऊर्जा |
यह कथा सिखाती है:
"स्वाहा ने अग्नि को सिखाया: प्रेम वह अग्नि है जो स्वार्थ को जलाकर कर्तव्य का पथ प्रकाशित करती है।"
यह कथा वैदिक साहित्य में ऊर्जा के रूपांतरण और नैतिक प्रेम का अद्वितीय उदाहरण है।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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