By पं. संजीव शर्मा
अदिति और वसुओं की यह कथा केवल पौराणिक नहीं, बल्कि जीवन में बार-बार लौटती समृद्धि और आशा का प्रतीक है।
पुनर्वसु नक्षत्र की अधिष्ठात्री देवी अदिति को वेदों और पुराणों में “देवताओं की माता” और “असीम आकाश” कहा गया है। अदिति के पुत्रों में सबसे रोचक और रहस्यमय समूह है “अष्ट वसु”-आठ ऐसे देवता, जो प्रकृति के मूल तत्वों, संपत्ति, प्रकाश और शुभता के प्रतीक हैं। अष्ट वसु और अदिति की यह कथा न केवल पौराणिक, बल्कि गहरे दार्शनिक और ज्योतिषीय अर्थ भी समेटे हुए है।
अष्ट वसु वे आठ देवता हैं, जिन्हें वेदों, उपनिषदों, रामायण और महाभारत में प्रकृति के मूलभूत तत्वों और ब्रह्मांडीय शक्तियों का प्रतिनिधि माना गया है।
वसु का नाम | तत्व / प्रतीक | अर्थ / महत्व |
---|---|---|
आप | जल | जीवन, शुद्धि, प्रवाह |
ध्रुव | ध्रुव तारा / स्थिरता | स्थायित्व, ब्रह्मांड का केंद्र |
सोम | चंद्रमा | शीतलता, अमृत, मन |
धरा | पृथ्वी | आधार, पोषण, स्थिरता |
अनिल | वायु | प्राण, गति, जीवन |
अनल | अग्नि | ऊर्जा, तेज, परिवर्तन |
प्रत्युष | सूर्य / प्रकाश | जागरण, प्रकाश, चेतना |
प्रभास | आकाश / दीप्ति | विस्तार, आभा, ब्रह्मांडीय प्रकाश |
“वसु” का शाब्दिक अर्थ है-धन, संपत्ति, प्रकाश और समृद्धि।
पुनर्वसु नक्षत्र का अर्थ है “पुनः वसु”-अर्थात् हर बार जीवन में प्रकाश, समृद्धि और शुभता का लौट आना।
महाभारत में वर्णित है कि एक बार अष्ट वसु, अपनी पत्नियों के साथ वन में घूम रहे थे। प्रभास की पत्नी ने वशिष्ठ ऋषि की कामधेनु गाय को देखकर उसे पाने की इच्छा की। प्रभास और अन्य वसुओं ने गाय चुरा ली। वशिष्ठ ने अपने योगबल से जानकर वसुओं को श्राप दिया कि वे मनुष्य योनि में जन्म लेंगे। वसुओं ने गंगा से प्रार्थना की कि वह उनकी माता बने। गंगा ने शंतनु से विवाह कर सात वसुओं को जन्म के तुरंत बाद अपने जल में विलीन कर दिया, जिससे वे मुक्त हो गए। आठवां वसु (प्रभास) ही भीष्म के रूप में पृथ्वी पर जीवित रहा।
विषय | विवरण |
---|---|
अदिति का अर्थ | असीम, बंधनरहित, सृष्टि की जननी |
अष्ट वसु | जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु, आकाश, सूर्य, चंद्रमा, तारे |
वसु का अर्थ | धन, प्रकाश, समृद्धि, शुभता |
पुनर्वसु का संदेश | हर कठिनाई के बाद प्रकाश और समृद्धि की वापसी |
पौराणिक कथा | वसुओं का श्राप, गंगा की गोद, भीष्म का जन्म |
अदिति और अष्ट वसु की कथा केवल प्रकृति के तत्वों की कहानी नहीं, बल्कि हर जीवन में बार-बार लौटती आशा, ऊर्जा और समृद्धि का प्रतीक है। पुनर्वसु नक्षत्र अदिति के मातृत्व और वसुओं की शक्ति का वैदिक दीप है-जहाँ हर अंधकार के बाद फिर से प्रकाश, हर हानि के बाद फिर से समृद्धि और हर संघर्ष के बाद फिर से शुभता लौटती है। यह कथा हमें सिखाती है कि प्रकृति, ऊर्जा और जीवन की अनंत संभावनाएँ अदिति के आशीर्वाद और वसुओं की शक्ति से ही संभव हैं।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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