By पं. नीलेश शर्मा
जानिए लग्न भाव की वैदिक व्याख्या, इसके अशुभ-शुभ संकेत, लग्नेश का प्रभाव और समग्र व्यक्तित्व व जीवन दिशा पर इसका महत्व
वैदिक ज्योतिष में लग्न भाव (प्रथम भाव) को संपूर्ण कुंडली का आधार स्तंभ माना गया है। यह वह केन्द्र है जहाँ से जातक के जीवन की यात्रा शुरू होती है। लग्न भाव न केवल हमारे शरीर और रूप का परिचायक है, बल्कि यह हमारे स्वभाव, आत्मविश्वास, मानसिक दृष्टिकोण, प्रतिष्ठा और जीवन की दिशा का निर्धारण करता है।
वैदिक ज्योतिष में जब किसी जातक का जन्म होता है, तब उस क्षण पूर्व दिशा में उदित राशि को लग्न कहा जाता है। यह राशि जातक की कुंडली के प्रथम भाव में स्थापित की जाती है और यह स्थान ही लग्न भाव कहलाता है। इस भाव में स्थित राशि का स्वामी ‘लग्नेश’ कहलाता है।
“लग्न भाव से ही कुंडली की सभी गणनाएं आरंभ होती हैं।”
यह भाव न केवल शारीरिक रूप और स्वास्थ्य का सूचक होता है, बल्कि यह संपूर्ण व्यक्तित्व, आत्मविश्वास, मानसिक शक्ति, प्रतिष्ठा और जीवन की प्रवृत्ति को भी दर्शाता है।
बृहत्पाराशर होरा शास्त्र में कहा गया है -
“लग्नं शरीरं, तदधिपः जीवनं च” — अर्थात लग्न शरीर को दर्शाता है और उसका स्वामी जीवन की ऊर्जा को।
फलदीपिका में स्पष्ट उल्लेख है -
“लग्नं बलं च लग्नेशं, कुंडलीस्य आधारः” — कुंडली का बल लग्न और लग्नेश से ही निर्धारित होता है।
क्षेत्र | विवरण |
---|---|
शारीरिक गठन | शरीर की ऊँचाई, त्वचा का रंग, चेहरा |
स्वास्थ्य | दीर्घायु, रोग प्रतिरोधक क्षमता |
आत्मा और आत्मविश्वास | मानसिक स्थिरता, निर्णय क्षमता |
सामाजिक प्रतिष्ठा | लोक में यश और मान-सम्मान |
मानसिक संरचना | चिंतन, झुकाव, स्वभाव |
प्रारंभिक जीवन | बचपन के अनुभव |
जीवन की दिशा | कर्म का प्रकार और प्रवृत्ति |
लग्न भाव में स्थित राशि का स्वामी ग्रह ‘लग्नेश’ कहलाता है। फलित ज्योतिष में लग्नेश की स्थिति, बल और उस पर पड़ने वाले शुभ-अशुभ प्रभावों का विशेष महत्व है।
ऐसी स्थिति में व्यक्ति को जीवन में बार-बार संघर्ष करना पड़ सकता है।
लग्न भाव में स्थित राशि का स्वामी ग्रह, लग्नेश कहलाता है। इसकी स्थिति, दृष्टि और युति का विश्लेषण करके जातक के जीवन की जड़ें समझी जाती हैं।
लग्न | लग्नेश ग्रह |
---|---|
मेष | मंगल |
वृष | शुक्र |
मिथुन | बुध |
कर्क | चंद्र |
सिंह | सूर्य |
कन्या | बुध |
तुला | शुक्र |
वृश्चिक | मंगल |
धनु | बृहस्पति |
मकर | शनि |
कुंभ | शनि |
मीन | बृहस्पति |
लग्न भाव केवल एक ज्योतिषीय स्थान नहीं, बल्कि जीवन के बीज का प्रतिनिधित्व करता है। यह भाव बताता है कि आप कौन हैं, आपका जीवन किस दिशा में जा सकता है और आपका वास्तविक स्वभाव क्या है।
वैदिक ज्योतिष में अगर किसी एक भाव को ‘जीवन का मूलाधार’ कहा जाए, तो वह निःसंदेह लग्न भाव ही है।
अनुभव: 25
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