By पं. अभिषेक शर्मा
मेसोपोटामिया से चीन और माया तक-सभी संस्कृतियों में ज्योतिष की यात्रा
ज्योतिष का इतिहास केवल एक क्षेत्र या परंपरा तक सीमित नहीं रहा है। यह पूरी दुनिया की संस्कृतियों में अलग-अलग रूपों में पनपा, बदला और समय के साथ विकसित हुआ। जहां भारत में वैदिक ज्योतिष की गहरी जड़ें हैं, वहीं पश्चिमी ज्योतिष का आधार मेसोपोटामिया और प्राचीन यूनान की परंपराओं में है। लगभग हर सभ्यता ने आकाशीय घटनाओं को कभी दैवी संकेतों, तो कभी मानव जीवन के रहस्यों को समझने के साधन के रूप में देखा है।
ज्योतिष की सबसे पुरानी जड़ें मेसोपोटामिया में मानी जाती हैं। यहाँ के पुजारी ग्रहों और तारों की स्थिति को देखकर राजा और राज्य के लिए भविष्यवाणी करते थे। यह एक धार्मिक और राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल होता था।
भारतीय ज्योतिष, जिसे वैदिक ज्योतिष या 'ज्योतिष शास्त्र' भी कहते हैं, हजारों वर्षों से प्रचलित है। यह केवल ग्रहों की स्थिति ही नहीं देखता, बल्कि जीवन, कर्म और पुनर्जन्म जैसी अवधारणाओं से भी गहराई से जुड़ा है।
चीनी ज्योतिष ने एक अलग रास्ता अपनाया, जिसमें 12 पशुओं का चक्र, पांच तत्व (धातु, लकड़ी, जल, अग्नि और पृथ्वी) और यिन-यांग का संतुलन शामिल है। यह सिस्टम पूरी तरह अपनी संस्कृति में समाहित है और आज भी वहां व्यापक रूप से उपयोग में है।
चीनी ज्योतिष एक 12-वर्षीय चंद्र चक्र पर आधारित होती है, जिसमें हर वर्ष को एक पशु चिन्ह सौंपा गया है। इस प्रणाली में लकड़ी, अग्नि, पृथ्वी, धातु और जल जैसे तत्व भी शामिल होते हैं, जो प्रत्येक राशि के साथ परस्पर क्रिया करते हैं। यह प्रणाली व्यक्तित्व गुणों से अधिक जीवन चक्रों और भाग्य पर केंद्रित होती है।
यूनानी दार्शनिकों - जैसे प्लेटो और अरस्तू - ने ज्योतिष के सिद्धांतों पर विचार किया और उसे एक व्यवस्थित ज्ञान प्रणाली में बदला। बाद में रोमन साम्राज्य में ज्योतिष और भी लोकप्रिय हुआ और सम्राटों ने अपने निर्णयों के लिए ज्योतिषाचार्यों की मदद ली।
8वीं से 13वीं शताब्दी के बीच, इस्लामी दुनिया में ज्योतिष का काफी विकास हुआ। विद्वानों ने इसका उपयोग खगोलविज्ञान और चिकित्सा में अध्ययन के लिए किया। कई यूनानी और भारतीय ग्रंथों का अरबी में अनुवाद हुआ और उन्हें और अधिक विकसित किया गया।
जब यूरोप और अमेरिका अन्य संस्कृतियों के संपर्क में आए, तो उन्होंने ज्योतिष के कई तत्त्व अपनाए और स्थानीय तौर-तरीकों के अनुसार उनमें बदलाव किए।
यहां ज्योतिष केवल भविष्यवाणी का साधन नहीं है, बल्कि यह जीवन के चार पुरुषार्थ-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-को समझने का एक माध्यम भी है। कुंडली, दशा, गोचर और नक्षत्रों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है।
इस्लामी परंपरा में ज्योतिष को लेकर मिश्रित दृष्टिकोण है। कुछ पहलुओं को स्वीकार किया गया है-जैसे खगोलशास्त्र या दिशा निर्धारण-जबकि भविष्यवाणी को लेकर सतर्कता बरती जाती है।
मायन, तिब्बती और अफ्रीकी संस्कृतियों में भी ज्योतिष के अपने-अपने सिस्टम विकसित हुए हैं। इन परंपराओं में स्थानीय देवी-देवताओं और प्रकृति की शक्तियों की व्याख्या भी आकाशीय घटनाओं से जुड़ी हुई होती है।
मायन सभ्यता द्वारा विकसित की गई यह ज्योतिष प्रणाली 260 दिनों के पंचांग (ट्ज़ोल्किन) पर आधारित थी। हर व्यक्ति को एक "डे साइन" (दिन चिन्ह) सौंपा जाता था, जो उसके व्यक्तित्व और जीवन पथ को प्रभावित करता था। यह प्रणाली अत्यधिक गणनात्मक थी, जिसमें सूर्य और चंद्रमा की गतियों के जटिल हिसाब शामिल होते थे।
आज भी ज्योतिष अख़बारों, टीवी शो और सोशल मीडिया के माध्यम से आम लोगों की दिनचर्या का हिस्सा बना हुआ है। राशिफल पढ़ना और राशि के आधार पर अपनी पहचान बनाना एक सामान्य चलन है।
लोग जीवन के निर्णयों-जैसे विवाह, करियर, या स्वास्थ्य-के लिए ज्योतिषाचार्यों से सलाह लेते हैं। यह उन्हें मानसिक स्पष्टता और दिशा देता है।
ज्योतिष के विषय में वैज्ञानिकों के अपने अपने मत हैं और वैज्ञानिक इस क्षेत्र में और शोध की मांग करते हैं। शोध होने भी चाहिए और ये भी दिन रखा जाना चाहिए कि ज्योतिष मानव स्वभाव को समझने और आत्मनिरीक्षण के लिए एक उपयोगी माध्यम बना हुआ है।
ज्योतिष केवल एक पद्धति नहीं है, यह मानव सभ्यता के सोचने, समझने और ब्रह्मांड से संबंध बनाने के तरीके को दर्शाता है। अलग-अलग संस्कृतियों में यह अलग रूपों में विकसित हुआ, लेकिन एक बात समान रही-मनुष्य ने हमेशा आकाश की ओर देखकर अपने जीवन के रहस्यों को समझने की कोशिश की है।
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