By पं. अभिषेक शर्मा
वेदांग परंपरा में ज्योतिष शास्त्र की विविध शाखाएं और उनके विशेष प्रयोग

ज्योतिष शास्त्र सिर्फ जन्मपत्री या राशियों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी कई अलग-अलग शाखाएं हैं जो अलग-अलग उद्देश्य और विधियों पर आधारित होती हैं। प्राचीन भारतीय ज्योतिष को छह मुख्य शाखाओं में विभाजित किया गया है-जातक (Jataka), गोल (Gola), निमित्त (Nimitta), प्रश्न (Prasna), मुहूर्त (Muhurta) और गणित (Ganita)। ये सभी शाखाएं मिलकर ज्योतिष को एक पूर्ण और गहराई से अध्ययन किया जाने वाला विज्ञान बनाती हैं। इस लेख के माध्यम से हमारा प्रयास आपको इन छहों शाखाओं के बारे में विस्तार से बताना है।
हिंदू ज्योतिष (Jyotish) को प्राचीन आचार्यों ने विभिन्न हिस्सों में विभाजित किया था ताकि इसकी गहराई और विविधताओं को स्पष्ट रूप से समझा जा सके। सबसे पहले, प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर ने ज्योतिष को तीन मुख्य भागों में बांटा था: गणित (Ganita), होरा (Hora) और अंगविनिश्चय (Angavinischaya)। बृहत संहिता (Brihat Samhita I.9) में वराहमिहिर लिखते हैं: "ज्योतिष विज्ञान को तीन मुख्य स्कंधों में विभाजित किया गया है: गणित या तंत्र, होरा और अंगविनिश्चय। इन सभी का समग्र रूप संहिता कहा जाता है। गणित स्कंध ग्रहों की गति और राशियों के माध्यम से गणनाओं पर आधारित है। होरा स्कंध जन्मकुंडली और भविष्यवाणी से संबंधित है, जबकि अंगविनिश्चय लग्न और भावों की गणना की विधियों को बताता है।" शुरुआती काल में गणनात्मक पक्ष (Calculations) को दो भागों में विभाजित किया गया था-ग्रहों की स्थिति निकालने की गणना गणित (Ganita) में आती थी और लग्न की गणना को अंगविनिश्चय (Angavinischaya) में रखा गया था। ऋषि गर्ग ने भी ज्योतिष को तीन भागों में बांटा था, जिसमें तीसरे भाग को उन्होंने शाखा (Shakha) कहा।
17वीं शताब्दी की ग्रंथ प्रश्नमार्ग (Prasna Marga I.5-6) में एक और वर्गीकरण देखने को मिलता है। इसमें ज्योतिष को तीन स्कंधों और छह अंगों में बांटा गया है। "प्राचीन ज्योतिष शास्त्र को तीन स्कंधों और छह अंगों में विभाजित किया गया है: गणित, संहिता और होरा - ये तीन स्कंध हैं।" "महर्षियों ने ज्योतिष को छह अंगों में वर्गीकृत किया है: जातक, गोल, निमित्त, प्रश्न, मुहूर्त और गणित।" (Prasna Marga I.6)
संस्कृत शब्द "स्कंध" का अर्थ होता है "वृहत विभाग" या "मुख्य शाखा"। वेदांग ज्योतिष या पारंपरिक वैदिक ज्योतिष में, स्कंध शब्द का प्रयोग किसी ज्ञान-विज्ञान के व्यापक और मूलभूत वर्गीकरण के लिए किया जाता है। यह मुख्य श्रेणियों को दर्शाता है, जिनके अंतर्गत विशिष्ट उप-विषयों का अध्ययन किया जाता है। जैसे, जातक, निमित्त, आदि। "अंग" का शाब्दिक अर्थ है "अवयव" या "अंग-भाग"। स्कंध की तुलना में अंग एक अधिक सूक्ष्म इकाई होती है। जिस प्रकार किसी शरीर के कई अंग होते हैं, वैसे ही किसी स्कंध के अंतर्गत कई अंग होते हैं। वैदिक ज्योतिष में अंग उस विशिष्ट तकनीकी या व्यावहारिक शाखा को कहते हैं जो किसी व्यापक स्कंध का हिस्सा होती है। जैसे, गणित स्कंध, होरा स्कंध, आदि। प्रश्नमार्ग (Prasna Marga I.7) में इन स्कंधों और अंगों के बीच का संबंध स्पष्ट किया गया है: "गणित स्कंध में गणित और गोल दोनों अंग आते हैं। होरा स्कंध में होरोस्कोपी, प्रश्न, मुहूर्त और निमित्त का एक भाग शामिल है। संहिता स्कंध विशेष रूप से निमित्त पर केंद्रित होता है।"
इसी ग्रंथ के एक अन्य श्लोक में एक और वर्गीकरण मिलता है: "ज्योतिष को दो भागों में भी विभाजित किया जा सकता है: प्रमाण और फल। गणित स्कंध प्रमाण में आता है, जबकि अन्य दो स्कंध फल के अंतर्गत आते हैं।" (Prasna Marga I.9) यह दोहरा वर्गीकरण ज्योतिष के दो मूल पक्षों को दिखाता है:
ज्योतिष शास्त्र का यह विस्तृत वर्गीकरण दर्शाता है कि कैसे प्राचीन आचार्यों ने इसकी गहराई को संरचित किया। चाहे वह गणनात्मक भाग हो या फलादेश का विवेचन, इन स्कंधों और अंगों ने मिलकर ज्योतिष को एक वैज्ञानिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक प्रणाली में परिवर्तित किया। इस ज्ञान की जड़ें वेदों की छह अंगों की परंपरा से जुड़ी हुई हैं, जिससे ज्योतिष की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्ता और अधिक स्पष्ट होती है।

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