By पं. अभिषेक शर्मा
जानें बाल, कुमार, युवा, वृद्ध और मृत अवस्था में ग्रहों का महत्व और उनका फल।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र कहता है कि ग्रह केवल अपनी राशि और भाव से ही फल नहीं देते, बल्कि उनके अंश (डिग्री) भी यह बताते हैं कि वे कितनी शक्ति से काम कर रहे हैं। ग्रह किस अवस्था में है, यह तय करता है कि वह शुभ या अशुभ फल कितनी क्षमता से देगा।
राशियों को दो वर्गों में बाँटा गया है।
इन्हीं पर आधारित होकर ग्रहों की अंशानुसार अवस्थाएँ तय की जाती हैं।
हर राशि में 30 अंश होते हैं। इन 30 अंशों को 6-6 अंश के 5 हिस्सों में बाँटा जाता है। हर भाग में ग्रह की एक अलग अवस्था होती है।
विषम राशियों में ग्रह की अवस्थाएँ
सम राशियों में ग्रह की अवस्थाएँ (क्रम उल्टा हो जाता है)
तालिका: ग्रहों की अंशानुसार अवस्थाएँ
राशि का प्रकार | 0-6° | 7-12° | 13-18° | 19-24° | 25-30° |
---|---|---|---|---|---|
विषम राशि | बाल | कुमार | युवा | वृद्ध | मृत |
सम राशि | मृत | वृद्ध | युवा | कुमार | बाल |
यदि किसी जातक की कुंडली में बृहस्पति (गुरु) धनु राशि में 15° पर स्थित है, तो वह युवा अवस्था में है। इसका अर्थ है कि जातक को शिक्षा, संतान और भाग्य में अत्यधिक अच्छे परिणाम मिलेंगे। वहीं यदि वही बृहस्पति 27° पर बैठा हो, तो वह मृत अवस्था में होगा और परिणाम कमजोर हो जाएँगे।
जब दो या अधिक ग्रह एक ही भाव में बैठते हैं तो उसे युति कहते हैं।
तुलनात्मक तालिका: ग्रह की अवस्था और उसका प्रभाव
अवस्था | बल | परिणाम |
---|---|---|
बाल | कमजोर | अधूरा फल, अस्थिरता |
कुमार | मध्यम | संघर्ष के बाद आंशिक सफलता |
युवा | सबसे मजबूत | पूर्ण सफलता और शक्ति |
वृद्ध | कमज़ोर | सीमित परिणाम, थकान |
मृत | निष्क्रिय | शुभ फल न मिलना, बाधाएँ |
क्योंकि यह बताती है कि ग्रह वास्तव में कितने बलवान हैं और वे किस स्तर तक फल देंगे।
युवा अवस्था को सबसे शक्तिशाली और फलदायी माना जाता है।
मृत अवस्था में ग्रह बहुत कमजोर होता है और शुभ परिणाम नहीं दे पाता।
जब वे युवा अवस्था में हों और शुभ ग्रहों की दृष्टि पा रहे हों।
क्योंकि डिग्री जितनी निकट होगी उतना ही उनका प्रभाव गहरा और मजबूत होगा।
अनुभव: 19
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