By अपर्णा पाटनी
तुलसीदास की यह दिव्य चौपाई क्यों है आध्यात्मिक रूपांतरण का मंत्र, जानें अर्थ, प्रभाव और पाठ विधि
जा पर कृपा राम की होई ।
ता पर कृपा करहिं सब कोई ॥
जिनके कपट, दम्भ नहिं माया ।
तिनके हृदय बसहु रघुराया ॥
अर्थ: जिस व्यक्ति पर भगवान श्रीराम की कृपा होती है, उस पर संसार के सभी लोग भी कृपा करते हैं। जिनके मन में कपट, दंभ (अहंकार) और माया (छल, मोह) नहीं होती, उन्हीं के हृदय में श्रीराम निवास करते हैं।
कहु तात अस मोर प्रनामा ।
सब प्रकार प्रभु पूरनकामा ॥
दीन दयाल बिरिदु संभारी।
हरहु नाथ मम संकट भारी॥
अर्थ: हे तात (पिता/प्रियजन), मेरा प्रणाम स्वीकार करें। प्रभु श्रीराम सभी प्रकार से पूर्णकाम (संपूर्ण इच्छाओं को पूर्ण करने वाले) हैं। हे दीनों पर दया करने वाले प्रभु, अपनी दयालुता का स्मरण करें और मेरे सभी भारी संकटों को दूर करें।
होइहि सोइ जो राम रचि राखा ।
को करि तर्क बढ़ावै साखा ॥
अस कहि लगे जपन हरिनामा ।
गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा ॥
अर्थ: जो कुछ भी होगा, वही होगा जो श्रीराम ने पहले से ही तय कर रखा है। तर्क-वितर्क करने से कोई लाभ नहीं, इसलिए व्यर्थ की चिंता नहीं करनी चाहिए। ऐसा कहकर भगवान शिव हरि (विष्णु/राम) का नाम जपने लगे और सती वहां चली गईं, जहां प्रभु श्रीराम सुखपूर्वक विराजमान थे।
इन चौपाइयों में श्रीराम की कृपा, निष्कपट भक्ति, ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण और संकट में प्रभु की शरण का भाव गहराई से व्यक्त किया गया है। जो भी अपने मन से छल, अहंकार और माया को दूर कर सच्चे भाव से राम का स्मरण करता है, उसके जीवन से सभी संकट दूर हो जाते हैं और प्रभु स्वयं उसके हृदय में निवास करते हैं।
यह चौपाई जीवन के तीन सूत्र सिखाती है:
"राम कृपा बिनु भवनाश न होई"
तुलसीदास जी का अमर सूत्र
श्रीरामचरितमानस की यह चौपाई केवल शब्द नहीं, बल्कि भक्ति, शुद्धता और राम कृपा का जीवंत मंत्र है। प्रतिदिन इसका पाठ करने से जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन आता है: मन की शांति, शारीरिक स्वास्थ्य, कष्टों से मुक्ति और आत्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। आज ही इस पावन चौपाई को अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करें और जीवन को राममय बनाएँ।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, मुहूर्त
इनके क्लाइंट: म.प्र., दि.
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