By पं. अभिषेक शर्मा
जानिए चातुर्मास 2025 की तिथियां, आध्यात्मिक महत्व, नियम और इन चार महीनों में अपनाने योग्य विशेष साधनाएं
सावन की पावन बयार के साथ ही चातुर्मास का आगमन भारतीय संस्कृति में साधना, संयम और आत्मिक शुद्धि का अद्भुत अवसर लेकर आता है। यह चार महीनों का विशेष काल न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि जीवन को अनुशासन और संतुलन देने के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। आइए, चातुर्मास के हर पहलू को विस्तार से समझें और जानें इससे जुड़े अन्य महत्वपूर्ण विषयों के बारे में।
आरंभ तिथि | समापन तिथि |
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6 जुलाई 2025, रविवार | 1 नवम्बर 2025, शनिवार |
चातुर्मास की शुरुआत आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देवशयनी एकादशी) से होती है और समापन कार्तिक शुक्ल एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) पर होता है।
माह | क्या त्यागें |
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श्रावण | हरी पत्तेदार सब्जियां |
भाद्रपद | दही |
आश्विन | दूध |
कार्तिक | उड़द दाल, तामसिक भोजन |
हर माह के अनुसार आहार में संयम और त्याग का विशेष महत्व है।
देवशयनी एकादशी से चातुर्मास शुरू होता है और प्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु के जागरण के साथ समापन होता है। इन दोनों तिथियों का विशेष धार्मिक महत्व है।
चातुर्मास में संत, साधु और संन्यासी यात्रा नहीं करते, बल्कि एक ही स्थान पर रहकर साधना, प्रवचन और सत्संग करते हैं। यह परंपरा वर्षा ऋतु में यात्रा की कठिनाई के कारण शुरू हुई थी, लेकिन अब इसका उद्देश्य समाज को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देना है।
मानसून के दौरान पाचन शक्ति कमजोर रहती है, इसलिए हल्का, सात्विक भोजन और संयमित जीवनशैली स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। साथ ही, पर्यावरण संरक्षण और जल संरक्षण का संदेश भी चातुर्मास में छुपा है।
इस काल में कई शुभ योग, जैसे सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत योग, और ग्रहों के विशेष संयोग बनते हैं। इन योगों में पूजा, हवन और जप का विशेष फल मिलता है।
चातुर्मास साधकों के लिए आत्मनिरीक्षण, संयम और साधना का स्वर्णिम अवसर है। जब बाहर वर्षा की बूंदें गिरती हैं, तब भीतर भक्ति की धाराएं बहती हैं। यह काल जीवन में अनुशासन, सकारात्मकता और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करता है। जब हम संयम, सेवा और साधना के पथ पर चलते हैं, तो जीवन में शांति, संतुलन और दिव्यता का अनुभव होता है।
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