By पं. अमिताभ शर्मा
योगिनी एकादशी की कथा से जानें पापों के नाश और मोक्ष की ओर बढ़ने का दिव्य मार्ग
योगिनी एकादशी हिन्दू धर्म की उन एकादशियों में से है, जिन्हें मोक्षदायिनी और पापों का नाश करने वाली माना गया है। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है। यह व्रत न केवल सांसारिक बंधनों से मुक्ति का मार्ग है, बल्कि आध्यात्मिक शुद्धि, स्वास्थ्य और समृद्धि का भी अद्भुत साधन है। योगिनी एकादशी की कथा, उसका वैदिक महत्व और ज्योतिषीय दृष्टि से इसका प्रभाव जानना हर साधक के लिए अत्यंत लाभकारी है।
प्राचीन समय में अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नामक राजा का राज्य था, जो भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। उनके सेवक हेममाली का कार्य प्रतिदिन मानसरोवर से फूल लाकर भगवान शिव की पूजा के लिए देना था। हेममाली की पत्नी विशालाक्षी अत्यंत सुंदर थी, और एक दिन वह पत्नी के प्रेम में इतना डूब गया कि पूजा के समय पर फूल लाना भूल गया। राजा कुबेर को जब यह ज्ञात हुआ, तो उन्होंने हेममाली को श्राप दिया कि वह अपनी पत्नी के वियोग में तड़पेगा और मृत्युलोक में कोढ़ रोग से ग्रसित होकर भटकता रहेगा।
कुबेर के श्राप से हेममाली स्वर्ग से गिरकर पृथ्वी पर आ गया और कोढ़ रोग से पीड़ित हो गया। उसकी पत्नी भी उससे अलग हो गई। जीवन के कष्टों से जूझते हुए हेममाली ने हिमालय की ओर प्रस्थान किया और वहां महान तपस्वी मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुँचा। ऋषि ने उसकी दशा जानकर पूछा, "तुम्हें यह कष्ट क्यों मिला?" हेममाली ने अपनी पूरी कथा सुनाई और मुक्ति का उपाय पूछा।
मार्कण्डेय ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। उन्होंने कहा, "यदि तुम श्रद्धा और नियमपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत करोगे, तो तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जाएंगे और रोग से मुक्ति मिलेगी।" हेममाली ने ऋषि के निर्देशों का पालन किया, व्रत रखा, भगवान विष्णु की पूजा की और मंत्रों का जाप किया। व्रत के प्रभाव से उसका कोढ़ दूर हो गया, पत्नी से पुनर्मिलन हुआ और उसे स्वर्ग में पुनः स्थान प्राप्त हुआ। यह कथा दर्शाती है कि योगिनी एकादशी का व्रत न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और आत्मिक कल्याण का भी मार्ग है।
पद्म पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण और स्कंद पुराण में योगिनी एकादशी का महत्व विस्तार से बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत का पुण्य 88,000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए अनुशंसित है, जो रोग, दरिद्रता, मानसिक अशांति या पापों के बोझ से ग्रस्त हैं। भगवान विष्णु इस दिन योग निद्रा में रहते हुए भी अपने भक्तों की पुकार सुनते हैं और उनके जीवन से कष्टों का निवारण करते हैं।
यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि अपने कर्तव्यों की उपेक्षा, चाहे वह छोटा ही क्यों न हो, जीवन में बड़ी बाधाओं का कारण बन सकती है। लेकिन पश्चाताप, भक्ति और व्रत के माध्यम से कोई भी साधक अपने पापों का प्रायश्चित कर सकता है और ईश्वर की कृपा प्राप्त कर सकता है।
वैदिक ज्योतिष में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। माना जाता है कि एकादशी के दिन चंद्रमा और सूर्य की स्थिति साधक के मन और आत्मा पर गहरा प्रभाव डालती है। योगिनी एकादशी पर उपवास और पूजा करने से मन की शुद्धि होती है, ग्रहों के अशुभ प्रभाव शांत होते हैं और विशेषकर शनि, राहु-केतु के दोष कम होते हैं। यह व्रत नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर, सकारात्मकता और आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाता है, जिससे साधक का जीवन संतुलित और सुखमय बनता है।
योगिनी एकादशी की कथा केवल एक पौराणिक घटना नहीं, बल्कि जीवन के हर साधक के लिए एक गहरा संदेश है-अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहना, समय पर धर्म का पालन करना और कठिनाइयों में भी ईश्वर की शरण में जाना। जब जीवन में अंधकार छा जाए, तब योगिनी एकादशी का व्रत आशा, शक्ति और दिव्यता का दीपक बन जाता है। यह व्रत हमें सिखाता है कि पश्चाताप, श्रद्धा और भक्ति से जीवन के सबसे कठिन पाप भी मिट सकते हैं और ईश्वर की कृपा से नया जीवन मिल सकता है।
योगिनी एकादशी की कथा और उसका व्रत न केवल धार्मिक, बल्कि आध्यात्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी अत्यंत प्रभावशाली है। यह व्रत साधक को पापों से मुक्त कर, जीवन में शांति, समृद्धि और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। श्रद्धा और नियमपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत रखने से हर साधक को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा अवश्य प्राप्त होती है।
अनुभव: 32
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