By पं. सुव्रत शर्मा
माताओं के प्रेम, संतति-सुरक्षा और धागे के विसर्जन की पवित्र विधि

जिउतिया व्रत एक गहन और पवित्र उपवास है जिसे माताएँ अपनी संतानों के दीर्घजीवन, उत्तम स्वास्थ्य और समग्र कल्याण के लिए करती हैं। यह व्रत मातृत्व की करुणा और निःस्वार्थ प्रेम का अद्वितीय प्रतीक है। इस अनुष्ठान का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है जिउतिया का धागा (जिउतिया थ्रेड), जिसे व्रत के समय बांधा जाता है। यह धागा न केवल एक साधारण सूत है बल्कि माँ और संतान के बीच बने उस दिव्य बंधन का प्रत्यक्ष प्रतीक है जो सुरक्षा, आशीर्वाद और मातृत्व की शक्ति का द्योतक है।
किन्तु यह धागा केवल बांधने के समय ही महत्वपूर्ण नहीं होता बल्कि इसे हटाने का सही समय और सही विधि से विसर्जन करना भी व्रत की सफलता और पवित्रता के लिए अनिवार्य है। यदि इस नियम की उपेक्षा की जाए तो व्रत के सभी आध्यात्मिक फल बाधित हो सकते हैं। आइए विस्तार से समझें कि जिउतिया धागा कब हटाना चाहिए, कैसे विसर्जित करना चाहिए और इसकी आध्यात्मिक महत्ता क्या है।
जिउतिया का धागा माँ के उपवास और प्रार्थनाओं से संचित दिव्य ऊर्जा का माध्यम है। इसे व्रत समाप्त होते ही तुरंत हटाना अशुभ माना जाता है। शास्त्रकारों और ज्योतिषाचार्यों का मत है कि व्रत समाप्त होने के बाद भी कम से कम 24 घंटे तक धागा धारण करके रखना चाहिए।
वर्ष 2025 में जिउतिया व्रत 14 सितम्बर को आरंभ होकर 15 सितम्बर को समाप्त होगा। इस दिन जब माता उपवास भंग करती हैं तब भी उन्हें धागा नहीं उतारना चाहिए। पूरे दिन उसे धारण करके रखना चाहिए ताकि व्रत के दौरान आमंत्रित दिव्य ऊर्जाएँ पूरी तरह से स्थापित हो सकें। केवल अगले दिन अर्थात 16 सितम्बर को इसे श्रद्धापूर्वक उतारना चाहिए।
यह नियम दर्शाता है कि माँ की प्रार्थना और सतर्कता केवल एक दिन की प्रक्रिया नहीं बल्कि सतत् सुरक्षा और संतानों के जीवन में शक्ति का प्रवाह है। समय पर हटाया गया धागा ही व्रत की पूर्णता और आशीर्वाद का प्रतीक होता है।
धागा हटाना केवल शारीरिक क्रिया नहीं बल्कि एक लघु पूजन और संस्कार है। इसे श्रद्धा, भक्ति और पूर्ण मनोयोग से करना चाहिए।
जब माँ धागा उतारें तो उनका मन पूरी तरह शांत और सकारात्मक होना चाहिए। बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य, लंबी आयु और समृद्धि की मंगलकामनाएँ करते हुए इसे धीरे-धीरे और सावधानीपूर्वक उतारना चाहिए। यह क्षण प्रतीक है उस दिव्य शक्ति को संतान के जीवन में स्थानांतरित करने का, जिसे माँ ने अपने व्रत और तप से संचित किया है।
यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हटाते समय यह भाव जागृत हो कि धागे में निहित प्रत्येक मन्त्र, प्रत्येक आशीर्वाद अब प्रत्यक्ष रूप से संतान की रक्षा करेगा। यह कार्य यांत्रिक रूप से न कर बल्कि पूरे भाव और श्रद्धा के साथ करना चाहिए।
धागे का विसर्जन सबसे महत्वपूर्ण चरण है। इसे किसी भी हालत में लापरवाही से नहीं फेंकना चाहिए, क्योंकि यह माँ के तप और प्रार्थना का प्रतीक है। परंपरानुसार धागे का विसर्जन तीन विधियों से किया जाता है,
पवित्र जल में विसर्जन: सबसे श्रेष्ठ तरीका यह है कि धागे को किसी नदी, कुएँ, तालाब या सरोवर में प्रवाहित किया जाए। जल हिंदू संस्कृति में शुद्धि और ऊर्जा का वाहक माना जाता है। जैसे ही धागा जल में प्रवाहित होता है, उसकी सकारात्मक ऊर्जा पुनः प्रकृति में समाहित हो जाती है और यह माना जाता है कि वह ऊर्जा संतति के जीवन को संरक्षित करती रहेगी। इस समय माता को जिमूतवाहन देव और जिउतिया माता की प्रार्थना करनी चाहिए।
पवित्र वृक्षों के नीचे धागा चढ़ाना: यदि जलस्रोत उपलब्ध नहीं है तो तुलसी या पीपल के वृक्ष को धागा अर्पित करना भी शुभ है। तुलसी और पीपल स्वयं दैवी ऊर्जा के प्रतीक हैं। इनके नीचे धागा रखकर यह भाव प्रकट किया जाता है कि प्रकृति इस ऊर्जा को ग्रहण कर परिवार की रक्षा और कल्याण करेगी।
पूजाघर में सुरक्षित रखना: जिन माताओं के लिए बाहर जाना संभव न हो, वे धागे को घर के पूजाघर में सुरक्षित कर सकती हैं। यह भी उतना ही आध्यात्मिक महत्व रखता है क्योंकि पूजास्थल की ऊर्जा धागे की पवित्रता को बनाए रखती है।
यह धागा मात्र वस्त्र का एक टुकड़ा नहीं बल्कि मातृत्व की सुरक्षा शक्ति का प्रतीक है। इसमें उपवास के दौरान किए गए मन्त्र, आशीर्वाद और प्रार्थनाएँ संचित होती हैं। जब इस धागे को उचित विधि से विसर्जित किया जाता है तो इसका अर्थ है कि माँ ने अपने पूर्ण तप को संतान के जीवन में प्रवाहित कर उसे सुरक्षित किया।
धागा इस बात का प्रमाण है कि माँ की प्रार्थना और जिउतिया माता की कृपा उसके बच्चे के जीवन को हर प्रकार की विपत्ति और संकट से बचाकर दीर्घायु बनाएगी।
वर्ष 2025 में, जिउतिया व्रत 14 सितम्बर से शुरु होकर 15 सितम्बर को समाप्त होगा। उपवास पूर्ण होने के बाद भी माताओं को 16 सितम्बर तक धागा धारण कर उचित विधि से विसर्जन करना ही व्रत की पूर्णता और पवित्रता का प्रतीक होगा।
प्रश्न 1: जिउतिया का धागा तुरंत क्यों नहीं हटाना चाहिए?
उत्तर: क्योंकि यह धागा उस दिव्य ऊर्जा का वाहक है जिसे व्रत के दौरान संचित किया गया है। इसे 24 घंटे पहनकर रखना आवश्यक है ताकि ऊर्जा पूर्ण रूप से संतान तक पहुँचे।
प्रश्न 2: जिउतिया का धागा कैसे हटाना चाहिए?
उत्तर: इसे धीरे और श्रद्धा से, संतानों की मंगलकामना करते हुए उतारना चाहिए। धागा हटाना भी एक लघु पूजन है।
प्रश्न 3: विसर्जन की सर्वोत्तम विधि कौन सी है?
उत्तर: पवित्र नदी या सरोवर में विसर्जन श्रेष्ठ है। तुलसी/पीपल के वृक्ष में चढ़ाना अथवा पूजाघर में रखना भी मान्य है।
प्रश्न 4: धागे से जुड़ी कौन सी गलतियाँ नहीं करनी चाहिए?
उत्तर: धागे को जलाना, कचरे में डालना या पैरों से लगाना अशुभ और अपवित्रता का कार्य है।
प्रश्न 5: धागे का आध्यात्मिक महत्व क्या है?
उत्तर: यह मातृत्व की प्रार्थना और दिव्य शक्ति का प्रतीक है, जो संतान के जीवन में सुरक्षा और आशीष लेकर आता है।

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