By पं. संजीव शर्मा
गायों की पूजा का पवित्र पर्व
गोपाष्टमी एक अत्यंत आध्यात्मिक पर्व है जो गायों की पूजा को समर्पित है। गाय हिंदू धर्म में पोषण, पवित्रता और मातृसुलभ स्नेह का प्रतीक मानी जाती है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की आष्ठमी को मनाया जाता है और बहुत बड़ा सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्व रखता है। गाय को गौ माता के रूप में आदर दिया जाता है क्योंकि वे दिव्यता के स्वरूप हैं, जो जीवन और समृद्धि की देखभाल करती हैं।
गाय केवल एक घरेलू पशु नहीं बल्कि विभिन्न देवताओं का स्वरूप मानी जाती है। प्राचीन शास्त्रों में कहा गया है कि गाय में सारे देव-देवता निवास करते हैं, अतः उसकी पूजा सभी दिव्य शक्तियों की उपासना की भांति है। इसके अलावा गाय को भूमि देवी (भू देवी) का रूप माना जाता है, जो जीवन-दायिनी और निःस्वार्थ पोषण की प्रतिमूर्ति है। गोपाष्टमी के दिन भक्त स्वयं को इस दिव्य पोषण का आभार प्रकट करते हैं और मानते हैं कि पूजा से समृद्धि, सौभाग्य, इच्छाओं की पूर्ति और मन-आत्मा की शुद्धि होती है।
यह पर्व उस दिन का प्रतीक है जब नन्दा महाराज ने बालक कृष्ण और बलराम को पहली बार गौ-पालन की पावन जिम्मेदारी सौंपा। इस आयु-काल को पागंदा (६ से १० वर्ष) कहा जाता है, जो कृष्ण के दिव्य कर्तव्य की शुरुआत थी। तब से कृष्ण, जिन्हें गोपाल कहा जाता है, गायों और प्राकृतिक जीवन के साथ गहरे प्रेम और तालमेल में रहे। वृंदावन में गायों और गोपसों (गाय पालकों) के साथ उनका जीवन दिव्यता, संरक्षण और प्राकृतिक सामंजस्य का प्रतिमान है।
भगवता पुराण की एक प्रख्यात कथा बताती है कि इंद्र देव जब अपने पूजा बंद होने से क्रोधित होकर अत्यधिक वर्षा करने लगे तब कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठा लिया और लोगों तथा गायों को इसकी छाया में सुरक्षित रखा। अंततः इंद्र ने अपनी हार स्वीकार की और बारिश बंद की। उस समय ऐश्वर्यवती स्वारभी गाय ने कृष्ण पर दूध की वर्षा की, जिससे उन्हें "गोविंद" कहा गया। यह कथा गायों के दिव्य संरक्षण और कृष्ण के गौपाल रूप को दर्शाती है।
भक्त प्रातः काल स्नान कर अपने शरीर और मन को शुद्ध करते हैं। गायों की शुद्धता के लिए उन्हें स्नान, कंघी और सजावट की जाती है। उन्हें रंग-बिरंगे वस्त्र, हल्दी, कुमकुम, फूल और पारंपरिक आभूषणों से सजाया जाता है। साथ ही गौशाला और आस-पास की जगह को अच्छी तरह साफ किया जाता है, जिससे पवित्रता बनी रहे। गाय की श्रृंगार पूजा में श्रद्धा और सम्मान प्रकट होता है।
मुख्य अनुष्ठान गायों व उनके बछड़ों की सामूहिक पूजा है, जो जीवन के निरंतरता और दानशीलता का प्रतीक है। जल, धान, हल्दी, कुमकुम, मिठाई, गुड़ और ताजे पुष्प अर्पित किए जाते हैं। गौशाला के आसपास खूबसूरती से रंगोली बनाई जाती है और अगरबत्तियाँ जलाई जाती हैं, जिससे वातावरण भक्तिमय रहता है।
मंदिरों में पंडित मंत्रोच्चार करते हैं और आरती करते हैं। भक्तजन कृष्ण और गौ माता के भजन और कीर्तन गाते हैं। चावल और गुड़ का अर्पण जीवन और मिठास का प्रतीक है। वस्त्र और फूल सम्मान का संकेत हैं, तथा सुगंध और धूप शुद्धता का। ग्रामीण इलाकों में सजाई गई गायों की शोभा यात्रा और बच्चों, ग्रामीणों का जोशपूर्ण सहभागी होना उत्साहपूर्ण दृश्य प्रस्तुत करता है।
शहरी क्षेत्रों में जहां गाय पूजा संभव नहीं होती, वहाँ भी गोपाष्टमी के मूल भाव - पशु सम्मान, प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और पर्यावरणीय संतुलन - सशक्त रूप से मौजूद रहते हैं। कृषि-आधारित समुदायों के लिए यह पर्व गाय के महत्व, डेयरी उद्योग, आर्थिक स्वतंत्रता और पारिस्थितिक संतुलन की याद दिलाता है। यह सभी को गौ संरक्षण और पर्यावरण की देखभाल का संदेश देता है।
गोपाष्टमी केवल पूजा-पाठ का पर्व नहीं बल्कि गहन आध्यात्मिक और नैतिक चिंतन का अवसर है। यह मनुष्य और प्रकृति के बीच पवित्र अनुबंध का उत्सव है, जिसमें गौ माता के प्रति सम्मान, कृतज्ञता और संरक्षण की मांग होती है। गायों की पूजा से समृद्धि, आशीर्वाद और आध्यात्मिक विकास के द्वार खुलते हैं, जो जीवन को धरती और ईश्वरीय शक्तियों के साथ समरसता में जोड़ता है।
गोपाष्टमी की उपासना द्वारा भक्त कृष्ण की दैवीय भूमिका को नमन करते हैं और विनम्रता, निःस्वार्थता एवं भक्ति के संस्कारों को अपनाते हैं। यह पर्व जीवन की पवित्रता, शांति और पर्यावरणीय संवेदना का प्रकाशमान उदाहरण है।
प्रश्न १. गोपाष्टमी २०२५ कब मनाई जाएगी?
उत्तर: गोपाष्टमी कार्तिक शुक्ल अष्टमी पर २७ अक्टूबर २०२५ को मनाई जाएगी।
प्रश्न २. गोपाष्टमी का आध्यात्मिक महत्व क्या है?
उत्तर: यह पर्व मनुष्य और पशु के समन्वय, गौ माता के प्रति श्रद्धा और जीवन के पोषण का प्रतीक है।
प्रश्न ३. गोपाष्टमी से जुड़ी प्रमुख कथाएं कौन-कौन सी हैं?
उत्तर: कृष्ण का प्रथम गौ-पालन और गोवर्धन पर्वत उठाने की कथा मुख्य रूप से जुड़ी हुई हैं।
प्रश्न ४. गोपाष्टमी के दौरान कौन-कौन से अनुष्ठान किए जाते हैं?
उत्तर: गौ माता की श्रृंगार पूजा, सामूहिक दूध एवम् जल अर्पण, मंदिरों में आरती, भजन-कीर्तन और ग्रामीण क्षेत्रों में गौ शोभा यात्राएं।
प्रश्न ५. गोपाष्टमी का समकालीन समाज में क्या महत्व है?
उत्तर: पशु संरक्षण, पर्यावरणीय संतुलन एवं कृषि समुदायों की आर्थिक सुरक्षा के लिए यह पर्व महत्वपूर्ण है।
अनुभव: 15
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इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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