By पं. अमिताभ शर्मा
शास्त्रानुसार महिला तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान - सीता कथा, गरुड़ पुराण प्रमाण, FAQ, विधि
पितृ पक्ष, हिंदू संस्कृति में पूर्वजों की आत्मिक शांति, श्राद्ध और तर्पण के लिए सबसे पवित्र काल माना गया है। 2025 में पितृ पक्ष 7 सितंबर से 21 सितंबर तक चलेगा। हर घर में मुख्य रूप से पुरुष सदस्य इन कर्मों को संपन्न करते हैं, लेकिन समय-समय पर यह प्रश्न बार-बार उठता है - क्या महिलाओं को श्राद्ध और तर्पण का अधिकार है? क्या बेटियां, बहुएं या अकेली नारियां भी परिवार के दिवंगत पुरखों को पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर सकती हैं? आधुनिक युग की खोजी सोच और शास्त्रों की गहराइयों में उतरते हुए, इस प्रश्न का विस्तार से, प्रमाण आधारित जवाब प्रस्तुत है।
श्राद्ध तिथि | दिन | पखवाड़ा (2025) |
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षष्ठी श्राद्ध | 12 सितंबर | कृष्ण पक्ष षष्ठी |
सप्तमी श्राद्ध | 13 सितंबर | कृष्ण पक्ष सप्तमी |
अष्टमी श्राद्ध | 14 सितंबर | कृष्ण पक्ष अष्टमी |
नवमी श्राद्ध | 15 सितंबर | कृष्ण पक्ष नवमी |
दशमी श्राद्ध | 16 सितंबर | कृष्ण पक्ष दशमी |
एकादशी श्राद्ध | 17 सितंबर | कृष्ण पक्ष एकादशी |
द्वादशी श्राद्ध | 18 सितंबर | कृष्ण पक्ष द्वादशी |
त्रयोदशी श्राद्ध | 19 सितंबर | कृष्ण पक्ष त्रयोदशी |
चतुर्दशी श्राद्ध | 20 सितंबर | कृष्ण पक्ष चतुर्दशी |
सर्वपित्र अमावस्या | 21 सितंबर | कृष्ण पक्ष अमावस्या |
इन सभी प्रमुख तिथियों पर पूर्वजों की आत्मा के लिए तर्पण, पिंडदान और भोज जैसे कर्म संपन्न होते हैं।
भगवान श्रीराम के वनवास काल में राम, लक्ष्मण, सीता जी फल्गु नदी के किनारे गया-क्षेत्र पहुंचे। एक ब्राह्मण ने पिंडदान कराने को कहा, पर श्रीराम और लक्ष्मण विलंबित हुए। ऐसी परिस्थिति में ब्राह्मण ने मां सीता को पिंडदान का आग्रह किया। सीता जी ने संकोच के बावजूद बालू के पिंड बनाए, वटवृक्ष, केतकी पुष्प, गऊ और फल्गु नदी को साक्षी मानकर पिंडदान किया-राजा दशरथ की आत्मा संतुष्ट हुई और आशीर्वाद दिया। जब श्रीराम लौटे, उन्होंने प्रमाण मांगा तो सब साक्ष्य सीता जी के पक्ष में खड़े थे-इस कथा से बेटियों/महिलाओं के श्राद्ध कर्म का वैदिक प्रामाणिक समर्थन मिलता है।
ग्रंथ/प्रमाण | समर्थन/निषेध |
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गरुड़ पुराण | अनुमति - पुरुष आभाव में नारी |
पाराशर स्मृति | पुत्री द्वारा श्राद्ध संभाव्य |
याज्ञवल्क्य स्मृति | नारी भी तीर्थ-दान करें |
आधुनिक शास्त्र-समिति | भारत भर के पंडितों-महंतों का समर्थन |
महिला द्वारा श्राद्ध कर्म | सामाजिक/धार्मिक लाभ |
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वंश-परंपरा की रक्षा | परिवार में पितृ दोष की शांति, सुख-शांति |
समानता और आस्था का प्रतीक | जिम्मेदारी-परक संस्कार, संतुलन |
समाज में नैतिक ऊर्जा का विस्तार | परिवार-बिरादरी में सम्मान |
प्रश्न 1: क्या पुरुषों के रहते हुए भी महिलाएं करने का आग्रह कर सकती हैं?
उत्तरा: परंपरा में प्रमुखता पुरुष को दी गई है, परंतु सहमति, समझ और श्रद्धा-आधार पर महिलाएं सहायक हो सकती हैं या जब संचालन में कोई बाधा हो तो आगे आ सकती हैं।
प्रश्न 2: क्या शास्त्र महिलाओं के लिए विशेष मृदुलता या विधि सुझाते हैं?
उत्तरा: शास्त्र श्रद्धा, संयम, सादगी और सात्विकता को सबसे आगे रखते हैं-इसलिए विधि समान है, भावना शुद्ध होनी चाहिए।
प्रश्न 3: क्या जिन परिवारों में न पुरुष, न पुत्र हैं, केवल एक महिला हो, तो भी श्राद्ध/तर्पण हो सकता है?
उत्तरा: हाँ, देवी सीता और गरुड़ पुराण-दोनों ही इसका प्रमाण देते हैं।
प्रश्न 4: क्या सामाजिक पुजारी या पंडित महिला तर्पण/श्राद्ध में अगुवाई कर सकते हैं?
उत्तरा: हाँ, जब परिवार/समाज स्वीकार्य हो, पंडित-पुरोहित मार्गदर्शन, मंत्र, विधि और सामग्री में सहायता करते हैं।
प्रश्न 5: महिला द्वारा श्राद्ध से पूर्वजों की शांति मिलती है?
उत्तरा: श्रद्धा से किया गया हर तर्पण, चाहे स्त्री करे या पुरुष, पूर्वजों की आत्मा तक पहुंचता है और घर में सुख-शांति बढ़ती है।
पितृ पक्ष में पुरुष के अलावा महिला सदस्य भी अपने घर-वंश की, निःस्वार्थ, सात्विक और आस्थापूर्ण श्रद्धा से समस्त विधि, तर्पण और दानकर सकती हैं। पवित्र भावना से घर का हर सदस्य पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर सकता है
अनुभव: 32
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