By पं. अमिताभ शर्मा
सोलहदिवसीय श्राद्ध, प्रत्येक तिथि का महत्व, शुभ पूजा, दान और श्रेष्ठ पारिवारिक परंपरा
पितृ पक्ष भारतीय जीवन का वह सोलहदिवसीय काल है, जब घर-परिवार पूर्वजों की स्मृति में एकजुट होते हैं। हर साल भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर सर्व पितृ अमावस्या (महालया अमावस्या) तक, यह अति पावन पर्व पूरे राष्ट्र में श्रद्धा और पारिवारिक एकता के साथ मनाया जाता है। सनातन धर्म में इसे 'श्राद्ध पक्ष', 'श्राद्ध पितृपक्ष' या 'महालय' भी कहते हैं। युगों से यह काल आत्मीय कृतज्ञता, श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान और विविध दान संस्कारों के लिए सर्वोच्च माना गया है।
इस वर्ष पितृ पक्ष रविवार, 7 सितंबर 2025 को भाद्रपद पूर्णिमा से आरंभ होगा और रविवार, 21 सितंबर 2025 को सर्वपितृ अमावस्या के साथ समाप्त होगा। हर दिन श्राद्ध की अलग तिथि है, जिससे प्रत्येक परिवार अपने पितरों की पावन स्मृति और अनुसंधान कर सके।
तिथि | श्राद्ध | तिथि आरंभ | तिथि समापन |
---|---|---|---|
7 सितंबर | पूर्णिमा श्राद्ध | 01:41 AM | 11:38 PM |
8 सितंबर | प्रतिपदा श्राद्ध | 11:38 PM (7 Sep) | 09:11 PM |
9 सितंबर | द्वितीया श्राद्ध | 09:11 PM (8 Sep) | 06:28 PM |
10 सितंबर | तृतीया श्राद्ध | 06:28 PM (9 Sep) | 03:37 PM |
11 सितंबर | चतुर्थी श्राद्ध | 03:37 PM (10 Sep) | 12:45 PM |
12 सितंबर | पंचमी श्राद्ध | 12:45 PM (11 Sep) | 09:58 AM |
13 सितंबर | षष्ठी श्राद्ध | 09:58 AM (12 Sep) | 07:23 AM |
14 सितंबर | सप्तमी श्राद्ध | 07:23 AM (13 Sep) | 05:04 AM |
15 सितंबर | अष्टमी श्राद्ध | 05:04 AM (14 Sep) | 03:06 AM |
16 सितंबर | नवमी श्राद्ध | 03:06 AM (15 Sep) | 01:31 AM |
17 सितंबर | दशमी श्राद्ध | 01:31 AM (16 Sep) | 12:21 AM |
18 सितंबर | एकादशी श्राद्ध | 12:21 AM (17 Sep) | 11:39 PM |
19 सितंबर | द्वादशी श्राद्ध | 11:39 PM (17 Sep) | 11:24 PM |
20 सितंबर | त्रयोदशी श्राद्ध | 11:24 PM (18 Sep) | 11:36 PM (19 Sep) |
21 सितंबर | चतुर्दशी श्राद्ध | 11:36 PM (19 Sep) | 12:16 AM (21 Sep) |
21 सितंबर | सर्वपितृ अमावस्या | 12:16 AM | 01:23 AM (22 Sep) |
हिंदू धर्म में मान्यता है कि पितृ पक्ष में पूर्वजों की आत्माएँ पृथ्वी पर परिजनों के पास आती हैं। श्रद्धापूर्वक किया गया श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान पूर्वजों को तृप्ति देता है और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है। इस अवधि में सभी सुख-सुविधाओं, नई वस्तुओं की खरीदारी, विवाह आदि कार्यों की मनाही की जाती है, ताकि पितरों के प्रति पूर्ण केंद्रित श्रद्धा रखी जा सके।
शास्त्रों के अनुसार पितर्पक्ष वह शुद्ध काल है, जब मृतात्माओं को मोक्ष मार्ग, शांति और उच्च गति मिलती है। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से:
प्रश्न 1: पितृ पक्ष में शादी, नया घर या वाहन लेना क्यों वर्जित है?
उत्तरा: यह समय आत्मीय स्मृति और त्याग का है, स्वार्थी मांगलिक कार्यों से बचना चाहिए।
प्रश्न 2: श्राद्ध की तिथि कैसे तय करें?
उत्तरा: सामान्यतः मृतक के निधन की तिथि अथवा विशेष अमावस्या-पूर्णिमा देखी जाती है, गोत्राचार्य, पंडित या पंचांग से पूछें।
प्रश्न 3: क्या महिलाएं श्राद्ध, तर्पण या दान कर सकती हैं?
उत्तरा: हाँ, शास्त्रों के अनुसार विशेष परिस्थिति में महिलाएं मातृकुल व पित्रकुल के लिए कर सकती हैं।
प्रश्न 4: पितृ पक्ष के दौरान मुख्य पकवान कौन से होते हैं?
उत्तरा: खीर, पूरी, तिल, चना, मौसमी फल, दूध, शहद और दिवंगत की प्रिय वस्तुएँ।
प्रश्न 5: सर्वपितृ अमावस्या क्या है?
उत्तरा: अंतिम तिथि, जिनका श्राद्ध तिथि ज्ञात न हो, उनके लिए सर्वपितृ तर्पण, समर्पण और दान का दिन।
पितृ पक्ष केवल शोक का नहीं, जीवन-ज्योति, आभार और सांस्कृतिक चेतना का उत्सव है। भारत के प्रत्येक क्षेत्र, जाति और घर में यह पर्व परिवार को सशक्त, रिश्तों को प्रगाढ़ और वंशानुक्रम को जीवंत बनाए रखने का सबसे पवित्र अवसर है।
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