By पं. अमिताभ शर्मा
कौए, पंचबली भोग का रहस्य, भौगोलिक भिन्नता और संतुलन की मुख्य सीख
भारतीय संस्कृति की अनेक श्रेठ परंपराओं में पितृ पक्ष का स्थान केंद्रीय है। यह काल पूर्वजों के प्रति श्रद्धा, प्रेम और आभार प्रकट करने का अनूठा अवसर है। 2025 में पितृ पक्ष की शुरुआत 7 सितंबर भाद्रपद पूर्णिमा से होती है। पहला श्राद्ध 8 सितंबर को होता है और समापन 21 सितंबर को सर्व अमावस्या पर होता है। इन दिनों में अनेक विधियाँ, मंत्र, तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध सूक्ष्म नियमों के साथ सम्पन्न होते हैं।
पितृ पक्ष केवल कर्मकांड नहीं बल्कि भाव, समर्पण और स्मृति का अद्वितीय पर्व है। इन दिनों का प्रत्येक कार्य परिवार के यश, आरोग्य, शांति और पीढ़ियों के सतत् कल्याण से जुड़ा समझा जाता है। भारत के सभी क्षेत्रों में, संस्कारों और स्थानीय रुचियों के आधार पर, विविध पद्धतियों से श्राद्ध और तर्पण सम्पन्न किए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, इस अवधि में पितरों का पृथ्वी पर शक्तिशाली आशीर्वाद मिलता है।
श्राद्ध अनुष्ठानों में विशेष प्रकार का भोजन पकाया जाता है, जिसमें सात्विकता और पवित्रता का विशेष पालन किया जाता है। खीर, पूड़ी, साग-सब्जी, तिल, मौसमी फल और ताजे जल का अर्पण मुख्य होता है। भोजन बनाते समय घर को स्वच्छ, शांत और सकारात्मक रखा जाता है। श्राद्ध के दौरान जो सबसे पहला भाग बनता है, वह कौवे के लिए निकाला जाता है - यह केवल परंपरा नहीं बल्कि पितरों से प्रत्यक्ष संबंध है।
श्राद्ध की क्रिया | उद्देश्य |
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तर्पण | पितरों को जल, तिल, कुश अर्पित करना, उनकी आत्मा की शांति के लिए |
पिंडदान | चावल, तिल और जल से पिंड अर्पण करना, पूर्वजों को ऊर्जा प्रदान करना |
भोजन | पूर्वजों के लिए विशिष्ट भोजन बनाकर उनकी तृप्ति सुनिश्चित करना |
मंत्र जप | आत्मा की शांति और परिवार के कल्याण के लिए मंत्रों का जप करना |
हिन्दू मान्यता में कौना केवल पक्षी नहीं, वह पितृलोक और यमराज का प्रतिनिधि है। गरुड़ पुराण, मनुस्मृति और परमसंहिता जैसी शास्त्रों में कौने का उल्लेख यम के दूत और पितरों के संदेशवाहक के रूप में मिलता है। कौवे को भोजन अर्पित करना दरअसल पितरों को भोजन देने जैसा ही समझा जाता है - माना जाता है कि अगर कौना भोजन ग्रहण करता है तो वह संकेत है कि पितृ संतुष्ट हैं।
ग्रंथ | कौना संबंधी उल्लेख |
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गरुड़ पुराण | पितरों के दूत के रूप में वर्णित |
मनुस्मृति | यम का वाहन और तर्पण स्वीकारक के रूप में उल्लेखित |
रामायण | श्राद्ध में मुख्य पात्र, युक्ति और प्रतीक के रूप में वर्णित |
विष्णु पुराण | पूर्वजों की तृप्ति हेतु काग-बलि का आवश्यक होना बताया गया |
त्रेता युग की पुंरानी कथा में जयंत, इंद्रदेव का पुत्र, कौवे का रूप धारण कर माता सीता को कष्ट देता है। भगवान राम घास के तिनके से बाण बनाते हैं और क्रोधित होकर चलाते हैं। डर के मारे जयंत क्षमा माँगता है। श्रीराम उसे वरदान देते हैं कि अब से पूर्वजों को अर्पित भोजन कौने के माध्यम से पितरों तक पहुंचेगा।
आज के शहरी जीवन, उच्च इमारतों, प्रदूषण और जैवविविधता के संकट के चलते कौवे दुर्लभ हो गए हैं। शास्त्रों में ऐसी स्थिति के लिए समाधान भी बताया गया है। पंचबली भोग - इसका अर्थ है, यदि कौना न मिले तो भोजन को गाय, कुत्ते, चींटी, पक्षी, अथवा देवी-देवता को श्रद्धा से अर्पित किया जा सकता है। भावना सच्चे मन की होनी चाहिए; समान्यतः पंचबली में सभी जीवों की तृप्ति का भाव होता है, जो प्रकृति और समाज के सामूहिक कल्याण की ओर इंगित करता है।
विकल्प | महत्व |
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गाय | पवित्रता, देवीत्व, पृथ्वी से सीधा संबंध |
कुत्ता | निस्वार्थ सेवा, वफादारी, धर्मरक्षा |
चींटी | श्रम और सजगता का प्रतीक |
अन्य पक्षी | पारिस्थितिक संतुलन, सकल जीवमात्र का कल्याण |
देवता | सम्बन्ध केवल जीवजगत का नहीं, ब्रह्मांड का भी |
पक्षियों, विशेषकर कौए की सहभागिता भारत के सामाजिक, धार्मिक और पारिस्थितिक ताने-बाने में गहराई से रची है। कौवा बुद्धिमान, सामाजिक समन्वयक और पर्यावरणीय स्वच्छता का भी कारक माना जाता है। जब भोजन प्रकृति को लौटता है, तो उसमें संस्कार, पुनरावृत्ति और चक्र का गूढ़ संदेश होता है। यही भोजन आगे की कड़ी बन जाता है - वह भोजन चीटियों, कुत्तों, गिलहरियों, अन्य पक्षियों और यहां तक कि मिट्टी, पानी और पर्यावरण को भी पोषित करता है।
दृष्टिकोण | अनुभव |
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सामाजिक | सभी जीवों में समर्पण और सेवा, शृंखला की अखंडता |
वैज्ञानिक | जैव विविधता, खाद्य श्रृंखला, स्वास्थ्य संतुलन, प्राकृतिक पुनरचक्रण का समर्थन |
तिथि | पर्व | प्रमुख विधान |
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7 सितंबर | भाद्रपद पूर्णिमा | पितृ पक्ष प्रारंभ; पितरों को तर्पण, पिंडदान एवं श्राद्ध का विधान, पितृ दोष मोचन |
8 सितंबर | प्रथम श्राद्ध | श्राद्ध का आरम्भ, पितरों की तृप्ति हेतु पहला प्रमुख श्राद्ध |
21 सितंबर | सर्व अमावस्या | पितृ पक्ष समापन, मिश्रित पितृकार्य, विशेष योग तर्पण एवं श्राद्ध कार्य |
प्रश्न 1: श्राद्ध में कौवे को कौन सा भोजन सबसे उपयुक्त है?
उत्तरा: ताजे बने भोजन, जैसे खीर, पूड़ी, दूध, तिल, मौसमी फल और शाक्य - लेकिन हर घर की परंपरा के अनुसार, शुद्धता सबसे महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 2: अगर कौवे के अभाव में पंचबली किया जाए, तो क्या पूरा श्राद्धफल मिलता है?
उत्तरा: हाँ, भावना और श्रद्धा प्रमुख है, शास्त्रों के अनुसार पंचबली भी पितरों को तृप्त करता है।
प्रश्न 3: भोजन किस दिशा में और किस भाग में रखना चाहिए?
उत्तरा: उत्तरा, पूर्व या आंगन - धरती पर, पत्तल या पत्ते पर, स्वच्छ एवं शांत स्थान चुनकर रखना चाहिए।
प्रश्न 4: क्या पितृ पक्ष के अतिरिक्त दिनों में भी कौवे को खिलाना लाभकारी है?
उत्तरा: बिलकुल, यह पुण्यदायक और सकारात्मक वातावरण बनाने का अनुपम साधन है; पारिवारिक सुख-शांति बनी रहती है।
प्रश्न 5: कौवे के भोजन के बाद कौन से अन्य कर्म आवश्यक हैं?
उत्तरा: तर्पण, मंत्रजप, दीपदान, जलदान, तथा परिवार के वृद्धजनों का आशीर्वाद लेना भी आवश्यक माना गया है।
पितृ पक्ष के इन दिनों में जब कौवे को भोजन अर्पित किया जाता है, तो यह केवल अनुष्ठान नहीं बल्कि एक जीवंत संकल्प, इकोलॉजिकल संतुलन और अंतरात्मा की जिम्मेदारी का परिचायक है। श्राद्ध का हर कण, हर मंत्र और हर थाली का अंश, केवल पूर्वज नहीं बल्कि संसार के हर जीव को जोड़ता है।
अनुभव: 32
इनसे पूछें: जीवन, करियर, स्वास्थ्य
इनके क्लाइंट: छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
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