By पं. संजीव शर्मा
संध्या काल में शिव कृपा पाने का यह व्रत जीवन को पाप, भय और दोषों से मुक्त कर मोक्ष की ओर ले जाता है।
प्रदोष शब्द संस्कृत के "प्र" और "दोष" से मिलकर बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है-संध्या का समय या दिन का वह विशेष काल जब दिन और रात का संधिकाल होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को सूर्यास्त के बाद और रात्रि के आगमन से पूर्व का समय "प्रदोष काल" कहलाता है। यह समय आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत शक्तिशाली और ऊर्जावान माना गया है, क्योंकि इस काल में सूर्य और चंद्रमा दोनों की ऊर्जा का संतुलन रहता है। वैदिक ज्योतिष में प्रदोष काल को ग्रहों के दोष, मानसिक अशांति, और जीवन की बाधाओं को दूर करने का श्रेष्ठ समय बताया गया है।
प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा पाने के लिए रखा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष काल में स्वयं महादेव कैलाश पर्वत के रजत भवन में तांडव करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। इस समय की गई शिव उपासना से साधक के पाप, रोग, भय, मानसिक तनाव और ग्रह दोष नष्ट होते हैं। प्रदोष व्रत को कलियुग में अति मंगलकारी, कल्याणकारी और मोक्षदायी माना गया है। यह व्रत साधक के जीवन में सुख, समृद्धि, दीर्घायु और आध्यात्मिक उन्नति का द्वार खोलता है।
प्रदोष व्रत प्रत्येक माह की दोनों त्रयोदशी तिथियों (शुक्ल और कृष्ण पक्ष) को रखा जाता है, जिससे एक वर्ष में 24 या 25 प्रदोष व्रत आते हैं। सप्ताह के अनुसार प्रदोष व्रत के अलग-अलग नाम और फल बताए गए हैं-सोम प्रदोष, शनि प्रदोष, भौम प्रदोष आदि।
प्रदोष व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्म-अनुशासन, संयम, और सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत है। इस व्रत से साधक के चंद्र तत्व में सुधार होता है, जिससे मन की स्थिरता, भावनात्मक संतुलन और मानसिक शांति मिलती है। प्रदोष व्रत करने से क्रोध, भय, तनाव, और नकारात्मकता दूर होती है। यह व्रत गृह दोष, वास्तु दोष, शत्रु बाधा, और पारिवारिक कलह को शांत करता है।
स्कंद पुराण और शिव पुराण में प्रदोष व्रत की कई कथाएँ मिलती हैं। एक कथा के अनुसार, एक निर्धन ब्राह्मणी ने अपने पुत्र के साथ प्रदोष व्रत किया, जिससे उसके जीवन की दरिद्रता, कष्ट और दुख दूर हो गए। भगवान शिव ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे समृद्धि, सम्मान और सुख दिया। यह कथा दर्शाती है कि श्रद्धा, संयम और नियम से किया गया प्रदोष व्रत जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन ला सकता है।
प्रदोष व्रत केवल एक तिथि या अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन के अंधकार में आशा, शक्ति और शिव कृपा का दीपक है। यह व्रत हमें सिखाता है कि कठिनाई चाहे कितनी भी हो, श्रद्धा, संयम और भक्ति से जीवन में सुख-शांति, सफलता और मोक्ष संभव है। प्रदोष व्रत के माध्यम से साधक न केवल अपने पापों का प्रायश्चित करता है, बल्कि आत्मा की गहराई में छिपी दिव्यता को भी जागृत करता है।
प्रदोष व्रत का अर्थ है संध्या के उस पावन काल में भगवान शिव की आराधना, जब प्रकृति और आत्मा दोनों में संतुलन और शांति का संचार होता है। यह व्रत हर साधक के लिए आध्यात्मिक जागरण, पापों के नाश और शिव कृपा का अमूल्य अवसर है-जिसे श्रद्धा और नियम से करने पर जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति निश्चित है।
अनुभव: 15
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इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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