By पं. संजीव शर्मा
नवरात्रि के अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री पूजा का विस्तृत महत्त्व और पूजन-विधि
नवरात्रि के अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की विशेष पूजा की जाती है। यह रूप देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों में अंतिम है और इसे सिद्धियों की प्रदायिनी, ज्ञान, शक्ति, संतुलन तथा पूर्णता का प्रतीक माना जाता है। मां सिद्धिदात्री की पूजा से साधक को अलौकिक शक्तियां, दिव्य ज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
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‘सिद्धि’ का अर्थ है अलौकिक या दिव्य शक्ति और ‘दात्री’ का मतलब है देने वाली। इस तरह मां सिद्धिदात्री वो देवी हैं जिन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और शिव के साथ अन्य देवताओं को भी अनेक सिद्धियां और आध्यात्मिक शक्तियां प्रदान कीं। पुराण कहते हैं कि मां महाशक्ति के दिव्य प्रकाश से इनका प्रकट होना हुआ और उन्होंने सृष्टि की रचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
देवी का नाम | अर्थ और महत्व |
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सिद्धिदात्री | सभी सिद्धियों की प्रदायिनी |
ब्रह्मा, विष्णु, शिव को सिद्धियां दीं | सृष्टि-निर्माण और शक्ति-संतुलन |
मां सिद्धिदात्री को लाल वस्त्रधारी, कमल या सिंह पर विराजमान, चार भुजाओं वाली देवी के रूप में चित्रित किया जाता है। उनके हाथों में गदा, सुधर्शन चक्र, शंख एवं कमल होता है। उनके गले में ताजा फूलों की माला वरदानों का संदेश देती है। लाल वस्त्र, लाल पुष्प और दिव्य आभा, शक्ति एवं संतुलन के प्रतीक हैं।
प्रतीक | अर्थ |
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गदा | शक्ति और संघर्ष पर नियंत्रण |
चक्र | समय और परिवर्तन पर अधिकार |
शंख | पवित्रता, संवाद और ऊर्जा का संचालन |
कमल | शुद्धता और आध्यात्मिक जागृति |
लाल वस्त्र | ऊर्जा और चैतन्य |
ज्योतिष शास्त्र में मां सिद्धिदात्री का संबंध केतु ग्रह से बताया गया है। केतु ग्रह को वैराग्य, आत्मज्ञान, मोक्ष और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है। जब केतु कुंडली में पीड़ित या अशुभ स्थिति में होता है, तो भ्रम, मन का विचलन, हानि, मृत्युभय और आत्मनिर्भरता में कमी देखी जाती है। मां सिद्धिदात्री की पूजा केतु के अशुभ प्रभाव को शांत करती है और जीवन में संतुलन देती है।
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पूजा में गहराई, भक्ति और श्रेय का भाव सबसे जरूरी होता है। नीचे विस्तार से पूजा की प्रत्येक विधि दी गई है
1. पूजन सामग्री तैयार करना
2. पूजन क्षेत्र का शुद्धिकरण
प्रातः स्नान करें, घर और पूजन स्थल साफ करें। मां की प्रतिमा या तस्वीर को पवित्र लाल कपड़े पर स्थापित करें।
3. पूजा का क्रम:
पूजा कार्य | अर्थ |
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अभिषेक | शुद्धता और संकट हरण |
फूल अर्पण | शुभता की प्राप्ति |
पंचामृत | पांच तत्वों का संतुलन |
मंत्र पाठ | मानसिक शांति और सिद्धि प्राप्ति |
मंत्रों का नियमित जप मानसिक मजबूती देता है, आत्मविश्वास बढ़ाता है और आध्यात्मिक मार्ग प्रशस्त करता है।
लाभ | विवरण |
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आध्यात्मिक ज्ञान | आत्मशुद्धि, मन की स्पष्टता |
बाधाओं का निवारण | भ्रम, डर, नकारात्मकता दूर |
इच्छाओं की पूर्ति | भौतिक और मानसिक संतुष्टि |
मोक्ष का मार्ग | आत्मा की ऊँचाई और मोक्ष की प्राप्ति |
मानसिक संतुलन | मन, शरीर और आत्मा में संतुलन |
सुरक्षा | बुरी शक्तियों से रक्षा |
भारत के कई प्रसिद्ध मंदिर, जैसे सागर का सिद्धिदात्री मंदिर, वाराणसी, नंदा पर्वत और वृंदावन में स्थित हैं। नवरात्रि में यहां भव्य पूजा, कन्या पूजन, हवन और विसर्जन यज्ञ किए जाते हैं।
हिंदू धर्म के अलावा जैन, बौद्ध और दक्षिण-पूर्व एशियाई परंपराओं में भी मां सिद्धिदात्री की शक्तियां, सिद्धि और आध्यात्मिकता का उल्लेख मिलता है। वे देवियों का स्त्रीत्व और शक्ति का प्रतीक हैं।
जी हां, उनकी पूजा नकारात्मकता, भ्रम और केतु के प्रभाव को शांत करती है। साधक को आत्मविश्वास, साहस और ऊँचाई मिलती है।
प्रश्न 1: मां सिद्धिदात्री की पूजा किस दिन विशेष रूप से की जाती है?
उत्तर: नवरात्रि के नौवें और अंतिम दिन, मां सिद्धिदात्री की पूजा श्रेष्ठ फल देती है।
प्रश्न 2: केतु दोष के साधारण लक्षण क्या हैं?
उत्तर: मन में भ्रम, निर्णय में कठिनाई, अशुभ विचार, राह में बाधाएं, स्वास्थ्य में अनिश्चितता।
प्रश्न 3: मां सिद्धिदात्री की पूजा के लिए अनिवार्य सामग्री क्या है?
उत्तर: प्रतिमा, कपूर, पंचामृत, विविध पुष्प, फल, मिठाई, कुमकुम, चंदन, अक्षत, लाल वस्त्र, दीपक।
प्रश्न 4: क्या सिद्धिदात्री उपासना से मोक्ष और आत्मज्ञान प्राप्त किया जा सकता है?
उत्तर: हां, देवी की कृपा साधक को आध्यात्मिक ज्ञान, सिद्धि और मोक्ष का मार्ग देती है।
प्रश्न 5: कौन से प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहां मां सिद्धिदात्री की विशेष पूजा होती है?
उत्तर: सागर, वाराणसी, नंदा पर्वत, वृंदावन और महाराष्ट्र के मंदिर सबसे प्रसिद्ध हैं।
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