क्या कृष्ण सचमुच हर लिंग, हर भाव, हर जिजीविषा का आमंत्रण देने वाले देवता हैं?
भारतीय संस्कृति में कृष्ण केवल प्रेमी, योद्धा, मार्गदर्शक या बालक नहीं, बल्कि वह देवता हैं जो लिंग की हर सीमा को सहजता से पार कर जाते हैं। वे पुरुषत्व, स्त्रैणता, छल, गुरुत्व, बालकत्व और लोकजाति के गहनतम भावों का संगम हैं। हिंदू मिथकों की परंपरा में कृष्ण का उभयलिंगी स्वरूप मुख्यधारा में धीमे स्वर में उभरता है, परंतु क्षेत्रीय कला, लोककथा, अनुष्ठान, रीति और सैकड़ों भक्ति-समुदायों के भीतर वह रंग-रंग की साक्षात छाया में फलता-फूलता है।
कला और मूर्तिकला: कृष्ण का उभयलिंगी सौंदर्य कैसे हर जगह नजर आता है?
ओडिशा के चित्रों और मूर्तियों में कृष्ण का नारीगत सौंदर्य
- त्रिभंग मुद्रा: ओडिशा की पटचित्र और मंदिरों की मूर्तियाँ में, कृष्ण की त्रिभंग मुद्रा (तीन स्थान पर झुकाव), जो शास्त्रीय नर्तकी की प्रमुख मुद्रा है, लिंग-तरलता, उचाट भावों और नारी-पुरुष एकता का प्रत्यक्ष रूप है।
- अलंकरण और शृंगार: कृष्ण को नथ, गोली, चोटी, झुमके, कमरबंद जैसे नारी श्रृंगारों से सजाया जाता है; बालों की चोटी यशोदा के आंचल से जुड़ती है, राधा की प्रीति का संकेत बनती है। संयोग और मातृत्व के भाव, दोनों का विलयन है।
- चेहरे का भाव: कृष्ण के छोटे गाल, बादामी आंखें, कोमल अधर और शीतल मुस्कान, अस्पष्ट लिंग संकेतों के साथ सबमें आत्मीयता जगाते हैं।
- रंग और पहनावा: कृष्ण को पीतम्बर के साथ कई बार लाल, गुलाबी और स्त्रैण रंगों की छटा में चित्रित किया जाता है। कला के मिथकों में रंगों की मिश्रित अनुभूति स्वयं लिंग-रेखाओं को पिघलाती है।
दक्षिण भारत, बंगाल, असम के नृत्य में लिंग-भ्रम की छवि
- सत्त्रीय नृत्य (असम): यहाँ पुरुष नर्तक स्त्रैण वेश में कृष्ण की नाट्य भूमिका निभाते हैं; बालों में गजरा, झुमके, चूड़ी, मुखमंडल की सजावट, नृत्य में लिंग का रव, माधुर्य का संगम।
- भरतनाट्यम, कथकली, ओडिसी: कृष्ण का लीलावतार, गोपी रूप, मोहिनी स्विंग अक्सर पुरुष कलाकारों द्वारा नारी वेष में मंचित होता है।
अनुष्ठान और पर्व: मंदिरों में ‘स्त्री-वेष’ से चमत्कृत कृष्ण का दर्शन कैसे होता है?
पुरी, बंगाल, दक्षिण भारत के मंदिरों में स्त्री वेशधारण का रहस्य
- रथयात्रा उपरांत: पुरी के जगन्नाथ मंदिर में, ‘लक्ष्मी-नारायण भेटा’ पर कृष्ण को गोपी (नारी) रूप में सजाया जाता है; साड़ी, नथ, बनारसी चूड़ियाँ, घूंघट।
- वृंदावन और दक्षिण भारतीय मंदिर: विशेष तिथियों पर कृष्ण की मूर्ति को गहनों, साड़ियों, नारी वेश में सजाकर मान्यता दी जाती है।
- दर्शनीयता: हजारों भक्त ‘स्त्री रूप’ के दर्शन करने, भजन-कीर्तन में शामिल होने आते हैं। यह शुभ दर्शन, समावेशिता और भक्ति का प्रत्याशित रूप है।
अनुष्ठान का भाव, ईश्वर का खुद को लिंग परिवर्तित कर भक्तों के निकट लाना
- मोहिनी अवतार की स्मृति: कृष्ण, विष्णु के मोहिनी रूप में सभी रूपों को अपनाते हैं, अमृत का वितरण, दानवों को मोहना, देवी स्वरूप की प्रतिष्ठा।
- दैवीय समावेशिता: कृष्ण और जगन्नाथ को जब नारी वेश में कठोर रीति से पूजा जाता है, वे हर भक्त के अनुभव, हर भाव को अपनाने का उदाहरण देते हैं।
कोवगाम उत्सव: लिंग, समाज, किन्नर समुदाय और कृष्ण की चौकसी क्या है?
महाभारत का अरावन प्रसंग और कृष्ण-मोहिनी का विवाह
- कथा: अरावन, अर्जुन का पुत्र, कुरुक्षेत्र विजय हेतु बलिदान से पूर्व विवाह चाहता है। किसी भी नारी को क्षणिक विधवात्व स्वीकार्य नहीं।
- कृष्ण-मोहिनी रूप: कृष्ण, मंगलकाल में मोहिनी बनकर अरावन से विवाह करते हैं। अगले दिन विधवात्व का विलाप-ध्वनि, कृष्ण-मोहिनी के आंसुओं से समाज का आत्म-संवेदन।
- कूवगाम फैस्टिवल: तमिलनाडु में, ट्रांसजेंडर (अरावनी) समुदाय हर साल इसी विवाह रीति को निभाते हैं, सामूहिक शादी, विधवा विलाप, भजन, श्रृंगार, कृष्ण का परोपकारी, समावेशी रूप किन्नर समुदाय के लिए आदर्श।
फोल्कलोर, कथा और रंगमंच में लिंग-परिवर्तन कैसे सशक्त होता है?
कृष्ण-अर्जुन की स्त्री-लीला और गांव-गांव में छाया-पुतली
- कथाओं में: कृष्ण और अर्जुन वृद्धा-बाला के वेश में, ठगों को पराजित करते हैं, ग्रामीणों की रक्षा, नैतिक शिक्षा देते हैं।
- लोकनाट्य, छाया-पुतली, प्रहसन: मिथक, हंसी, समाज, शिक्षा, सबमें लिंग परिवर्तन कृष्ण की लीला का प्रमुख रूप रहता है।
असम, बंगाल के सत्रों में कृष्ण के नारी रूप का उत्सव
- नाट्य शक्ति: पुरुष नर्तक कृष्ण का गोपी, मोहिनी या राधा रूप निभाते हैं। त्यौहारों, उत्सवों में लिंग-विविधता का स्वागत।
रासलीला में लिंग-सीमा और उसका आध्यात्मिक संदेश क्या?
शिव का गोपी रूप स्वीकार और गोपेश्वर महादेव की पूजा
- कथा: कृष्ण के रासलीला में केवल गोपियाँ शामिल होती हैं। शिव अपनी जिज्ञासा से गोपी रूप धारण कर ‘गोपेश्वर महादेव’ कहलाते हैं।
- शिव की स्त्री-वेश पूजा: वृंदावन में उनके स्त्री वेश में पूजन का विशेष पर्व है।
अर्जुन, नारद और अन्य देवताओं की लिंग-परिवर्तन
- पद्म पुराण व अन्य ग्रंथ: कृष्ण के सखा, अर्जुन और नारद, रासलीला में भाग लेने हेतु गोपी वेश धारण करते हैं; यह दर्शाता है कि कृष्ण का दिव्य प्रेम, लिंग की सीमा से परे है।
राधा-कृष्ण का आध्यात्मिक विलय, पुरुष-प्रकृति, अद्वैत और लिंग संयोग का मर्म क्या है?
- संयोग-भाव: राधा-कृष्ण भारतीय आध्यात्मिकता में पुरुषत्व-स्त्रीत्व के अद्वितीय विलय का आदर्श, ज्ञान (पुरुष) और माया (स्त्री) का एकत्व।
- चैतन्य और अन्य भक्ति कवि: चैतन्य ने स्वयं को राधा मानकर, कृष्ण को प्रेम-लक्ष्य मानकर जीवन जिया।
- मीरा का अनुभव: मीरा स्वयं को कृष्ण की वधू, देह, लिंग की सीमा के पार मानती थीं।
किन्नर, ट्रांसजेंडर, क्वीर भक्तों के लिए कृष्ण की क्या विशेष महत्ता रही है?
- कूवगाम तो शुरूआत है: गांव, मंदिर, भजन-समूहों में ‘मारा-मन्नन’ (दोनों का देवता) के रूप में कृष्ण को पुकारा जाता है।
- मनोरंजन, फिल्म, मंच: आधुनिक कला, फिल्म, नाटकों में कृष्ण लिंग-तरलता के प्रतीक, समाज को समावेश, उदारता, आध्यात्मिक अभिव्यक्ति का पाठ।
- शास्त्रीय मंच व लोकप्रिय संस्कृति: समकालीन LGBTQIA+ समुदाय को कृष्ण के उभयलिंगी भाव, स्वीकार व आत्मीयता में साहस, सम्मान व पावनता मिलती है।
दर्शन, भक्ति और जीवन में कृष्ण के लिंगविलय रूप का क्या महत्व है?
- वैदिक-दर्शन: कृष्ण का स्वरूप, केवल ईश्वर की सत्ता नहीं, बल्कि सामूहिक प्रेम, समावेशिता, लिंग, जाति, वर्ग, वंचना के पार।
- भक्ति-समूह व लोकधारा: पुरी, वृंदावन, कूवगाम, असम, बंगाल, हर जगह कृष्ण के विविध रूपों में भजन, नृत्य, अनुष्ठान, पर्व, गीत में लिंग-सीमा तोड़ने की प्रेरणा।
निष्कर्ष: कृष्ण का- ‘हर लिंग के पार, हर्षित, स्वीकार्य दिव्यता’
कृष्ण का उभयलिंगी रहस्य केवल कला, कथा, या पूजा तक नहीं, बल्कि समाज के संग जयमय संवाद है।
वे पुरुष, स्त्री, किन्नर, भक्त, झाँकी, नृत्य, गान, अनुभव, हर स्वरूप में सीमाओं को मिटाते हैं।
कृष्ण का मुस्कराता रूप, उनका हर नृत्य, हर वेश, हर संवाद हमें यह सिखाता है, असली दिव्यता वही है, जहाँ सच्ची आत्मीयता, दया, आत्म-स्वीकार और प्रेम किसी लिंग, वर्ग, शरीर की सीमा में नहीं बंधती।
हर भक्त को, हर पुजारी को, हर प्रेमी को, कृष्ण अपने भीतर आमंत्रित करते हैं, जैसे भी, जिस रूप में वे चाहें।
प्रश्नोत्तर
प्रश्न १: कृष्ण का उभयलिंगी रूप भारतीय चित्रकला में कितनी प्रमुखता से दिखता है?
उत्तर: त्रिभंग मुद्रा, नारी-अलंकरण, चेहरे पर कोमलता, रंगों में लिंग-विलय, ओडिशा, बंगाल, दक्षिण में यह प्रमुख है।
प्रश्न २: कृष्ण या जगन्नाथ को स्त्री वेश में सजाने का धार्मिक एवं सामाजिक संदेश क्या है?
उत्तर: यह समावेशिता, लिंग के पार ईश्वरत्व, मोहिनी अवतार की याद, कूवगाम जैसे त्योहारों में विशिष्ट है; हर समुदाय को आत्म-स्वीकृति मिलती है।
प्रश्न ३: कोवगाम उत्सव का कृष्ण भक्ति व किन्नर समाज में क्या महत्व है?
उत्तर: कृष्ण-मोहिनी व अरावन विवाह; ट्रांसजेंडर समुदाय को आध्यात्मिक सम्मान, सामाजिक स्वीकृति, आनंद और सांत्वना देता है।
प्रश्न ४: रासलीला और गोपेश्वर महादेव की कथा आध्यात्मिक उदारता का क्या संवाद देती है?
उत्तर: सच्ची भक्ति, प्रेम, दिव्यता, लिंग, रूप, जाति की सीमा नहीं मांगती; स्वयं शिव भी गोपिका बनकर उसमें शामिल होते हैं।
प्रश्न ५: समकालीन समाज में कृष्ण के लिंग-तरलता के स्वरूप से क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर: हर व्यक्ति को गरिमा, आत्मीयता, आध्यात्मिक स्वीकार और प्रेम, जो समाज की सीमाओं के विरुद्ध सर्वसमावेशी दिव्यता का प्रकाश है।