By पं. नीलेश शर्मा
महाभारत से गीत गोविन्द तक कृष्ण लीला की सांस्कृतिक व आध्यात्मिक गहराइयों का अन्वेषण
समय और संस्कृति की अनंत धारा में कृष्ण की कथा केवल एक देवी-देवता की गाथा नहीं, बल्कि भारतवर्ष की आत्मा को झंकृत करने वाली सदैव बहती नदी है। संस्कृत साहित्य की बालुई प्रवाह में कृष्ण के विविध रूप, बालक, मित्र, गुरु, प्रियतम, राजा और अवतार, हर युग, क्षेत्र, समाज और चेतना की जरूरत के अनुसार विकसित होते गए। उनकी लीला केवल मंदिरों या शास्त्रों की बंद दीवारों तक सीमित नहीं, बल्कि लोकजीवन के हर रंग, भाव, दुःख, आनंद और आशा में गहरे समाहित है। इस सशक्त, जीवंत परंपरा में महाभारत से गीत गोविन्द तक, कृष्ण भारतीय साहित्य, दर्शन, कला और सामाजिक-विचार का स्थायी स्रोत बने रहे हैं। काव्य, पुराण, शास्त्र, नाट्य, लोकगीत, चित्रकला और भजन में उनका भाव छाया है।
महाभारत में कृष्ण एक अद्वितीय कूटनीतिज्ञ, युद्ध के रणनीतिकार, धर्म-प्रवर्तक, हमेशा संकटग्रस्त प्रिय मित्र के रूप में सामने आते हैं। वे पांडवों के अडिग विश्वास पात्र हैं, उनकी विजय, संकट और हर विवाद में मार्गदर्शक, समर्पित सहयोगी। द्रौपदी की असहायता में उनकी मौन सहायता, अर्जुन के आत्मसंशय में गूढ़ मार्गदर्शन, युधिष्ठिर के धर्म-संकट में सचेत चेतनावान उपदेश, महाभारत का कृष्ण मानव संवेदना और दार्शनिकता का सर्वोच्च मिश्रण है।
कृष्ण का संपूर्ण जीवन कूटनीति, विचारशील संतुलन और धर्म के पक्ष में कठोर निर्णय लेने की प्रेरणा देता है। कौरव दरबार में उनका शांति प्रस्ताव, बिना किसी अहंकार के, संपूर्ण समाज को जीतने की कोशिश; हर बार युद्ध की विभीषिका से बचने की कोशिश; यह उनकी परिपक्वता, धैर्य और करुणा को दर्शाता है।
कृष्ण की धर्मस्थापन भूमिका व्यावहारिकता से कहीं ऊपर उठकर भगवद्गीता की अमर शिक्षा में परिवर्तित हो जाती है। अर्जुन जब धर्म-युद्ध के प्रथम चरण पर संशय, मोह और आत्मव्यथा में डूबते हैं, कृष्ण उन्हें अपने सतही मित्र स्वरूप से ऊपर उठाकर सर्वव्यापक गुरु के रूप में शिक्षा देते हैं।
गीता के १८ अध्यायों में जीवन का प्रत्येक पक्ष, कर्म, धर्म, ज्ञान, भक्ति, योग, वैराग्य, आत्मा, परमात्मा, प्रकृति, मृत्यु, पुनर्जन्म, समत्व, श्रद्धा, संपूर्ण निरूपण है। गीता का ध्यान, विश्वभर में जीवनदर्शन, आत्म-संतुलन और मनोविज्ञान का स्रोत बन गया है।
अपने जीवन में कृष्ण कई बार व्यवहारिकता का सर्वोच्च आदर्श चुनते हैं, जैसे भीष्म पितामह का पतन, कर्ण के निधन का निर्णय, अश्वत्थामा का अन्त, सभी पारंपरिक मर्यादा से ऊपर उठकर धर्म की रक्षा का उदाहरण हैं। वे पांडवों को अप्रिय निर्णय लेने के लिए प्रेरित करते हैं, कभी-कभी धर्म-संकट में नियम लांघकर समाज की समग्र भलाई के लिए मार्ग प्रशस्त करते हैं।
महाभारत में कृष्ण की बाल-लीला, राधा-प्रीति, गोकुल या वृन्दावन की स्निग्धता की बहुत कम चर्चा मिलती है। उनका स्वरूप मुख्यतः युद्ध, विचार, नीति और अध्यात्म के संदर्भ में सशक्त रूप में ही निखरता है।
हरिवंश महाभारत का ही संपूर्ण विस्तार है, जिसमें कृष्ण के जन्म, बाल्यकाल और गोकुल-ग्राम्य जीवन का वर्णन अत्यंत कोमलता, भक्तिरस और रहस्यपूर्णता के साथ मिलता है।
कंस के भय से वसुदेव और देवकी ने यमुना पार कर शिशु कृष्ण को नंद-यशोदा के संरक्षण में रख दिया। इसकी छवि मानव जीवन में त्याग, मातृत्व और श्रम की अभिव्यक्ति है। कृष्ण का बचपन गोकुल के ग्रामीण वातावरण में प्रकृति, गायें, बांसुरी और बाल लीला में रचा-बसा है।
गोकुल के हर घर में कृष्ण की शरारतें, संग-साथियां, माखन चुराने की लीलाएँ, बांसुरी की तान, गायों के साथ प्रीति, यह लोकजीवन में आनंद, प्रेम और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का बोध कराती हैं। उनका बाल सखा रूप समाज में मिलन, सहयोग और निर्भरता का प्रतीक है।
हरिवंश में कृष्ण के बाल्यकाल के अनेक राक्षस, पूतना, बकासुर, अघासुर, कालिया नाग, उनका अंत और समाज की रक्षा का संदेश है। इनके माध्यम से भक्ति, निर्भयता और संघ की दिव्यता उजागर होती है।
गोवर्धन लीला, जहाँ कृष्ण ने इंद्र के अभिमान को तोड़कर ब्रजवासियों को वर्षा से बचाया, ने पर्यावरण, प्रकृति पूजा और विश्वसनीयता के संदेश को ग्रामीण भारत में स्थायी बना दिया।
हरिवंश में ग्रामीण लोक-संस्कृति, गीत, नृत्य, पूजा और सामूहिकता के भव्य चित्र मिलते हैं। गाँव के हर व्यक्ति के लिए कृष्ण अपने हैं, माता, सखा, गुरु, रक्षक। भक्त परम्परा में गोपाल लीला, होली, झूला, रास जैसी प्रवृत्तियाँ हैं।
विष्णु पुराण में कृष्ण की लीला साक्षात विष्णु के अवतार के माध्यम से चित्त को जागृत करती है। उनका जन्म, प्रत्येक लीला और समाजिक कृत्य ब्रह्मांड की रक्षा, अधर्म के विनाश और धर्म स्थापन के उद्देश्य से जुड़े हैं। प्रत्येक राक्षस वध, चमत्कार, ग्रहण, राजनैतिक निर्णय, सर्वत्र विष्णु का नवीन अवतरण है।
बाल्यकाल के बाद कृष्ण बलराम के साथ कंस का वध करते हैं, माता-पिता की कारागृह से मुक्ति और यादव वंश की पुनर्स्थापना सामाजिक न्याय, स्वतंत्रता और शांति का संदेश देती है।
द्वारका में राज्य की स्थापना, कुटुंब में समता, प्रेम और न्याय के पक्षधरता, विष्णु पुराण का कृष्ण नीति और सामाजिक सुरक्षा की प्रतिमूर्ति है।
कृष्ण अपने कुटुंब, मित्रों, शत्रुओं, समाज के आम जन और सत्ता के प्रतिनिधियों से दिव्य संवाद करते हैं, राज्य, न्याय, नीति और प्रेम के विभिन्न आदर्श स्थापित करते हैं। सर्वत्र उनका व्यवहार समाज में परिवर्तन की ओर अग्रसर रहा।
श्रीमद्भागवत में कृष्ण के बाल्य-काल की लीलाओं का विस्तार भाव, रस और भक्ति-तत्व के साथ मिलता है।
गोकुल, वृन्दावन, ग्वाल-बाल, बांसुरी, नृत्य, रासलीला, हर शब्द, हर कथा कोमलता और प्रेम के रस में भींगे हैं। कृष्ण के प्रति प्रत्येक गोपी, बालक, माता-पिता, संगीतकार और पशु का भाव, भक्ति और हर्ष का केन्द्र है।
रासलीला में कृष्ण गोपियों के संग नृत्य करते हैं, हर गोपी को अद्भुत प्रेम और निकटता की अनुभूति कराते हैं। राधा का चरित्र पूर्ण समर्पण, प्रेम और भक्ति का सर्वोच्च आदर्श बन जाता है।
विरह, मिलन, आत्मलीनता, संगीत, अनुराग, संवाद, रासलीला अध्यात्म का परम शिखर है।
कृष्ण की मटकी फोड़ने, गोपियों को छेड़ने, मित्रों से खेल, पशुओं के साथ संवाद, ये सभी लीलाएँ प्रेम, क्षमा, दया और आनंद का सजीव उदाहरण हैं।
कृष्ण अपने शत्रुओं को भी बार-बार क्षमा कर, उन्हें दिव्यता और दया का अनुभव कराते हैं। उत्सव, भजन, कीर्तन, रास, मेला, होली आदि लोक परंपराओं में कृष्ण का उल्लास सर्वव्याप्त है।
श्रीमद्भागवत ने भक्ति को तात्त्विक दृष्टि से सर्वोच्च स्थान प्रदान किया, कृष्ण भजन, कीर्तन, संगीत, नृत्य, आत्मानुभूति से प्रसन्न होते हैं। यह आध्यात्मिक क्रांति पूरे भारतभर के समाज, भक्त, कलाकार और साधकों में सम्मानित हुई।
जयदेव कृत गीत गोविन्द में कृष्ण-राधा का प्रेम राग, विरह, मिलन, पुनर्मिलन, आत्मलीनता, ईर्ष्या, हर भाव को अद्भुत कविता, नृत्य और संगीत में रूपायित किया गया है।
राधा का प्रेम, विरह, दुःख और समर्पण कृष्ण के प्रति आध्यात्मिक उत्कंठा का प्रतीक है। नृत्य, झूला, फूलों की माला, बांसुरी, चन्द्र-स्नान, हर चित्र व्यास का संगीतात्मक जीवन दर्शन है।
गीत गोविन्द में प्रेम और शृंगार का अद्वितीय संयोग है। राधा के आभूषण, कृष्ण की लालिमा, ओढ़नी, बांसुरी, वन, सभी भक्ति, सौंदर्य और सामंजस्य का साक्ष्य हैं। यह प्रेम केवल देहस्पर्श का नहीं, आत्मा के पूर्ण अर्पण का प्रतीक है।
गीत गोविन्द से राधा भक्ति साहित्य की महारानी बन गईं, उनका चरित्र, समर्पण, प्रेम और आत्मलीनता पूरे भारत की मंदिर, कला, संगीत, लोकगीत और साधना का प्रेरणा स्रोत है।
आज भी मंदिरों, शैलियों, शास्त्रीय नृत्य, रंगमंच, मेले, उत्सव और लोक-कलाओं में गीत गोविन्द का साहित्यिक, सांस्कृतिक प्रभाव व्यापक और स्थायी है। राधा-कृष्ण की लीला सदैव कला, संगीत और आत्मा की ऊँचाइयों तक पहुँचाती है।
कृष्ण की कथा सूरदास, मीराबाई, चैतन्य महाप्रभु, तुलसीदास, रसखान और अनगिनत संतों की वाणी में अर्पित होती है।
जनमाष्टमी, रासलीला, होली, मंदिरों के उत्सव, सामूहिक नाट्य, काव्य प्रतियोगिताएँ, हर रंग में कृष्ण की लीला का उद्घाटन है। गाँव, शहर, मंदिर, घर, आंगन, हर जगह कृष्ण की कथा और भक्ति जीवंत है।
कृष्ण की कथा किन्नर, निर्धन, स्त्री, बालक, हर वर्ग को प्रेम, सम्मान, संगीत, सेवा और सौंदर्य में समान अधिकार देती है।
वन, प्रकृति, पशु, पक्षी, संगीत, कला, सब कृष्ण की लीला में स्थान पाते हैं। भोज, आराधना, सेवा-भाव, सहयोग, सामाजिक समरसता के संग्रह में कृष्ण की चेतना सर्वाधिक है।
कृष्ण की कथा से भारत की संगीत, चित्रकला, मंदिर स्थापत्य, शास्त्रीय नृत्य, कविता और लोककला को नवीन दिशा, स्वरूप और आत्मा प्राप्त हुई है।
विभिन्न उत्सव, रास, भजन, कीर्तन, रंगमंच, साहित्यिक सभाएँ कृष्ण के प्रभाव का सर्वोच्च उदाहरण हैं।
कृष्ण की कथा केवल इतिहास, शास्त्र, या पुराण नहीं, बल्कि जीवन की जीवंत लीला है जिसमें प्रत्येक युग, संस्कृति और भक्त अपनी जिज्ञासा, श्रद्धा, प्रेम और चेतना से नवीनता जोड़ता है।
महाभारत के नायक, हरिवंश के बाल-लीला, विष्णु पुराण के अवतार, श्रीमद्भागवत के भक्तवत्सल, गीत गोविन्द के प्रेमास्पद, हर रूप में कृष्ण साधना, सेवा और आनंद का आमंत्रण हैं।
उनकी कथा जीवन, समाज और संस्कृति के हर स्तर पर प्रेम, सेवा, भक्ति, ज्ञान, समता, आनंद व दिव्यता का सिंहावलोकन है।
जब तक संसार में संगीत, कविता, साधना, प्रेम और उत्सव जीवित हैं, कृष्ण की कथा अनन्त, सदैव नवीन, अंतहीन लीला के रूप में बहती रहेगी।
प्रश्न १: महाभारत में कृष्ण का क्या विशेष महत्व है?
उत्तर: महाभारत में कृष्ण मित्रता, नीति, धर्म, युद्ध-विजय और गीता का अमर संदेश देने वाले मार्गदर्शक के रूप में प्रमुख स्थान रखते हैं। उनका राजनीतिक कौशल, कटुताओं के समाधान में करुणा और गीता में समग्र जीवनदर्शन सर्वोत्कृष्ट है।
प्रश्न २: हरिवंश में कृष्ण की बाल-लीलाएँ समाज के लिए क्या संदेश देती हैं?
उत्तर: हरिवंश में कृष्ण के बाल्यकाल की लीलाएँ, माखन चोरी, बाल-सखा के प्रेम, राक्षसों का संहार, गोवर्धन पर्वत की रक्षा, ग्रामीण जीवन, प्रकृति-पूजा और सहजता में समन्वय का सन्देश देती हैं।
प्रश्न ३: श्रीमद्भागवत पुराण में कृष्ण का रूप कैसे चित्रित किया गया है?
उत्तर: श्रीमद्भागवत में कृष्ण सर्व-आकर्षणीय भगवान, गोपियों के प्रिय, बालकों के सखा, भक्ति के केन्द्र और आत्मा के प्रेम स्वरूप में चित्रित हैं। उनकी लीला भक्ति आंदोलन और सामाजिक समता का प्रेरक है।
प्रश्न ४: गीत गोविन्द में राधा व कृष्ण के संबंध की आध्यात्मिकता किस स्तर तक जाती है?
उत्तर: गीत गोविन्द में राधा-कृष्ण का प्रेम, विरह, मिलन, आत्मलीनता और दिव्यता भक्ति साधना, आत्म-संयोग और शरीर-राग की गहनतम छाया में रूपायित है। यह भारतीय आध्यात्मिक चेतना का सर्वोच्च उदाहरण है।
प्रश्न ५: कृष्ण की कथा भारत की संस्कृति, समाज एवं कला को किस प्रकार विस्तार देती है?
उत्तर: कृष्ण की कथा भारत के समाज में भक्ति आंदोलन, नारी सम्मान, समाजवाद, प्रकृति-प्रेम, संगीत, चित्रकला, सेवा-भाव और दिव्यता का स्थायी विस्तार देती है। गाँव, शहर, कला, संगीत, मंदिर तक, हर जगह कृष्ण का भाव समाहित है।
अनुभव: 25
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