By पं. अमिताभ शर्मा
ज्योतिष शास्त्र, रामायण कथा व जीवन दृष्टिकोण
भगवान राम को वनवास का आदेश तब मिला जब अयोध्या के राजमहल में हर तरफ उत्सव मनाया जा रहा था। अत्यंत शुभ समय में, जब राज्याभिषेक समारोह तय हो गया, तभी अचानक माता कैकेयी ने अपने दो वर मांगते हुए महाराज दशरथ से राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास और भरत के लिए राज्यपद मांग लिया। रामायण एवं अन्य ग्रंथों के अनुसार, यह घटना ग्रहों के गोचर और जातक के कर्मफल का नतीजा थी।
घटना | तिथि/समय | महत्व |
---|---|---|
राज्याभिषेक | चैत्र शुक्ल पक्ष, नवमी तिथि | मंगल भाव, उत्सव |
वनवास आदेश | चैत्र शुक्ल पक्ष, नवमी तिथि | ग्रह दोष, अशुभ योग |
वनवास आरंभ | चैत्र शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि | धर्मस्थापन का प्रारंभ |
राम की जन्मकुण्डली के चतुर्थ भाव में उच्च का शनि, जो परिवार और खासकर माता के स्नेह को कम करता है। शनि का यह स्थान मानसिक दुख, संघर्ष और जीवन में बाधाओं को लेकर आता है। शास्त्रों के अनुसार, यही कारण था कि माता कैकेयी, जो भगवान राम से अत्यंत स्नेह करती थीं, अचानक अपने व्यवहार में परिवर्तन लेकर आईं। राम को घर और माता से दूर जाना पड़ा।
शनि का प्रभाव यह भी दर्शाता है कि जीवन में उच्च आदर्श स्थापित करने हेतु कई बार व्यक्ति को व्यक्तिगत सुख-स्वार्थ छोड़कर कष्ट भोगना पड़ता है। रामायण में स्पष्ट उल्लेख है कि शनि की वजह से परिवार में मतभेद, क्लेश और संघर्ष पनपता है।
मंगल की उपस्थिति सप्तम भाव में राम के विवाह, भाईयों के साथ संबंध और सत्ता के संघर्षों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मंगल सुग्रीव-अंगद जैसे भाईवत मित्रों की गाथाओं में भी देखी जा सकती है, जहाँ संघर्ष हमेशा धर्म और सत्य के पक्ष में रहा।
सेना का शानदार नेतृत्व और कठिन परिस्थितियों में धैर्य का प्रदर्शन भी मंगल के प्रभाव का प्रतिफल था। मंगल के कारण राज्याभिषेक में बाधा आई। यही भाव बताता है कि भरत को राज्य मिला, जबकि राम ने वनवास को स्वीकार किया।
राहु तृतीय भाव में होने से परिवार के सदस्यों विशेषकर माता कैकेयी की मति में परिवर्तन का योग बना। राहु की वजह से उत्पन्न भ्रम, मानसिक अस्थिरता तथा विरोधी परिस्थिति ने दशरथ का चित्त असंतुलित किया। राम के जीवन में राहु ने अनेक परीक्षण लाए। इसी कारण, राम को कठोर परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ा।
कर्क लग्न में चंद्र और गुरु का मिलन गजकेसरी योग बनाता है, जो व्यक्ति को उच्च धर्मबोध, संयम और आंतरिक शक्ति देता है। राम ने वनवास का मार्ग धर्मस्थापन और आदर्श पूर्णता के लिए चुना, जिससे उनका संघर्ष धर्म और मानवता के इतिहास में अमर हो गया। गजकेसरी योग राम के जीवन में कठिनाइयों को धर्म की यात्रा बना देता है। इस योग से ब्रह्मांडीय योजनाओं का ज्ञान, परमार्थ के प्रति समर्पण और अधर्म विरुद्ध संघर्ष की प्रेरणा मिलती है।
दशम भाव में सूर्य, राजयोग का जनक है। राम को जन्म से ही राजा बनने का योग मिला था, किंतु व्यवहार में ग्रह-दशा, ग्रह दोष और नियति की वजह से राज्याभिषेक में बाधाएँ उत्पन्न हुईं। राज्याभिषेक के अवसर पर गुरु वशिष्ठ ने कोई विशेष मुहूर्त न निकालना भी इस योग का दुष्प्रभाव था। सूर्य की वजह से राम का चरित्र महारण्य, नेतृत्व, नीति और धर्मप्रवर्तक बना, किंतु सत्ता का सुख उन्हें नहीं मिला।
कुण्डली के तीन quadrant में तीन अशुभ ग्रह - शनि, मंगल, राहु - के होने से सर्पयोग बनता है। यह योग जीवन में पीड़ा, अपमान तथा संघर्ष को जन्म देता है। राम के जीवन की प्रमुख घटनाएँ जैसे सीता का हरण, भाईयों के साथ मतभेद, महान युद्ध, वनवास - सब इस अशुभ योग से संबंधित हैं।
योग | तीन quadrant में ग्रहों की स्थिति | प्रभाव |
---|---|---|
सर्पयोग | शनि, मंगल, राहु | अपमान, पीड़ा, संघर्ष |
गजकेसरी योग | चंद्र, गुरु | धर्मपथ संघर्ष, आदर्श चरित्र |
राजयोग | सूर्य | नेतृत्व, नीति, सत्ता में बाधाएँ |
राम का जीवन पूर्व कर्मों का प्रतिफल और नियति की गहन योजना था। विष्णु के अवतार के रूप में, राम को मानव रूप में अधर्मियों का नाश और धर्म की स्थापना करनी थी। शास्त्रों और उपनिषदों के अनुसार, पूर्व जन्म के कर्म, ग्रहों की दशा और योग जातक के जीवन को दिशा देते हैं। राजा दशरथ द्वारा शुभ मुहूर्त निकालने में गलती भी नियति द्वारा तय थी, जिससे राम को वनवास मिला।
रामायण के अनेक दृश्यों में, राम हर संघर्ष में शांति और धैर्य बनाए रखते हैं। वनवास के दौरान उन्होंने समाज के हर वर्ग को सम्मान दिया, आदर्श नेतृत्व का परिचय दिया और सत्य व धर्म की स्थापना के लिए कठोर तपस्या की। लक्ष्मण, सीता, हनुमान और राम की संवाद शैली, विनयशीलता और नीति आज भी जीवन पथ का मार्गदर्शन करती है।
रामचरितमानस में वर्णित ‘धर्मपालन’ में यह कहा गया है -
"धर्मो रक्षति रक्षितः"
अर्थात, जो धर्म की रक्षा करता है, उसका धर्म ही रक्षा करता है।
कारण | ज्योतिष तत्व/ग्रह | प्रभाव/परिणाम | शास्त्रीय संदर्भ |
---|---|---|---|
मातृभाव में शनि | शनि (चतुर्थ भाव) | घर/माँ से दूरी, संघर्ष, वनवास | वाल्मीकि रामायण |
मंगल सप्तम भाव | मंगल | भाई-विरोध, राज्यपद में बाधा | आर्यज्योतिष, मनुस्मृति |
राहु तृतीय भाव | राहु | मानसिक भ्रम, विरोधी परिस्थिति | संत तुलसीदास |
गजकेसरी योग | चंद्र, गुरु | धर्मपथ संघर्ष, आदर्श चरित्र | महाभारत एवं वेद |
पूर्वकर्म, नियति | योग, ग्रह दशा | धर्मस्थापन हेतु वनवास | उपनिषद, ब्रह्मसूत्र |
अशुभ योग/सर्पयोग | शनि, मंगल, राहु | अपमान, पीड़ा, कठिनाइयाँ | आचार्य वराहमिहिर |
राजयोग, सूर्य | सूर्य, दशम भाव | सत्ता में बाधा, नेतृत्व, नीति | रामचरितमानस, सूर्यसिद्धांत |
अक्सर पूछा जाता है, क्या राम का वनवास सिर्फ राजनीति या परिवार में उलझने की वजह से हुआ? ज्योतिष शास्त्र, ग्रंथों व प्रमाणित स्रोतों के अनुसार - राजनीतिक परिस्थितियाँ, परिवार की भूमिका, तथा ग्रहों के योग और पूर्वजन्म के कर्म - यह सब संयुक्त रूप से कारण बने। शनि, मंगल, राहु, गजकेसरी एवं अशुभ योग निर्णायक भूमिका में रहे।
रामायण केवल एक स्मृति या कथा नहीं बल्कि नीति, धर्म, जीवन के संघर्षों में विजय, सहिष्णुता और सत्य के प्रति अटल रहने की शिक्षा देती है। राम के वनवास में ज्योतिष, कर्मफल, योग और जीवन दर्शन की पूरी झलक मिलती है। नीति, धर्म और संघर्ष के माध्यम से राम का चरित्र आज भी समाज को दिशा देने वाला है।
राम की कुंडली में चतुर्थ भाव में उच्च का शनि, सप्तम भाव में मंगल तथा तृतीय भाव में राहु की स्थिति, गजकेसरी योग, राजयोग एवं सर्पयोग थे जिनसे संघर्ष, परिवार से दूरी और धर्म के लिए जीवन समर्पण की स्थिति बनी।
शास्त्रों व रामचरितमानस के अनुसार, गुरु वशिष्ठ ने कोई विशेष मुहूर्त नहीं निकाला बल्कि राजा दशरथ की इच्छा को स्वीकार किया था।
नहीं, राजनीति, ग्रह योग, पूर्वजन्म, परिवार, नियति - इन सब के सामंजस्य ने राम के वनवास को जन्म दिया।
गजकेसरी योग ने संघर्षों को धर्मस्थापन की दिशा दी और राम को आदर्श चरित्र के रूप में स्थापित किया।
वनवास की घटना पूर्व कर्म, योग, ग्रह दशा और नियति के समन्वय का फल थी, जिसमें हर घटना धर्म स्थापना से जुड़ी थी।
राम का वनवास केवल दुःख, संघर्ष या वैचारिक परीक्षाओं का परिणाम नहीं था। यह धर्म, आदर्श, संघर्ष और उच्च जीवन मूल्यों का प्रतीक है। ज्योतिषशास्त्र, कर्मफल, योग और नियति का सम्मिलन राम के चरित्र को जीवन-दर्शन और प्रेरणा का अमिट स्रोत बनाता है।
अनुभव: 32
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