By पं. अमिताभ शर्मा
बुधवार को भगवान गणेश की आराधना इस दिव्य स्तोत्र से करें और अपने जीवन की आर्थिक परेशानियों से पाएं स्थायी मुक्ति।
बुधवार का दिन गणपति बप्पा को समर्पित है। इस दिन गणेश भगवान की पूजा करना बेहद खास माना जाता है। इसी दिन आपको ऋण-मुक्ति के लिए गणेश भगवान की आराधना भी करनी चाहिए।
हिंदू धर्म में भगवान गणेश को एक विशेष स्थान प्राप्त है। जिस कारण किसी भी शुभ या मांगलिक कार्य को करने से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। बुधवार का दिन भगवान गणेश को बेहद प्रिय है। इस दिन भगवान गणेश की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। वैदिक शास्त्रों में निहित है कि भगवान गणेश की पूजा करने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही आर्थिक विषमता दूर होती है। ज्योतिष भी करियर और कारोबार को नया आयाम देने के लिए बुधवार के दिन भगवान गणेश की पूजा करने की सलाह देते हैं। आज जानेंगे गणेश भगवान के सिद्ध स्तोत्रों के बारे में, जिनके नाम हैं “ऋणहर्ता श्री गणेश स्तोत्र” एवं “ऋणमुक्ति श्री गणेश स्तोत्र”। वैदिक अध्यात्म एवं वैदिक ज्योतिष, दोनों में ही इन स्तोत्रों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भगवान गणेश की पूजा करने से कुंडली में बुध ग्रह मजबूत होता है। बुध के मजबूत होने से जातक कारोबार में बेहतर करता है। अगर आप भी आर्थिक तंगी से निजात पाना चाहते हैं, तो बुधवार के दिन भक्ति भाव से भगवान गणेश की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इस स्तोत्र का पाठ करें।
अगर आप भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं और कर्ज़ से मुक्ति पाना चाहते हैं, तो ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र का नियमित पाठ अवश्य करें। यह स्तोत्र इतना प्रभावशाली है कि इसके जाप से पुराने से पुराना और भारी से भारी ऋण भी सरलता से उतर जाता है। जो भक्त सच्चे मन से इसका नित्य पाठ करता है, उसके जीवन से आर्थिक बाधाएँ दूर होने लगती हैं और धन प्राप्ति के नए-नए रास्ते खुलते हैं। यह स्तोत्र न केवल वर्तमान की वित्तीय समस्याओं को हल करता है, बल्कि भविष्य में आने वाले आर्थिक संकटों से भी सुरक्षा प्रदान करता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है।
बुधवार को प्रात: स्नान के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें, उसके बाद गणेश जी को जल से अभिषेक करें। फिर उनको लाल पुष्प, चंदन, कुमकुम, फल, फूल माला, वस्त्र, दूर्वा, मोदक आदि चढ़ाएं। गणेश पूजन के बाद ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र का पाठ करें. सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करें, फिर स्तोत्र पढ़ें।
ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्। ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम् ॥
अर्थ: जो सिन्दूर (लाल) रंग के हैं, जिनके दो भुजाएं (हाथ) हैं, जिनका नाम गणेश है, जिनका पेट बड़ा है (लम्बोदर), जो कमल के आसन पर विराजमान हैं, जिनकी ब्रह्मा आदि देवता सेवा करते हैं, जो सिद्धियों से युक्त हैं - उन ऐसे देवता को मैं प्रणाम करता हूँ। यह श्लोक भगवान गणेश की दिव्यता, शक्तियों और पूजनीयता का वर्णन करता है और उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करता है।
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजितः फलसिद्धये| सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
अर्थ: सृष्टि की शुरुआत में ब्रह्माजी ने फल की सिद्धि (सफलता) के लिए विधिपूर्वक इनकी पूजा की थी। वे सदैव पार्वती पुत्र (भगवान गणेश) मेरे समस्त ऋणों (कर्जों) का नाश करें।
त्रिपुरस्य वधात्पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चितः। सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
अर्थ: त्रिपुरासुर के वध से पहले भगवान शंकर ने विधिपूर्वक जिनकी पूजा की - वे पार्वतीपुत्र गणेश सदा मेरा ऋण नाश करें।
हिरण्यकश्यपादीनां वधार्थे विष्णुनार्चितः। सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
अर्थ: हिरण्यकश्यप आदि दैत्य के वध के लिए भगवान विष्णु ने जिनकी पूजा की - वे सदा पार्वतीपुत्र गणेश मेरे ऋणों का नाश करें।
महिषस्य वधे देव्या गणनाथः प्रपूजितः। सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
अर्थ: महिषासुर के वध के लिए देवी दुर्गा ने जिन गणनाथ की पूजा की - वे सदैव पार्वतीपुत्र मेरे ऋणों को दूर करें।
तारकस्य वधात्पूर्वं कुमारेण प्रपूजितः। सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
अर्थ: तारकासुर के वध से पहले भगवान कार्तिकेय (कुमार) ने जिनकी पूजा की - वे पार्वतीपुत्र गणेश सदा मेरा ऋण समाप्त करें।
भास्करेण गणेशस्तु पूजितश्छविसिद्धये। सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
अर्थ: सूर्यदेव ने तेज प्राप्ति के लिए जिन गणेश जी की पूजा की - वे सदा पार्वतीपुत्र मेरे ऋण का नाश करें।
शशिना कान्तिसिद्ध्यर्थं पूजितो गणनायकः। सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
अर्थ: चंद्रदेव ने कांति प्राप्त करने के लिए जिन गणेश जी की पूजा की - वे सदा पार्वतीपुत्र मेरे ऋणों को समाप्त करें।
पालनाय च तपसा विश्वामित्रेण पूजितः। सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
अर्थ: विश्वामित्र ने सृष्टि के पालन हेतु तप से जिन गणेश जी की पूजा की - वे सदा पार्वतीपुत्र मेरे ऋणों को नष्ट करें।
इदं त्वृणहरं स्तोत्रं तीव्रदारिद्र्यनाशनम्। एकवारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं समाहितः॥
अर्थ: यह ऋण को हरने वाला स्तोत्र घोर दरिद्रता का नाश करने वाला है। जो कोई इसे एक वर्ष तक प्रतिदिन एक बार एकाग्र होकर पढ़े।
दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेरसमतां व्रजेत्। फडन्तोऽयं महामन्त्रः सार्धपञ्चदशाक्षरः॥
अर्थ: वह भयंकर दरिद्रता को छोड़कर कुबेर (धन के देवता) के समान वैभव को प्राप्त करता है। यह फलदायी महामंत्र पंद्रह अक्षरों वाला है।
अस्यैवायुतसंख्याभिः पुरश्चरणमीरितम। सहस्रावर्तनात् सद्यो वाञ्छितं लभते फलम्॥
अर्थ: इसका दस हज़ार बार जप करना पुरश्चरण माना गया है। हज़ार बार जपने पर भी साधक तुरंत मनचाहा फल पा सकता है।
भूत-प्रेत-पिशाचानां नाशनं स्मृतिमात्रतः॥
अर्थ: केवल स्मरण मात्र से ही यह श्लोक भूत, प्रेत और पिशाचों का नाश कर देता है।
अनुभव: 32
इनसे पूछें: जीवन, करियर, स्वास्थ्य
इनके क्लाइंट: छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
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