By पं. संजीव शर्मा
तृतीय भाव में केतु के शुभ-अशुभ प्रभाव, राशि अनुसार फल, योग और उपाय
वैदिक ज्योतिष में केतु को “मुक्ति का कारक” और “अध्यात्म का पथप्रदर्शक” माना गया है। यह एक छायाग्रह है, जो भौतिक महत्वाकांक्षाओं को कम कर आत्मिक अनुभवों की ओर ले जाता है। जब केतु जन्मकुंडली के तृतीय भाव में स्थित होता है, तब यह व्यक्ति के साहस, संचार, भाई-बहनों से संबंध, लघु यात्राओं और आत्मविश्वास पर गहरा प्रभाव डालता है।
तृतीय भाव को “पराक्रम भाव” कहा जाता है। यहां केतु का होना एक ओर निर्भीकता देता है, तो दूसरी ओर व्यक्ति को जीवन के अनुभवों के प्रति एक विशिष्ट दृष्टिकोण प्रदान करता है। ऐसे जातक अक्सर सांसारिक दृष्टि से असामान्य सोच रखने वाले, आत्मनिर्भर और आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर होते हैं।
राशि | प्रभाव |
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मेष | नेतृत्व में उन्नति, लेकिन भाई से टकराव संभव। |
वृषभ | नीच केतु, आत्मविश्वास में कमी और संचार में रुकावटें। |
मिथुन | संवाद कौशल श्रेष्ठ, लेखन और मीडिया में सफलता। |
कर्क | पारिवारिक जिम्मेदारियों में वृद्धि, धार्मिक रुझान। |
सिंह | मंचीय प्रतिभा, लेकिन अहंकार से हानि। |
कन्या | विश्लेषणात्मक दृष्टि, शोध और अन्वेषण में सफलता। |
तुला | संतुलित विचारधारा, कलात्मक क्षेत्र में लाभ। |
वृश्चिक | उच्च केतु, रहस्यमयी ज्ञान और साहस। |
धनु | यात्राओं से लाभ, लेकिन निर्णय में अस्थिरता। |
मकर | कठोर परिश्रम से सफलता, पर मानसिक दबाव। |
कुंभ | सामाजिक कार्यों में प्रतिष्ठा, मित्र मंडली में लोकप्रियता। |
मीन | आध्यात्मिक साधना में प्रगति, भौतिक मोह कम। |
तृतीय भाव का केतु जातक को अपरंपरागत करियर की ओर ले जा सकता है। राजनीति, पत्रकारिता, शोध, खुफिया विभाग, सेना, या किसी ऐसे क्षेत्र में सफलता संभव है जहां साहस और रणनीति की आवश्यकता हो।
हालांकि, करियर में अस्थिरता भी हो सकती है यदि ग्रह अन्यथा अशुभ स्थिति में हों।
तृतीय भाव का केतु व्यक्ति को साधारण जीवन से हटकर अनुभव देता है। यह उसे निडर, आध्यात्मिक और अद्वितीय बनाता है, लेकिन कभी-कभी उसे सामाजिक संबंधों में दूरी और मानसिक संघर्ष भी देता है। उचित उपाय और संतुलित दृष्टिकोण से इस स्थिति का सर्वोत्तम लाभ उठाया जा सकता है।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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