By पं. संजीव शर्मा
ज्योतिषीय दृष्टि से मंगल का प्रभाव, महत्व, उपाय एवं जीवन में उसकी भूमिका
दृष्टिकोण बदलने की शक्ति से भरपूर मंगल ग्रह न सिर्फ वैदिक ज्योतिष में वरन् मानव जीवन, संस्कृति और व्यवहार में भी गहरी छाप छोड़ता है। जब ग्रहों के इस सेनापति का प्रभाव जागृत होता है, तो वह भीतर छुपी ऊर्जा, साहस, नेतृत्वशक्ति, क्रियाशीलता और जुझारूपन का संदेश देता है। प्राचीन ग्रंथों, शास्त्रीय मान्यताओं और दैनिक जीवन के अनुभवों में मंगल की भूमिका स्पष्ट रूप से उभरकर आती है। मंगल की विशिष्टता का अर्थ केवल लाल रंग या क्रूरता नहीं, बल्कि हर उस प्रेरणा से है जो मनुष्य को आत्मबल, आत्मविश्वास और राष्ट्र तथा समाज के लिए कुछ कर दिखाने की प्रेरणा देती है।
मंत्र / उपाय | विवरण |
---|---|
मंगल का वैदिक मंत्र | ॐ अग्निमूर्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अयम्। अपां रेतां सि जिन्वति।। |
मंगल का तांत्रिक मंत्र | ॐ अं अंङ्गारकाय नम: |
बीज मंत्र | ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः |
उपासना | मंगलवार व्रत, हनुमान चालीसा पाठ, मंगल यंत्र स्थापना |
रत्न | मूंगा |
रुद्राक्ष | तीन मुखी रुद्राक्ष |
जड़ | अनंत मूल |
रंग | लाल |
मंगल से जुड़े शुभ कार्य: मंगलवार को व्रत रखना, हनुमान चालीसा का पाठ करना, लाल रंग अपनाना, मूंगा धारण करना, तांबा तथा मंगल यंत्र जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और प्रतिकूल प्रभावों से रक्षा देता है।
वैदिक ज्योतिष में मंगल की गणना पंचमहाभूतों के ऊर्जा स्रोत के रूप में होती है। यह शक्ति, भूमि, साहस, शौर्य, युद्ध, भाई-बहन, पराक्रम और पुरुषार्थ का मुख्य अधिष्ठाता है। मेष एवं वृश्चिक का स्वामी मंगल मकर में उच्चस्थान पर तथा कर्क में नीचस्थ रहता है। मृगशिरा, चित्रा एवं धनिष्ठा जैसे नक्षत्रों का स्वामी मंगल है। गरुण पुराण के अनुसार नेत्र का संबंध मंगल से है। मजबूत मंगल जीवन में निडरता, स्पर्धा की भावना, तेज, स्वाभिमान और विजय देता है। जिनकी जन्मकुंडली में मंगल सबल अवस्था में होता है, उनका मनोबल आसमान छूता है।
वहीं, निर्बल या पीड़ित मंगल जातक को बार-बार चुनौतियों, हानि और बाधाओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे जातकों के ऊपर लगातार संघर्ष, भय, विवाद, अधूरी इच्छाएं एवं दायित्व रहते हैं। मंगल जीवन में ऊर्जावान बनने का संदेश देता है, परन्तु उसकी स्थिति कुंडली में सही न हो, तो जीवन में असंतुलन, अहं, क्रोध, अशांति और कलह भी बढ़ जाती है।
विवाह में बाधाएं और मनमुटाव का स्रोत बनता है ‘मांगलिक दोष’। जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में मंगल प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में उपस्थित होता है, तो वह दोष कुंडली में गहराई से स्थापित हो जाता है। इसका सीधा असर विवाह में देरी तथा वैवाहिक जीवन में असंतोष, टकराव, विवाद आदि के रूप में देखने को मिलता है। मांगलिक दोष के शमन के लिए मंगल यंत्र स्थापना, विशेष मंत्रों का जाप और मंगलवार का व्रत प्रमुख उपाय माने गए हैं।
लग्न भाव में मंगल व्यक्तित्व में तेज, साहस, सुंदरता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। ऐसे जातक निडर, स्वतंत्र, प्रेरक, नेतृत्वशील, जुझारू और समाज में अलग पहचान वाले होते हैं। इन्हें दबावना या डराना मुश्किल होता है। कठोरता, क्रोध, आवेश और जिद में भी इनका स्वभाव झलकता है। सेना, पुलिस, इंजीनियरिंग, स्पोर्ट्स जैसे क्षेत्रों में उनकी विशेष रुचि रहती है। यही मंगल लग्न भाव में होने से मांगलिक दोष भी बना सकता है।
जब मंगल प्रबल होता है, तो जातक संकल्पशक्ति से भरपूर, उत्पादक, निर्णायक, और जटिल परिस्थितियों में भी सफलता पाने वाला बनता है। भाई-बहनों की उन्नति में भी इसका योगदान दिखता है। परंतु, पीड़ित, निर्बल या शत्रु राशि में स्थित मंगल दुर्घटना, दुर्घटनाओं के भय, रक्त विकार, स्वास्थ्य समस्याएं, भूमि विवाद, शत्रुता, हास और कर्ज के रूप में चुनौतियां देता है।
यदि जन्मकुंडली में मंगल कमजोर, पीड़ित या अशुभ ग्रहों के प्रभाव में आ गया, तो रक्त विकार, रक्तचाप, त्वचा रोग, अल्सर, फोड़े, पित्त विकार, ज्वर, कैंसर जैसी कठिन बीमारियों की संभावना अधिक रहती है।
क्षेत्र / वस्तु | मंगल का संबंध |
---|---|
कार्यक्षेत्र | सेना, पुलिस, प्रॉपर्टी डीलिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, स्पोर्ट्स |
उत्पाद | मसूर दाल, रेल इक्यूपमेंट, भूमि, अचल संपत्ति, तांबा, विद्युत उत्पाद |
स्थान | आर्मी कैंप, पुलिस स्टेशन, फायर स्टेशन, युद्ध क्षेत्र |
पशु/पक्षी | मेमना, बंदर, भेड़, शेर, भेड़िया, सूअर, कुत्ता, चमगादड़, लाल रंग के पक्षी |
मंगल से जुड़ी हर वस्तु - मूंगा, तीन मुखी रुद्राक्ष, अनंत मूल, मंगल यंत्र, कच्चा तांबा, मसूर दाल, लाल वस्त्र - ऊर्जा का लगातार प्रवाह बनाए रखने की क्षमता रखती है।
मंगल की सतह पर आयरन ऑक्साइड की अधिकता इसे ‘लाल ग्रह’ का नाम देती है। धरातल पृथ्वी जैसा है, लेकिन वायुदाब काफी कम है, जिससे तरल जल दुर्लभ है। वैज्ञानिक आज भी इस धरातल पर जीवन या उसके संकेतों की खोज में जुटे हैं, किंतु मंगल आधुनिक अनुसंधान और कल्पना दोनों का प्रिय बना हुआ है।
हिंदू धर्म में मंगल ग्रह को युद्ध देवता और भूमि पुत्र स्वीकार किया गया है। शास्त्रों में मंगल देव का स्वरूप चार भुजाओं वाला बताया गया है - हाथों में त्रिशूल, गदा, कमल और शूल, और उनकी सवारी भेड़ है। मंगल और हनुमान जी का गहरा संबंध भी जीवन में साहस, रक्षा और कल्याण का संदेश देता है। मंगलवार को व्रत, हनुमान चालीसा का पाठ तथा मंगल यंत्र की स्थापना सुख, स्वास्थ्य तथा भय-निवारण में सहायक माने गए हैं।
कई बार मंगल को क्रूर ग्रह भी कहा जाता है, परंतु उसका नाम ही मंगल (शुभता) है। सभी ग्रहों की तरह इसके दोनों पहलू हैं - सकारात्मक और नकारात्मक। विवेकपूर्ण उपायों और ज्ञानपूर्ण आस्था से मंगल की ऊर्जा जीवन के हर क्षेत्र को दिशा, समाधान और मजबूती दे सकती है।
मंगल ग्रह से जुड़े शास्त्रीय, सांस्कृतिक, व्यवहारिक व वैज्ञानिक ज्ञान जीवन को दिशा देने वाला है। चाहे स्वास्थ्य हो, संबंध, निर्णय, करियर या मनोबल, मंगल का संतुलन और शुभता जीवन भर प्रेरणा, साहस, आत्मबल और संतुलन देने की क्षमता रखती है। मंगल से जुड़ी हर परंपरा आज भी जीवन को ऊर्जा और मजबूती देने के लिए पूरी तरह प्रासंगिक है।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
इस लेख को परिवार और मित्रों के साथ साझा करें