By पं. सुव्रत शर्मा
जानिए छठे भाव में सूर्य की स्थिति से स्वास्थ्य, सेवा भावना, चुनौतियों पर विजय और जीवन में दृढ़ता का महत्व
सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है - जीवन का स्रोत, चेतना का प्रतिनिधि, और आंतरिक शक्ति का प्रतीक। वैदिक ज्योतिष में छठा भाव स्वास्थ्य, दैनिक दिनचर्या, सेवा, शत्रु और चुनौतियों से निपटने की क्षमता का प्रतीक है। जब सूर्य ग्रह इस भाव में स्थित होता है, तो यह जातक के जीवन में ऊर्जा, आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता का संचार करता है। सूर्य, जिसे "ग्रहों का राजा" कहा जाता है, छठे भाव में व्यक्ति को "कर्म के माध्यम से आत्मविकास" का पाठ पढ़ाता है। यह स्थिति जातक को संघर्षों का सामना करने की शक्ति देती है, लेकिन साथ ही स्वास्थ्य और रिश्तों में चुनौतियों की परीक्षा भी लेती है।
जब सूर्य जन्म कुंडली के छठे भाव में स्थित होता है, तो यह जातक के जीवन में संघर्षों, रोगों, ऋणों और शत्रुओं से जुड़े अनुभवों को गहराई से प्रभावित करता है। छठा भाव स्वयं जीवन की उन चुनौतियों से जुड़ा है जो आत्मविकास का साधन बनती हैं - यह वह घर है जहां आत्मा परीक्षा देती है और दृढ़ता से उभरती है।
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छठा भाव ‘षड्रिपुओं’ (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य) को परास्त करने की मानसिक और शारीरिक क्षमता से जुड़ा होता है। यह भाव दर्शाता है कि जातक अपने जीवन के संघर्षों से कैसे जूझता है, बीमारियों को कैसे मात देता है, और अपने विरोधियों से कैसे निपटता है। ऐसे में जब सूर्य इस भाव में आता है, तो जातक के भीतर एक योद्धा की तरह साहस, संगठनात्मक क्षमता और आत्म-संयम विकसित होता है।
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छठे भाव में सूर्य का होना एक कर्मिक शिक्षा है। यह आपको सिखाता है कि सच्ची सफलता का आधार सेवा और संयम है। चाहे स्वास्थ्य हो या शत्रु-सूर्य की रोशनी आपके भीतर की शक्ति को उजागर करती है। याद रखें, "संघर्ष ही सच्चे विजय की नींव है।" अपने कर्म को ईमानदारी से करें, पर दया और विनम्रता कभी न भूलें।
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छठे भाव में सूर्य जातक को अनुशासित, सेवाभावी और संघर्षशील बनाता है। यह स्थिति स्वास्थ्य और कार्यक्षेत्र में सफलता देती है, लेकिन संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। सही उपाय और सकारात्मक सोच से आप सूर्य को अपना मार्गदर्शक बना सकते हैं।
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