By अपर्णा पाटनी
जानिए ऋषभदेव का इतिहास, जन्म, निर्वाण और सांस्कृतिक महत्व
भारत की पुण्य भूमि पर ऐसे बहुत कम महापुरुष हुए हैं, जिनका प्रभाव और सम्मान एक से अधिक धर्मों में समान रूप से दिखाई देता है। ऋषभदेव का व्यक्तित्व इसी विलक्षण श्रेणी में आता है, जिन्हें जैन और हिंदू - दोनों ही परंपराएँ श्रद्धा के साथ स्मरण करती हैं। प्राचीन समय की गहन जड़ों तक फैला हुआ ऋषभदेव का संदेश आज भी हमारे सांस्कृतिक और आत्मिक विमर्श का स्वरूप निर्धारित करता है।
जैन परंपरा में समय को केवल सीधी रेखा की तरह नहीं, बल्कि अनंत और चक्रीय माना गया है। ऐसे ही एक नए कालचक्र के प्रारंभ में ऋषभदेव का जन्म हुआ, जो पहले तीर्थंकर के रूप में विख्यात हुए - यानी, वह जो मोक्ष तक पहुंचने के मार्ग को प्रकाशित करते हैं। उनका जन्म अयोध्या नगरी में चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को राजा नाभि और रानी मरुदेवी के यहां हुआ, जिनका उल्लेख हिंदू ग्रंथों में भी आता है।
ऋषभदेव ने कैलाश पर्वत पर माघ कृष्ण चतुर्दशी को निर्वाण प्राप्त किया - उनका जीवन तप, ज्ञान और मानवता की upliftment के लिए समर्पित रहा और यही आदिपुराण (आचार्य जिनसेन द्वारा रचित) में विस्तार से वर्णित है, जो जैन दर्शन का आधार बनाता है।
भारतीय आध्यात्मिक इतिहास की विशेषता यही है कि यहां ऋषभदेव जैसे मार्गदर्शक को हिंदू धर्मशास्त्रों में भी विशिष्ट दर्जा मिला है। भागवत पुराण में ऋषभदेव को भगवान विष्णु के 24 अवतारों में एक माना गया है - वे उन सत्पुरुषों को धर्म और वैराग्य का ज्ञान देने के लिए अवतरित होते हैं, जो मोक्ष की साधना में संलग्न रहते हैं।
दोनों परंपराएँ ऋषभदेव के वंश को इक्ष्वाकु वंश से जोड़ती हैं - यही वह दिव्य राजवंश है जिसमें प्रभु राम का भी जन्म हुआ। ऋषभदेव धार्मिक मार्गदर्शक होने के साथ-साथ कोशल के सम्राट भी थे, जिन्होंने सभ्यता निर्माण के आदर्श स्तंभ स्थापित किए।
ऋषभदेव का संदेश किसी संप्रदाय की दीवारों से कहीं आगे जाता है। वह जैसा ऋग्वेद में भी स्मरण किए गए हैं, वैसे ही जैन और हिंदू दोनों ग्रंथों में उनकी वाणी और आचार प्रकट होते हैं - यह प्रभाव वेद मंत्रों, जैन आगमों, विष्णु के उपदेशों, और अहिंसा व त्याग की शिक्षा - सभी में स्पष्ट रूप से दिखता है।
ऋषभदेव का जीवन - संकल्प, आत्मकल्याण और सामाजिक सौहार्द का आदर्श उदाहरण है। उनका जीवन संदेश बताता है कि आस्था के पथ भले ही अलग हों, मगर सच्चा मार्गदर्शन और उच्च जीवन आदर्श पूरे समाज को जोड़ सकते हैं। वेद, जैनागम, पुराण या लोक स्मृति - हर जगह एक ही सूत्र नजर आता है: आत्म-विकास, अहिंसा, और धर्म का मार्ग ही मानवता का सर्वोच्च कल्याण है।
प्रश्न | उत्तर |
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ऋषभदेव को जैन और हिंदू दोनों क्यों मानते हैं? | दोनों परंपराओं में उनका अवतरण और शिक्षा, एक ही वंश और काल में प्रतीत होता है; उनके चरित्र में भी अनेक समानताएँ हैं। |
ऋषभदेव का उल्लेख कौन से ग्रंथों में मिलता है? | ऋषभदेव का वर्णन जैन आदिपुराण, हिंदू भागवत पुराण और ऋग्वेद सहित अनेक ग्रंथों में मिलता है। |
ऋषभदेव का निर्वाण कब और कहां हुआ था? | कैलाश पर्वत पर, माघ कृष्ण चतुर्दशी के दिन। |
ऋषभदेव की शिक्षा का वर्तमान जीवन में क्या महत्व है? | उनकी शिक्षाएं ध्यान, त्याग, अहिंसा और सामाजिक समरसता के लिए आज भी मार्गदर्शक हैं। |
ऋषभदेव एक सूत्र हैं, जो अनेक आध्यात्मिक प्रवाहों और सांस्कृतिक संवादों को जोड़ते हैं। उनका जीवन और शिक्षाएं आज भी समाज, संस्कार और अध्यात्म के विकास का प्रेरणास्त्रोत बनी हुई हैं।
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