By पं. अमिताभ शर्मा
विस्तृत पुनरावृत्त कथा, अनंतसूत्र का प्रभाव, पूजा विधि, क्षेत्रीय विवेचन एवं आध्यात्मिक संदेश
अनंत चतुर्दशी, गणेश उत्सव का अंतिम दिवस होते हुए, भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा और ध्यान का महापर्व भी है। यह पावन दिन भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह पर्व 5 अक्टूबर, रविवार को मनाया जाएगा। यह अवसर भक्तों के लिए आध्यात्मिक उन्नयन और मन के सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने का महत्वपूर्ण माध्यम है।
अनंत चतुर्दशी की तिथि शुरुआत सुबह 6:03 बजे होती है और अगले दिन सुबह 3:16 बजे समाप्त होती है। इससे ज्ञात होता है कि व्रत की अवधि लगभग 21 घंटे की होती है, जो आध्यात्मिक अभ्यास के लिए अत्यंत शुभ है।
विष्णु देव की अनंत रूपावली बहुत प्राचीन है। वे अनंत नाग, अनंतशेष के ऊपर विशाल रूप में विश्राम करते हैं। यह नाग सृष्टि के सभी अंगों का आधार है, जिस पर भगवान की उपस्थिति सम्पूर्ण सृष्टि को नियंत्रित करती है। अनंतशेष का अर्थ ही है - जिसका अंत नहीं है।
विष्णु का यह स्वरूप हमें यह शिक्षा देता है कि जीवन परिवर्तनशील है, पर परमात्मा सर्वदा स्थिर और अनंत रहता है। यह अध्वा निद्रा का स्वरूप है, जो प्रलय के दौरान पूरी सृष्टि की रक्षा करता है।
अनंत रूप सामूहिक चेतना, विस्तार और गम्भीरता का प्रतीक है। इसे ध्यान में लाने से मनुष्य का ध्यान ब्रह्मांडीय अस्तित्व की ओर आकर्षित होता है, जिससे आत्मा में शांति और संयम आता है।
श्रीमद्भागवत पुराण इसी दिन के महत्व को विस्तार से दर्शाता है। युधिष्ठिर जब वनवास के बाद अपने राज्य के पुन:पारगमन की आशा कर रहे थे तब उन्होंने मुनीन्द्र नारद से इस विशेष व्रत की महत्ता सुनी। नारद मुनि ने बताया कि इस व्रत को सही श्रद्धा और भक्ति से करने से मनुष्य को अध्यात्म की गहन अनुभूति होती है और सफलता की प्राप्ति होती है।
एक अन्य कथा में, रानी सुषिला नामक स्त्री, जिन्होंने भगवान विष्णु की प्रेरणा से 14 गाँठों वाला धागा बांधा, अपने पति की सफलता और परिवार की समृद्धि के लिए प्रार्थना की। जब यह धागा गलती से खुल गया, तो आए संकटों से बचाव के लिए पुनः बाॅधने और सच्चे भक्ति का संदेश इस व्रत से जुड़ा।
अनंतसूत्र एक पवित्र धागा है, जिसमें चौदह गांठें होती हैं। हर गाँठ ब्रह्माण्ड के एक तत्व, ऋतुओं, वेदों और जीवन के विभिन्न संकल्पों को दर्शाती है। इसे बांधना जीवन के स्थिर आधार का संकेत है।
गायत्री मंत्र में भी 14 पद होते हैं, जो इस संख्यात्मक सांकेतिकता को और भी मजबूत करते हैं। भक्तों का मानना है कि इस धागे का बाँधना जीवन में बंधनों को तोड़ने और अनंत ईश्वर के साथ अटूट संपर्क स्थापित करने का प्रतीक है।
शास्त्रों में प्रदत्त हवामाहात्म्य की पुष्टि आधुनिक शोध द्वारा भी होती है। हवन में निर्मित धुएं में औषधीय वायुगतिकीय घटक होते हैं जो वातावरण को शुद्ध करते हैं।
दीपों की लौ से निकलने वाली प्रकाशीय ऊर्जा आस-पास के वातावरण को सकारात्मक आवेशित करती है, जो तनाव और नकारात्मक ऊर्जा को कम करता है।
व्रत का संयम कफ, वात और पित्त तीनों दोषों में सुधार करता है, जिससे स्वास्थ्य और मानसिक स्थिरता में सहायता मिलती है।
अनंत चतुर्दशी हमें जीवन के निरंतर परिवर्तन और ईश्वर के अनन्त तेज को स्वीकारने का संदेश देती है।
यह दिन मन को विश्वास, धैर्य और प्रेम की ओर अग्रसर करता है।
खुद की सीमाओं को पहचानने और आत्मसमर्पण के माध्य्म से पूर्णता की अनुभूति का अनुभव कराता है।
जीवन एक श्रृंखला है जिसमें हर अंत एक नई शुरुआत का सूचक है।
विषय | विवरण |
---|---|
धार्मिक महत्व | अनंत रूप का पूजन एवं आत्मसंयम |
आयुर्वेदिक लाभ | वात, पित्त, कफ का संतुलन |
सामाजिक प्रभाव | सामूहिक पूजा एवं मेल-जोल |
वैज्ञानिक सार | हवन के औषधीय तत्व एवं दीप के आयनीकरण |
1. अनंतसूत्र क्यों बांधा जाता है?
यह अनंत भगवान विष्णु का प्रतिनिधित्व करता है और जीवन में पराक्रम के लिए सुरक्षा प्रदान करता है।
2. व्रत कब समाप्त होता है?
व्रत की समाप्ति अगले दिन तिथि के समाप्ति के साथ होती है जो लीलामय और शुभ फलदायी मानी जाती है।
3. क्या जल रहित व्रत जरूरी है?
आधिकारिक रूप से नहीं, परंतु जल रहित व्रत तीव्र फल देता है।
4. कौन-से देवताओं का पूजन होता है?
प्रमुख रूप से भगवान विष्णु का तथा शेषनाग का पूजन किया जाता है।
5. इस दिन कौन-से मन्त्र सबसे प्रभावशाली माने जाते हैं?
विष्णु सहस्रनाम, महामृत्युंजय मंत्र एवं अनंतसूत्र जाप अत्यंत प्रभावशाली होते हैं।
यह विस्तृत लेख अनंत चतुर्दशी की समग्र महत्ता को दर्शाता है। इसकी गहन कहानियाँ, वैज्ञानिक उपादान एवं आध्यात्मिक संदेश वास्तविक श्रद्धालुओं के लिए अमूल्य हैं।
अनुभव: 32
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इनके क्लाइंट: छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
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